मंगलवार, 29 मार्च 2011

राष्ट्रीय पुननिर्माण में संघ की भूमिका

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज अपरिचित नाम नहीं है। भारत में ही नहीं,विश्वभर में संघ के स्वयंसेवक फैले हुए हैं। भारत में लद्दाख से लेकर अंडमान निकोबार तक नियमित शाखायें हैं तथा वर्ष भर विभिन्न तरह केकार्यक्रम चलते रहते हैं। पूरे देश में आज 35, स्थानों (नगर व ग्रामों) में 5, शाखायें हैं तथा 95 साप्ताहिक मिलन व 85 मासिक मिलन चलते हैं। स्वयंसेवकों द्वारा समाज के उपेक्षित वर्ग के उत्थान के लिए, उनमें आत्मविश्वास व राष्ट्रीय भाव निर्माण करने हेतु ड़े लाख से अधिक सेवा कार्य चल रहे हैं। संघ के अनेक स्वयंसेवक समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समाज के विभिन्न बंधुओं से सहयोग से अनेक संगठन चला रहे हैं। राष्ट्र व समाज पर आने वाली हर विपदा में स्वयंसेवकों द्वारा सेवा के कीर्तिमान ख+डे किये गये हैं। संघ से बाहर के लोगों यहां तक कि विरोध करने वालों ने भी समयसमय पर इन सेवा कार्यों की भूरिभूरि प्रशंसा की है। नित्य राष्ट्र साधना (प्रतिदिन की शाखा) व समयसमय पर किये गये कार्यों व व्यक्त विचारों के कारण ही दुनिया की नजर में संघ राष्ट्रशक्ति बनकर उभरा है। ऐसे संगठन के बारे में तथ्यपूर्ण सही जानकारी होना आवश्यक है। रा. स्व. संघ का जन्म सं. 1982 विक्रमी (सन 1925) की विजयादशमी को हुआ। संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार थे।
डॉ. हेडगेवार के बारे में कहा जा सकता है कि वे जन्मजात देशभक्त थे। छोटी आयु में ही रानी विक्टोरिया के जन्मदिन पर स्कूल से मिलने वाला मिठाई का दोना उन्होंने कूडे में फेंक दिया था। भाई द्वारा पूछने पर उत्तर दिया॔॔हम पर जबर्दस्ती राज्य करने वाली रानी का जन्मदिन हम क्यों मनायें?’’ ऐसी अनेक घटनाओं से उनका जीवन भरा पड़ा है। इस वृत्ति के कारण जैसेजैसे वे बड़े हुए राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ते गये। वंदे मातरम कहने पर स्कूल से निकाल दिये गये। बाद में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में इसलिए प+ने गये कि उन दिनों कलकत्ता क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था।

वहां रहकर अनेक प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ काम किया। लौटकर उस समय के प्रमुख नेताओं के साथ आजादी के आंदोलन से जुड़े रहे। 192 के नागपुर अधिवेशन की संपूर्ण व्यवस्थायें संभालते हुए पूर्ण स्वराज्य की मांग का आग्रह डॉ. साहब ने कांग्रेस नेताओं से किया। उनकी बात तब अस्वीकार कर दी गयी। बाद में 1929 के लाहौर अधिवेशन में जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया तो डॉ. हेडगेवार ने उस समय चलने वाली सभी संघ शाखाओं से धन्यवाद का पत्र लिखवाया, क्योंकि उनके मन में आजादी की कल्पना पूर्ण स्वराज्य के रूप में ही थी।
आजादी के आंदोलन में डॉ. हेडगेवार स्वयं दो बार जेल गये। उनके साथ और भी अनेकों स्वयंसेवक जेल गये। फिर भी आज तक यह झूठा प्रश्न उपस्थित किया जाता है कि आजादी के आंदोलन में संघ कहां था? डॉ. हेडगेवार को देश की परतंत्रता अत्यंत पी+डा देती थी। इसीलिए उस समय स्वयंसेवकों द्वारा ली जाने वाली प्रतिज्ञा में यह शब्द बोले जाते थे॔ देश को आजाद कराने के लिए मै संघ का स्वयंसेवक बना हूं’’ डॉ. साहब को दूसरी सबसे ब+डी पी+डा यह थी कि इस देश क सबसे प्रचीन समाज यानि हिन्दू समाज राष्ट्रीय स्वाभिमान से शून्य प्रायरू आत्म विस्मृति में डूबा हुआ है, उसको “मैं अकेला क्या कर सकता हूं’’ की भावना ने ग्रसित कर लिया है। इस देश का बहुसंख्यक समाज यदि इस दशा में रहा तो कैसे यह देश खडा होगा? इतिहास गवाह है कि जबजब यह बिखरा रहा तबतब देश पराजित हुआ है। इसी सोच में से जन्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। इसी परिप्रेक्ष्य में संघ का उद्देश्य हिन्दू संगठन यानि इस देश के प्राचीन समाज में राष्ट्रीया स्वाभिमान, निरूस्वार्थ भावना व एकजुटता का भाव निर्माण करना बना। यहां यह स्पष्ट कर देना उचित ही है कि डॉ. हेडगेवार का यह विचार सकारात्मक सोच का परिणाम था। किसी के विरोध में या किसी क्षणिक विषय की प्रतिक्रिया में से यह कार्य नहीं ख+डा हुआ। अतरू इस कार्य को मुस्लिम विरोधी या ईसाई विरोधी कहना संगठन की मूल भावना के ही विरूद्घ हो जायेगा।
हिन्दू संगठन शब्द सुनकर जिनके मन में इस प्रकार के पूर्वाग्रह बन गये हैं उन्हें संघ समझना कठिन ही होगा। तब उनके द्वारा संघ जैसे प्रखर राष्ट्रवादी संगठन को, राष्ट्र के लिए समर्पित संगठन को संकुचित, सांप्रदायिक आदि शब्द प्रयोग आश्चर्यजनक नहीं है। हिन्दू के मूल स्वभाव उदारता व सहिष्णुता के कारण दुनियां के सभी मतपंथों को भारत में प्रवेश व प्रश्रय मिला। वे यहां आये, बसे। कुछ मत यहां की संस्कृति में रचबस गये तथा कुछ अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ रहे। हिन्दू ने यह भी स्वीकार कर लिया क्योंकि उसके मन में बैठाया गया है रुचीनां वैचित्र्याद्जुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामपर्णव इव॥ अर्थजैसे विभिन्न नदियां भिन्नभिन्न स्रोतों से निकलकर समुदा्र में मिल जाती है, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्नभिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टे़मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अन्त में तुझमें (परमपिता परमेश्वर) आकर मिलते है। शिव महिमा स्त्रोत्तम, इस तरह भारत में अनेक मतपंथों के लोग रहने लगे। इसी स्थिति को कुछ लोग बहुलतावादी संस्कृति की संज्ञा देते हैं तथा केवल हिन्दू की बात को छोटा व संकीर्ण मानते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि भारत में सभी पंथों का सहज रहना यहां के प्राचीन समाज (हिन्दू) के स्वभाव के कारण है।
उस हिन्दुत्व के कारण है जिसे देश केसर्वोज्च न्यायालय ने भी जीवन पद्घति कहा है, केवल पूजा पद्घति नहीं।हिन्दू के इस स्वभाव के कारण ही देश बहुलतावादी है। यहां विचार करने का विषय है कि बहुलतावाद महत्वपूर्ण है या हिन्दुत्व महत्वपूर्ण है जिसके कारण बहुलतावाद चल रहा है। अतरू देश में जो लोग बहुलतावाद के समर्थक हैं उन्हें भी हिन्दुत्व के विचार को प्रबल बनाने की सोचना होगा। यहां हिन्दुत्व के अतिरिक्त कुछ भी प्रबल हुआ तो न तो भारत ॔भारत’ रह सकेगा न ही बहुलतावाद जैसे सिद्घांत रह सकेंगे। क्या पाकिस्तान में बहुलतावाद की कल्पना की जा सकती है? इस परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस देश की राष्ट्रीय आवश्यकता है। हिन्दू संगठन को नकारना, उसे संकुचित आदि कहना राष्ट्रीय आवश्यकता की अवहेलना करना ही है।
संघ के स्वयंसेवक हिन्दू संगठन करके अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। संघ की प्रतिदिन लगने वाली शाखा व्यक्ति के शरीर, मन, बुदि्घ, आत्मा के विकास की व्यवस्था तथा उसका राष्ट्रीय मन बनाने का प्रयास होता है। ऐसे कार्य को अनर्गल बातें करके किसी भी तरह लांक्षित करना उचित नहीं। संघ की प्रार्थना, प्रतिज्ञा, एकात्मता स्त्रोत, एकात्मता मंत्र जिनको स्वयंसेवक प्रतिदिन ही दोहराते हैं, उन्हें पने के पश्चात संघ का विचार, संघ में क्या सिखाया जाता है, स्वयंसेवकों का मानस कैसा है यह समझा जा सकता है। प्रार्थना में मातृभूमि की वंदना, प्रभु का आशीर्वाद, संगठन के कार्य के लिए गुण, राष्ट्र के परंवैभव (सुख, शांति, समृदि्घ) की कल्पना की गई है। प्रार्थना में हिन्दुओं का परंवैभव नहीं कहा है, राष्ट्र का परंवैभव कहा है। स्वाभाविक ही सभी की सुख शांति की कामना की है। सभी के अंत में भारतमाता माता की जय कहा है। स्वाभाविक ही हर स्वयंसेवक के मन का एक ही भाव बनता है। हम भारत की जय के लिए कार्य कर रहे हैं। एकात्मता स्त्रोत व मंत्र में भी भारत की सभी पवित्र नदियों, पर्वतों, पुरियों सहित देश व समाज के लिए कार्य करने वाले प्रमुख व्यक्तियों (महर्षि वाल्मीकि, बुद्घ, महावीर, गुरूनानक, गांधी, रसखान, मीरा, अंबेडकर, महात्मा फुले सहित ऋषि, बलिदानी, समाज सुधारक वैज्ञानिक आदि) का वर्णन है तथा अंत में भारत माता की जय। इस सबका ही परिणाम है कि संघ के स्वयंसेवक के मन में जातिबिरादरी, प्रांतक्षेत्रवाद, ऊंचनीच, छूआछूत आदि क्षुद्रा विचार नहीं आ पाते। जब भी कभी ऐसे अवसर आये जहां सेवा की आवश्यकता पड़ी वहां स्वयंसेवक कथनीकरनी में खरे उतरे हैं।
जब सुनामी लहरों का कहर आया तब वहां स्वयंसेवकों ने जो सेवा कार्य किया उसकी प्रशंसा वहां के ईसाई व कम्युनिष्ट बंधुओं ने भी की है। अमेरिका के कैटरीना के भयंकर तूफान में भी वहां स्वयंसेवकों ने प्रशंसनीय सेवा की है। कुछ वर्ष पूर्व चरखी दादरी (हरियाणा) में दो हवाई जहाजों के टकरा जाने के परिणाम स्वरूप 3 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। दुर्भाग्य से ये सभी मुस्लिम समाज के थे उनकी सहायता करने ॔सेक्यूलरिस्ट’ नहीं गये। सभी के लिए कफन, ताबूत आदि की व्यवस्था, उनके परिजनों को सूचना देने का काम, शव लेने आने वालों की भोजन, आवास आदि की व्यवस्था वहां के स्वयंसेवकों ने की। इस कारण वहां की मस्जिद में स्वयंसेवकों का अभिनंदन हुआ, मुस्लिम पत्रिका ॔रेडिएंस’ ने ॔शाबास 3.’ शीर्षक से लेख छापा। ऐसी अनेक घटनाओं से संघ का इतिहासभरापडा है। गुजरात, उ+डीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, अंडमाननिकोबार आदि भयंकर तूफानों में सेवा करने हेतु पूरे देश से स्वयंसेवक गये, बिना किसी भेद से सेवा, पूरे देश से राहत सामग्री व धन एकत्रित करके भेजा, मकान बनवाये। वहां चममकपज लोग स्वयंसेवकों के रिश्तेदार या जातिबिरादरी के थे क्या? बस मन में एक ही भावसभी भारत माता के पुत्र हैं इसलिए सभी भाईभाई है। अमेरिका, मॅरीशस आदि की सेवा में भी एक ही भाव “वसुधैव कुटुम्बकम्।’ शाखा पर जो संस्कार सीखे उसी का प्रकटीकरण है। प्रख्यात सर्वोदयी एस. एन. सुब्बाराव ने कहा आर एस एस मीन्स रेडी फॉर सेल्फलेस
सर्विस। दूसरा दृश्य भी देखेंजब राजनीतिज्ञों व तथाकथित समाज विरोधी तत्वों द्वारा विशेषकर हिन्दू समाज को विभाजित करने के प्रयास हो रहे हैं तब स्वयंसेवक समाज में सामाजिक समरसता निर्माण करने का प्रयास कर रहे हैं। महापुरूष पूरे समाज के लिए होते हैंउनका मार्ग दर्शन भी पूरे समाज के लिए होता है तब उनकी जयंती आदि भी जाति या वर्ग विशेष ही क्यों मनायें? पूरे समाज की ही सहभागिता उसमें होनी चाहिये। समरसता मंच केमाध्यम से स्वयंसेवकों ने ऐसा प्रयास प्रारम्भ किया है तथा समाज के सभी वर्गा को जोडने, निकट लाने में सफलता मिल रही है, वैमनस्यता कम हो रही है। दिखने में छोटा कार्य है किन्तु कुछ समय पश्चात यही बडे परिणाम लाने वाला कार्य सिद्घ होगा। मुस्लिम, ईसाई, मतावलम्बियों के साथ भी संघ अधिकारियों की बैठकें हुई हैं किन्तु कुछ लोगों को ऐसा बैठना रास नहीं आता। अतरू परिणाम निकलने से पूर्व ही ऐसे प्रयासों में विघ्नसंतोषी विघ्न डालने के प्रयास करते रहते हैं। गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग, वनवासी, गिरिवासी, झुग्गीझोपडियों व मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का दुरूखदर्द बांटने, उनमें आत्मविश्वास निर्माण करने, उनके शैक्षिक व आर्थिक स्तर को सुधारने के लिए भी सेवा भारती, सेवा प्रकल्प संस्थान,वनवासी कल्याण आश्रम व अन्य विभिन्न ट्रस्ट व संस्थायें गठित करके जुट गये हैं हजारों स्वयंसेवक। इनके प्रयासों का ब+डा ही अज्छा परिणाम भी आ रहा है। इस परिणाम को देखकर एक विद्वान व्यक्ति कह उठे आर एस एस यानिरिबोल्यूसन इन सोशल सर्विस। राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भी स्वयंसेवक खरे उतरे हैं। सन 4748, 65, 71 के युद्घ के समय सेना को हर, प्रकार से नागरिक सहयोग प्रदान करने वालों की अंग्रिम पंक्ति में थे स्वयंसेवक। भोजन, दवा, रक्त जैसी भी आवश्यकता सेना को पड़ी तो स्वयंसेवकों ने उसकी पूर्ति की। यही स्थिति गत करगिल के युद्ध के समय हुई। इन मोर्चों पर कई स्वयंसेवक बलिदान भी हुए हैं। अनेकों घायल हुए हैं। इन्होंने न सरकार से मुआवजा लिया न ही मैडल। यही है निरूस्वार्थ देश सेवा। संघ का इतिहास त्याग, तपस्या, बलिदान, सेवा व समर्पण का इतिहास है, अन्य कुछ नहीं। सेना के एक अधिकारी ने कहा॔॔राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का रक्षक भुजदंड है।’’ राष्ट्रीय सुरक्षा का मोर्चा हो, दैवीय आपदा हो, दुर्घटना हो, समाज सुधार का कार्य हो, रूकुरीति से मुक्त समाज के निर्माण का कार्य हो, विभिन्न राष्ट्रीय व सामाजिक विषयों पर समाज के सकारात्मक प्रबोधन का विषय हो..और भी ऐसे अनेक मोर्चों पर संघ स्वयंसेवक जान की परवाह किये बिना हिम्मत और उत्साह के साथ डटे हैं तथा परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं, परिवर्तन आ भी रहा है। इस अर्थ में विचार करेंगे तो स्वयंसेवक राष्ट्र की महत्वपूर्ण पूंजी है। काश! इस पूंजी का सदुपयोग, राष्ट्र के पुनर्निर्माण में ठीक से किया जाता तो अब तक शक्तिशाली व समृद्घ भारत का स्वरूप उभारने में अच्छी और सफलता मिल
सकती थी। अभी भी देर नहीं हुई है। विभिन्न दलों के राजनैतिक नेता, समाजशास्त्री, विचारक, ङ्क्षचतक पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर ॔स्वयंसेवक’रूपी लगनशील, कर्मठ, अनुशासित, देशभक्ति व समाज सेवा की भावना से ओत प्रोत इस राष्ट्र शक्ति को पहचान कर राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में इसका संवर्धन व सहयोग करें तो निश्चित ही दुनिया में भारत शीघ्र समर्थ, स्वावलम्बी व सम्मानित राष्ट्र बन सकेगा। पिछले 85 वर्षों से स्वयंसेवकोंका एक ही स्वप्न हैभारतमाता की जय।

Destiny of West Bengal Hindus: The Coming Days of Slavery to Islam

Destiny of West Bengal Hindus: The Coming Days of Slavery to Islam



Creation of a Muslim Bangla in near future
by Dr. Radhasyam Brahmachari.

How fast-breeding Muslims are turning West Bengal (and entire India for that matter) into a Muslim-majority state and signs of the consequences that await its Hindu populations.
The State of West Bengal: West Bengal is a state in eastern India, having Islamic Bangladesh on its eastern border. Geographically West Bengal is on the eastern bottleneck of India, stretching from theHimalayas in the north to the Bay of Bengal in the south. It has a total area of 88,752 square kilometres (34,267 sq mi).
The West Bengal region was part of a number of empires and kingdoms during the past two millennia. The British East India Company consolidated their hold on the region following the Battle of Plassey in 1757, and the city of Calcutta, now Kolkata, served, up to 1911, as the capital of British India. This region was a hotbed of theIndian independence movement through the early 20th century. In 1947, Bengal was divided along religious lines into two separate entities: West Bengal, a state of India, and East Bengal, a part of the new nation of Pakistan (which later became independent Bangladesh in 1971).
West Bengal, the most densely-populated state in India, occupies only 2.7% of the India's land area, but supports over 7.8% of its population. The Figure 1 shows the political map of West Bengal and its 19 districts.
West Bengal suffered from large refugee influx during the partition in 1947, leading to political unrests later on. The partition of Bengal entailed the greatest exodus of people in Human History. Some 3.5 million Hindus migrated from East Pakistan to India, while only 500,000 Muslims crossed border from West Bengal to East Pakistan, although it was Muslims, who demanded a separate Muslim state and created Pakistan. The influx of Hindu refugees created crisis of land and food in West Bengal lasting more than three decades. The politics of West Bengal, since the partition in 1947, has developed round the nucleus of refugee problem. Both the Rightists and the Leftists in politics of West Bengal have not yet become free from the socio-economic conditions created by the partition of Bengal.
Again, the Bangladesh Liberation War of 1971 resulted in the fresh influx of millions of Hindu refugees to West Bengal, causing significant strain on its infrastructure. West Bengal politics underwent a major change when the Left Front won the 1977 assembly election, defeating the incumbent Indian National Congress. The Left Front, led by Communist Party of India (Marxist), has governed the state for the subsequent three decades. It may be mentioned here that in 1905, anabortive attempt was made by the British Government to divide the province of Bengal into two zones, but the plan was withdrawn in 1911 due to violent opposition by the people of both East and West Bengal.
Dr Shyama Prasad Mookherjee, the creator of West Bengal
As a matter of fact, Shyama Prasad Mookherjee was the creator of the state now called West Bengal. He carved out West Bengal from the then East Pakistan and East Punjab from West Pakistan. He was basically an educationist but the crisis of partition, more pointedly the partition of Bengal, brought him into politics. When the British accepted partition of India and creation of the new Islamic state of Pakistan, it was decided that the state or a Pradesh would be considered the smallest unit. Or in other words, a state with majority Muslim would go to Pakistan and a Hindu majority state would remain in the Indian Republic.
At that time the Bengal Province was a Muslim majority state and hence the entire Bengal was waiting to be included into the Islamic state of Pakistan. But after the massacre of the Hindus by the Muslims in Calcutta and Noakhali in 1946-47, Dr Mookherjee was convinced that it would be devastating for the Hindus, if they continue to live in a Muslim-dominated state and under a government controlled by the Muslim League. It should be mentioned here that most of the districts of East Bengal were Muslim dominated while the districts of western Bengal were dominated by the Hindus. So, Dr Mookherjee demanded that the smallest unit should be a district, not a province.
Similarly, the entire state of Punjab was marked as a Muslim majority state and hence was to be included into Pakistan. But the districts of West Punjab were dominated by the Muslims while in the districts of East Punjab, Hindus and Sikhs were in the majority. Dr Mookherjee argued that the Hindus of the Hindu majority districts of Bengal and Punjab must have their right to self-determination. It was not possible for the British to deny his argument; as a result only the Muslim-dominated districts in eastern Bengal, renamed East Pakistan, went to the new Islamic state of Pakistan, while a new state of West Bengal was formed with the Hindu-dominated districts of Bengal, which remained with India. Likewise, all the Muslim-dominated districts of Punjab, renamed West Pakistan, went to Pakistan, and the Hindu/Sikh-dominated districts were included in the Indian Union as a new state, called East Punjab. The only Muslim majority district that was included into West Bengal, due to geographical reasons, was Murshidabad. And for the similar reason, the Hindu dominated district Khulna was included into East Pakistan.
Table 1 shows the demography in West Bengal, based on census reports of the Government of India from 1951 to 2001. It has been pointed out earlier that only one district, i.e. Murshidabad, was Muslim dominated during the partition in 1947. The Table-1 shows that, according to 1951 census, 44.6 per cent population of Murshidabad were Hindus, and in past 50 years the percentage of Hindus has come down to 35.12 per cent. It also shows that in 1951, the Hindu and Muslim population in the district of Maldah was 62.92 and 36.17 per cent respectively. But after 50 years, i.e. according to 2001 census, Hindu population has declined to 49.28 per cent while the Muslim population has increased to 49.72 per cent, turning it into a Muslim majority district. Another district that has become a Muslim majority district is North Dinajpur. In 1981, the Hindu and Muslim population in the district were 54.20 and 45.35 per cent, respectively. In 2001, Hindu population has declined to 51.72 per cent, while the Muslim population has increased to 47.36 per cent. At present, it has become a Muslim-majority district.
The Table also shows that in all the districts, except Coochbihar, Hindu population is declining and Muslim population is rising. There are mainly three factors for this explosion of Muslim population.
  • Firstly, planned and deliberate rejection of family-planning measures by the Muslims;
  • Secondly, the uncontrolled influx of illegal Bangladeshi Muslim infiltrators through the porous Indo-Bangladesh border; and,
  • Thirdly, through conversion of Hindus to Islam

So far the first reason is concerned, it is necessary for the government to impose strict family planning measures upon Muslims. But no government has so far tried to take such a step over fears of earning their displeasure, thus, loosing their votes. Similarly, no government has ever taken any step towards halting the influx of illegal Bangladeshi immigrants. On the contrary, every political party, hoping to swell their vote-bank, is inviting Bangladeshi immigrants and assisting them to obtain Indian citizenship.
Notably, illegal Bangladeshi intruders are not affecting West Bengal alone, but are also fast altering the demography of the neighbouring states of Bihar and Assam. According to estimates of the police and CID departments, nearly 30 million Bangladeshi Muslims have entered West Bengal, Bihar and Assam. As a result, three bordering districts Bihar, namely Kishanganj, Araria and Katihar, and seven districts of Assam, namely Dhubri, Goalpara, Barpeta, Naogaon, Morigaon, Hailakandi and Karimganj, have turned into Muslim-majority districts.
Alarmingly, as the bordering villages of West Bengal, Bihar and Assam become Muslim dominated, they are being utilized as springboards by the jihadi terrorists and ISI agents. Moreover, mosques and madrasas are mushrooming in these districts, and Hindus are being evicted from their ancestral homes under threats and violence. The life and dignity of the Hindus and the honour of their women are no longer safe in those bordering villages.
Table 1: Change of Demography in West Bengal
District
Year
Hindu
Decreased
Muslim
Increased
Darjeeling
1951 2001
81.71 76.92
- 4.79
1.14
5.31
+ 4.17
Jalpaiguri
1951 2001
84.18
83.30
- 0.88
9.74
10.85
+ 1.11
Coochbihar
1951 2001
70.09 75.50
+ 4.60
28.94 24.24
- 4.7
North Dinajpur
1981 2001
54.20 51.72
- 2.48
45.35 47.36
+ 2.01
South Dinajpur
1981 2001
75.32 74.01
- 1.31
23.51 24.02
+ 0.51
Maldah
1951 2001
62.92 49.28
- 13.64
36.17 49.72
+ 12.75
Murshidabad
1951 2001
44.60 35.12
- 8.68
55.24 63.67
+ 8.43
Birbhum
1951 2001
72.60 64.69
- 7.91
26.86 35.08
+ 4.22
Bardhaman
1951 2001
83.73 78.89
- 4.84
15.60 19.78
+ 4.18
Nadia
1951 2001
77.03 73.75
- 3.28
22.36 25.41
+ 3.05
North 24 parganas
1971 2001
77.26 75.23
- 2.03
22.43 24.22
+ 1.79
South 24 Parganas
1971 2001
72.96 65.86
- 7.1
26.05 33.24
+ 7.19
Hooghly
1951 2001
86.52 83.63
- 2.89
13.27 15.14
+ 1.87
Bankura
1951 2001
91.16 84.35
- 6.81
04.4 7.51
+ 3.11
Purulia
1961 2001
93.13 83.42
- 9.71
05.99 07.12
+ 1.13
Medinipur
1951 2001
91.78 85.58
- 6.20
07.17 11.33
+ 4.16
Howrah
1951 2001
83.45 74.98
- 8.47
16.22 24.44
+ 8.22
Kolkata
1951 2001
83.41 77.68
- 5.73
12.00 20.27
+ 8.27
West Bengal
1951 2001
78.45 72.47
- 5.98
19.85 25.25
+ 5.4

(Source: Census Report 1951, 1961, 1971, 1981and 2001)

Figure 2: Decline of Hindu Population in West Bengal (Courtesy: Mohit Ray)

Decline of Hindu population of West Bengal
As pointed out above (see Table 1), Hindu population is in decline in all the districts of West Bengal, except Coochbihar, while Figure 2 illustrates the pace of this decline between 1951 and 2001. In 1991, Hindus constituted 75% of West Bengal population, which will come down to 70% in 2011. In 2034, the Hindu population will decline to 60%, and in 2051, it will dwindle to about 52%. In other words, entire West Bengal will become a Muslim-majority state in the next 40 years.
It is needless to say that, as soon as the Muslim population would rise to 40% in 2034, it would be difficult for the Hindus to live in peace in the state. Secret IB report tells that Muslims will claim the land on the eastern side of River Hooghly as an Islamic state or a part of greater Bangladesh. In such a situation, there will remain two options before the Hindus: either to accept Islam or to become refugee again and flee their homes to other parts of India to save their lives, dignity and religious faith.
Table 2: District-wise Hindu and Muslim Population in West Bengal
District
Religion
Percentage of Population
Percentage of Population of Children (0-6 yr old)
Darjeeling
Hindu
Muslim
76.92
05.31
76.19
08.26
Jalpaiguri
Hindu Muslim
83.30
10.85
80.45
13.81
Coochbihar
Hindu Muslim
75.50
24.24
69.82
29.98
North Dinajpur
Hindu Muslim
51.72
47.36
43.19
55.93
South Dinajpur
Hindu Muslim
74.01
24.02
69.40
28.35
Maldah
Hindu Muslim
49.28
49.72
43.01
56.08
Murshidabad
Hindu Muslim
35.92
63.67
29.35
70.27
Birbhum
Hindu Muslim
64.49
35.08
58.42
41.15
Bardhaman
Hindu Muslim
78.89
19.78
75.03
23.62
Nadia
Hindu Muslim
73.75
25.41
66.71
32.55
North 24 Parganas
Hindu Muslim
75.23
24.22
65.52
34.01
South 24 Parganas
Hindu Muslim
65.86
33.24
55.41
43.85
Hooghly
Hindu Muslim
83.63
15.14
78.94
19.53
Bankura
Hindu Muslim
84.35
07.51
81.83
10.09
Purulia
Hindu Muslim
83.42
07.12
81.62
09.26
Medinipur
Hindu Muslim
85.58
11.33
81.36
15.36
Howrah
Hindu Muslim
74.98
24.44
64.81
34.68
Kolkata
Hindu Muslim
77.68
20.27
70.24
27.81
West Bengal
Hindu Muslim
72.47
25.25
64.61
33.17

(Source: Census Report, 2001)
Many apprehend that Hindus will be outnumbered by Muslims much earlier than the projection presented above, due to the fact that population of Muslim children is much higher than the population adults, as presented in Table 2. Particularly in the districts of North Dinajpur, North and South 24 Parganas, the population of Muslim children is much higher than the population of adult Muslims. As mentioned earlier, North Dinajpur has already become a Muslim majority district, while high Muslim children population in North and South 24 Parganas suggests that these two districts are on the way to becoming Muslim-majority districts.
It should be pointed out here that the swelling of Muslim population is not confined to West Bengal and Assam alone, but is an all-India affair. Table 3 shows how the Hindu populations are declining and Muslim populations rising throughout India. If continue unchecked, entire India may turn into a Muslim-dominant country in 5 to 6 decades. So, what the 800-year Muslim rule could not achieve with the help of sword would be achieved simply through unrestrained breeding, i.e. using the wombs of Muslim women as the weapon. Table 4 presents the state-wise Muslim populations of India. Table 5, below, shows the state-wise increase of Muslim and Hindu populations during the decade 1991-2001.

Table 3: Religious Composition of India’s Population, 1991–2001, (in percentage)
Year
Indian Religionists
Muslim
Christian
1901
86.64
12.21
1.15
1941
84.44
13.38
2.18
1951
87.24
10.43
2.33
1991
85.01
12.59
2.32
2001
67.56
30.38
2.06
(Source: Religious Demography of India by A P Joshi, M D Srinivas and J K Bajaj, 2003)
Table 4: Muslim population in Indian states.
State
Population
Percentage
Lakshadweep
57,903
95.47
Jammu & Kashmir
6,793,240
66.97
Assam
8,240,611
30.92
West Bengal
20,240,543
25.25
Kerala
7,863,842
24.70
Uttar Pradesh
30,740,158
18.49
Bihar
13,722,048
16.53
Jharkhand
3,731,308
13.85
Karnataka
6,463,127
12.23
Uttaranchal
1,012,141
11.92
Delhi
1,623,520
11.72
Maharastra
10,270,485
10.60
Andhra Pradesh
6,986,856
09.17
Gujarat
4,592,854
09.06
Manipur
190,939
08.81
Rajasthan
4,788,227
08.47
Andaman & Nicobar Islands
29,265
08.22
Tripura
254,442
07.95
Daman & Diu
12,281
07.76
Goa
92,210
06.84
Madhya Pradesh
3,841,449
06.37
Pondicherry
59.358
06.09
Haryana
1,222,916
05.78
Tamil Nadu
3,470,647
05.56
Meghalaya
99,169
04.28
Chandigarh
35,548
03.95
Dadra & Nagar Haveli
6,524
02.96
Orissa
761,985
02.07
Chhattisgarh
409,615
01.97
Himachal Pradesh
119,512
01.97
Arunachal Pradesh
20,675
01.88
Nagaland
35,005
01.76
Punjab
382,045
01.57
Sikkim
7,693
01.42
(Source: Census Report, 2001)
Table 5: Increase of Hindu and Muslim Population, 1991 to 2001
State
Hindu (%)
Muslim (%)
West Bengal
14.2
25.9
Assam
14.9
29.3
Bihar (including Jhharkhand)
23.4
36.5
Delhi
44.1
82.5
Haryana
27.0
60.1
Punjab
28.7
59.6
Rajasthan
27.8
35.8
Himachal Pradesh
17.0
32.9
Jammu & Kashmir
24.7
29.5
Uttar Pradesh (including Uttarakhand)
24.2
31.7
Madhya Pradesh
21.7
29.5
Gujarat
22.1
27.3
Maharastra
21.6
34.6
Orissa
15.9
31.9
Karnataka
15.3
23.5
Andhra Pradesh
14.4
17.9
Tamilnadu
11.0
13.7
Kerala
07.3
15.8
India
19.3
29.5
(Source: Economic & Political Weekly, September 25. 2004)
After the partition of Bengal in 1947, Hindus from East Pakistan—fleeing Muslim persecutions, including violence, rapes and forced conversion—came to West Bengal as paupers to save their lives and faith, and honor of their women. But next time, when the West Bengal is Islamized, they would have no place to go. It would be devastating for the Hindus of West Bengal. They would have either to embrace Islam, live as degraded dhimmis or drown themselves in the waters of Bay of Bengal.
As mentioned earlier, in the districts of West Bengal, bordering Islamic Bangladesh, where Muslims have already gained majority due influx of Bangladeshi Muslims, have been turned into mini-Pakistans, where jihad against the Hindus have already begun. It is becoming, day by day, difficult for the Hindus to live peacefully in those areas. Their life and property is becoming unsafe. Forceful eviction of the Hindus, looting their properties, raping and molestation of their women folk are becoming a daily occurrences.
Such incidents are not confined to the border districts alone, but also in isolated pockets of other districts, where Muslims may have gained majority. In the districts of North and South 24 Parganas, there are many such pockets where the Muslims have unleashed their jihadi activities against the Hindus.

संघ की बात

संघ के बारे में तरह-तरह के विचार प्रस्तुत किए गए है लेकिन अधिकांश पूर्वाग्रह से प्रेरित कहे जा सकते है। आखिर कोई यह समझने का प्रयास क्यों नहीं करता कि क्या कारण है कि संघ विचार परिवार तमाम अवरोधों के बावजूद बढता ही जा रहा है। संघ ने विचार की धरातल पर जहां सभी वादों- समाजवाद, साम्यवाद, नक्सलवाद को पटखनी दी हैं वहीं राजनीतिक क्षेत्र में भी कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ा है। पहले भारतीय राजनीति गैर कांग्रेसवाद के आधार पर चलती थी अब यह गैर भाजपावाद हो गया है। संघ के सभी आनुषांगिक संगठन आज अपने-अपने क्षेत्र के क्रमांक एक पर है। भारतीय मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद्, विद्या भारती, स्वदेशी जागरण मंच, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद् आदि...सेवा के क्षेत्र में वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती की सक्रियता प्रशंसनीय है। इस पर बहस होनी चाहिए कि कांग्रेस और वामपंथ का आधार क्यों सिकुड़ रहा है और संघ भाजपा के प्रति जन-समर्थन क्यों बढ़ रहा हैं। पिछले पंजाब और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में माकपा-भाकपा और माले का खाता क्यों नहीं खुल पाया। कांग्रेस पिछले कई चुनावों से लगातार पराजय का मुंह क्यों देख रही है। देश की जनता अब समझदार हो गई है। वह देखती है कि कौन उसके लिए ईमानदारीपूर्वक काम कर रहा है और कौन केवल एयरकंडीशन कमरों में बैठकर महज जुगाली कर रहा है। समाजसेवा के नाम पर कांग्रेस-वामपंथियों की क्या उपलब्धि है। इस बात में दम है कि 'अंधेरे की शिकायत करते रहने से कहीं बेहतर है एक दिया जलाना'।

हम देखते हैं कि 1885 में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जहां आंतरिक कलह और परिवारवाद के कारण दिन-प्रतिदिन सिकुड़ती जा रही है, वहीं 1925 में दुनिया को लाल झंडे तले लाने के सपने के साथ शुरू हुआ भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन आज दर्जनों गुटों में बंट कर अंतिम सांसें ले रहा है। इनके विपरीत 1925 में ही स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिनोंदिन आगे बढ़ रहा है।

आज यदि गांधी के विचार-स्वदेशी, ग्राम-पुनर्रचना, रामराज्य-को कोई कार्यान्वित कर रहा है तो वह संघ ही है। महात्मा गांधी का संघ के बारे में कहना था- 'आपके शिविर में अनुशासन, अस्पृश्यता का पूर्ण रूप से अभाव और कठोर, सादगीपूर्ण जीवन देखकर काफी प्रभावित हुआ' (16.09.1947, भंगी कॉलोनी, दिल्ली)।

आज विभिन्न क्षेत्रों में संघ से प्रेरित 35 अखिल भारतीय संगठन कार्यरत हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, वैकल्पिक रोजगार के क्षेत्र में लगभग 30 हजार सेवा कार्य चल रहे हैं। राष्ट्र के सम्मुख जब भी संकट या प्राकृतिक विपदाएं आई हैं, संघ के स्वयंसेवकों ने सबसे पहले घटना-स्थल पर पहुंच कर अपनी सेवाएं प्रस्तुत की हैं।

संघ में बौध्दिक और प्रत्यक्ष समाज कार्य दोनों समान हैं। संघ का कार्य वातानुकूलित कक्षों में महज सेमिनार आयोजित करने या मुट्ठियां भींचकर अनर्गल मुर्दाबाद-जिंदाबाद के नारों से नहीं चलता है। राष्ट्र की सेवा के लिए अपना सर्वस्व होम कर देने की प्रेरणा से आज हजारों की संख्या में युवक पंचतारा सुविधाओं की बजाय गांवों में जाकर कार्य कर रहे हैं। संघ के पास बरगलाने के लिए कोई प्रतीक नहीं है और न कोई काल्पनिक राष्ट्र है। संघ के स्वयंसेवक इन पंक्तियों में विश्वास करते हैं-'एक भूमि, एक संस्कृति, एक हृदय, एक राष्ट्र और क्या चाहिए वतन के लिए?'

संघ धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता। इसके तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने उद्धोष किया कि 'अस्पृश्यता यदि पाप नहीं है तो कुछ भी पाप नहीं है।' बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का कहना था- 'अपने पास के स्वयंसेवकों की जाति को जानने की उत्सुकता तक नहीं रखकर, परिपूर्ण समानता और भ्रातृत्व के साथ यहां व्यवहार करने वाले स्वयंसेवकों को देखकर मुझे आश्चर्य होता है' (मई, 1939, संघ शिविर, पुणे)।

संघ की दिनोंदिन बढ़ती ताकत और सर्वस्वीकार्यता देखकर उसके विरोधी मनगढ़ंत आरोप लगाकर संघ की छवि को विकृत करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हमें स्वामी विवेकानंद का वचन अच्छी तरह याद है: 'हर एक बड़े काम को चार अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है: उपेक्षा, उपहास, विरोध और अंत में विजय।' इसी विजय को अपनी नियति मानकर संघ समाज-कार्य में जुटा हुआ है।

गोधरा पर निर्णय-धर्मनिरपेक्ष साजिशों का भण्डाफोड़

आज से नौ वर्षों पूर्व गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 बोगी में धटी वीभत्स हृदय विदारक घटना पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक हटाये जाने के बाद आखिरकार विशेष अदालत ने अपना निर्णय सुना ही दिया।

अयोध्या के विवादित स्थल पर निर्णय सुनाये जाने के बाद यह देश का ऐसा महत्वपूर्ण निर्णय था जिस पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई थी। अहमदाबाद की विशेष अदालत ने साबरमती काण्ड को एक गहरी साजिश मानते हुए 11 अभियुक्तों को सजा – ए -मौत तथा 20 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है। विशेष अदालत ने 1983 में सर्वोच्च न्यायालय ने जो यह व्यवस्था दी थी कि फांसी की सजा दुर्लभ से भी दुर्लभतम श्रेणी के तहत दी जानी चाहिए का अनुपालन करते हुए 11 प्रमुख अभियुक्तों अब्दुल रज्जाक कुक्कूर, बिलाल इस्माइल उर्फ बिलाल हाजी, रमजारी बिनयामीन बहरा, हसन अहमद चरखा उर्फ लालू, जाबर बिरयामीन बहरा, महबूब खालिद चंद्रा, सलीम उर्फ सलमान चंद्रा, सिराज मुहम्मद मेड़ा उर्फ बाला, इरफान कलंदर उर्फ इरफान भोपो, इरफान मोहम्मद पाटलिया व महबूब हसन उर्फ लती को फांसी की सजा सुनायी है। वहीं 20 अन्य अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है। देश के न्यायिक इतिहास में ंऐसा पहली बार हुआ है कि इतने बड़े अपराध में 31 मिनट में 31 अभियुक्तों को एक साथ सजा सुनायी गयी। हालांकि अभी यह प्रकरण 90 दिनों के बाद हाईकोर्ट जाएगा व फिर सर्वोच्च न्यायालय होते हुए राष्ट्रपति भवन तक का सफर दया याचिका के माध्यम से लम्बा सफर तय करेगा। अतः पुरा मामला अभी काफी लम्बा चलेगा। हिंदू विरोधी व मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों व वामपंथी लेखकों को अयोध्या निर्णय की तरह यह निर्णय भी अच्छा नहीं लग रह है। अदालत ने साबरमती काण्ड को एक सुनियोजित साजिश बताकर उन धर्मनिरपेक्ष नेताओं विशेष रूप से पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव सरीखे नेताओं की बोलती तो अवश्य बंद ही कर दिया है जिन्होने अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता के चलते व मात्र मुसलमानों को प्रसन्न करने के लिए तथा निरापराध हिंदुओं के साथ हुए अन्याय को नजरांदाज करते हुए 4 सितम्बर, 2004 को सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज यू सी बनर्जी के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन कर दिया जिसने 12 जनवरी, 2005 को प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कहा कि ,साबरमती एक्सप्रेस की एस – 6 बोगी में आग जानबूझकर किसी षड्यंत्र के तहत नहीं लगायी गयी। यह रिपोर्ट पूरी तरह से नानावटी आयोग के निष्कर्षों के विपरीत थी क्योकि नानावटी आयोग का मत था कि, यह पूरी घटना एक साजिश थी।आज यही कारण है कि हिंदू विरोधी मानसिकता के चलते लालू प्रसाद यादव बिहार की जनता की नजरों में अछूत हो गये हैं। उन्होंने सोचा था कि निरापराध हिंदुओं की हत्या के षड़यंत्रों में मुसलमानों को बचाकर वे बिहार की सत्ता का सुख भोग लेंगे लेकिन यह दिवास्वप्न ही रह गया। गोधरा काण्ड व उसके बाद भड़के दंगों को लेकर देश के तथाकथित सेक्यूलरों व मानवाधिकारियों ने जिस प्रकार से अपनी विकृत मानसिकता के आंसू बहाए अब उक्त निर्णय से उनके आंसुओं का पर्दाफाश हो चुका है। विशेष अदालत का निर्णय उन लोगों के लिए गहरा आघात है जो उक्त निर्मम व दुर्लभतम धृणित हत्याकाण्ड को महज राजनैतिक स्वार्थों के चलते इस बर्बर दुर्घटना को मात्र घटना करार दे रहे थे। अतः वे सभी राजनैतिक दल व्यक्ति व संगठन भी उस घटना के उतने ही बड़े आरोपी हैं जो कि उक्त घटना के आरोपियों को बचाने का घृणित खेल खेल रहे थे। यह हत्याकाण्ड आजादी के बाद देश का ऐसा शर्मनाक हत्याकाण्ड था जिसने मानवता को हिला कर रख दिया था लेकिन उसके बाद की राजनैतिक घटनाओं ने तो देश को और भी बुरी तरह से झकझोर दिया। भारतीय संविधान व धर्मनिरपेक्षता के रक्षकों ने भी अपनी सारी मर्यादाएं तोड़ दी तथा उन्हें पूरी घटनाओं में केवल एक ही व्यक्ति पर सारा दोष नजर आया वह थे नरेंद्र मोदी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने गोधराकाण्ड के फैसले पर लगी रोक हटाकर उक्त सभी लोगों की राजनीति पर ब्रेक लगा दी है। लेकिन वे लोग अब भी अपने घृणित कारनामों से पीछे नहीं हटने वाले। वामपंथी विचारधारा के लेखको ने उक्त निर्णय की आलोचना करते हुए अपनी लेखनी उठा ली है तथा ऐसे लेखक न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिन्ह उठाने लगे हैं । ऐसे लेखकों, मानवाधिकारियों व सेकुलरिस्टों को हिंदुओं के साथ घटी घटना महज कल्पना लगती है। पता नहीं क्यों ऐसे लोग अपने आप को हिंदू लिख रहे हैं। सवतंत्र भारत में अंग्रेजी मानसिकता से वशीभूत लोग ही हिंदूओं व मुसलमानों के बीच उत्पन्न होती सामाजिक समरसता को ध्वंस करने का षड़यंत्र करते हैं व फिर कोई घटना घटित होने पर विकृत रूप से अपने खेल में लग जाते हैं। आज धन्य हैं वे लोग जिन्होंने गोधरा को लेकर अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और आज उक्त दुर्लभतम ऐतिहासिक हत्याकाण्ड पर न्याय का मार्ग प्रशस्त हुआ है। आज वे सभी लोग भी उक्त हत्याकाण्ड में उतने ही दोषी हैं जो कि येन केन प्रकारेण उसे दुर्घटना करार दे रहे थे। यह निर्णय उन लोगों को भी करारा जबाब है।अतः वे सभी लोग भी लोकतांत्रिक ढंग से सजा के हकदार हैं जो उस वीभत्स घटना पर वोटबैंक की राजनीति कर रहे थे। रही बात गोधरा काण्ड के बाद भड़के दंगों की तो उसके पीछे एक बडा महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि उस समय तथाकथित सेक्यूलर मीडिया ने उक्त वीभत्स घटना को दरकिनार करके बेहद पक्षपातपूर्ण ढंग से घटनाओं का प्रकाशन-प्रसारण किया था जिसके कारण भी वहां पर तनाव बढ़ा। अतः अब चूंकि पूरा मामला न्यायपालिका में गति पकड़ चुका है तो अब इस प्रकार की घटनाओं पर विकृत राजनीति बंद होनी चाहिए तथा आशा की जानी चाहिए की अन्ततः जीत सत्य व न्याय की होगी।

मुंबई में घुसपैठ – एक आक्रमण

क्या बंग्लादेशियों से भारत के अनेक नगरों व सीमावर्ती क्षेत्रों में अरसे से योजनाबध्द रूप से होने वाली घुसपैठ पर हमारी राजनीतिक उपेक्षा नए जनसांख्यिक दबाव डालकर असम को मुस्लिम बहुल प्रदेश बना सकती है और हमारे महानगरों को भी असुरक्षित बना देगी? सारे देश में ये घुसपैठिए जैसे-जैसे फैलते जा रहे हैं, हमारी सरकार व राजनेताओं का ढुलमुल रवैया, ऐसा प्रतीत होता है, अपने वोट बैंक बढ़ाने के कारण उन्हें भारत का नागरिक बनाने हेतु भी सक्रिय है। एक आंकड़े के अनुसार लगभग 3 करोड़ से अधिक बंग्लादेशी देश में अवैध रूप से घुसे हैं और यह सिलसिला आज भी चल रहा है। सर्वाधिक शर्मनाक बात यह है कि इस पूरी-गैर कानूनी प्रक्रिया में हमारे अनेक राजनीतिकबाज और बुध्दिजीवी उनके मानवीय संघर्ष और अच्छी जिंदगी की ललक के नाम पर इसे तर्क-सम्मत ठहरा रहे हैं और इस बात को अनदेखा कर रहे हैं कि आतंकवादी संगठन उन्हें मोहरों की तरह प्रयुक्त करते हैं। क्या विश्व के किसी भी देश में, जानने पर भी क्या किसी देश की विदेशी नागरिक को एक दिन के लिए भी रहने दिया जा सकता है? यह विडंबना है कि आज भी इस व्यापक अवैध घुसपैठ में सरकारी संगठन और व्यवस्था स्वयं आंखों पर पट्टी बांधने को तैयार हैं। चाहे आसाम का करीमगंज हो या बिहार का किशनगंज इनकी जनसंख्या का दबाव व घनत्व स्पष्ट हैं। एक आकलन के अनुसार ये अवैध बंग्लादेशी पूर्वोत्तर भारत के लगभग 20 लोकसभा क्षेत्र तथा 100 विधान सभा क्षेत्रों के चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। यहां के सामाजिक जीवन को भी ये विदेशी नागरिक प्रदूषित कर रहे हैं। उग्रवादियों से मिलकर वे बड़ी आसानी से पाकिस्तानी मुद्रित भारतीय मुद्रा और हथियार भेजते रहते हैं। सरकार तो इतनी असहाय और मूकदर्शक सी बनी हुई है कि उन्हें विदेशी नागरिकों के अधिनियम के अंतर्गत नोटिस भी नहीं दिए जाते हैं। सरकार की दृष्टि में सीमाबंद करना या बाड़ लगाकर अवैध घुसपैठ की समस्या हल की जा सकती है। पर न राजनैतिक इच्छाशक्ति है और न ही भौगोलिक दृष्टि से सीमा बंद करने का समाधान और इसलिए शायद हम कुछ कर सकेंगे जब तक पानी सिर से ऊपर न हो जाए।

हाल में बंग्लादेश से मुंबई तक के अवैध सफर की प्रक्रि्रया और इस महानगर पर पड़नेवाले संभावित खतरे का आकलन एक सर्वेक्षण में किया गया था। उसी का सारांश देने का प्रयास किया गया है। मुंबई में आनेवाले 90 प्रतिशत से अधिक बंग्लादेशी यहां पहले से रह रहे बंग्लादेशी, उनसे जुड़े दलालों और भ्रष्ट शासन के सहयोग से आकर अपनी रिश्वत देने की क्षमता के कारण राशनकार्ड अथवा पहचान-पत्र आदि बनवाने में भी सफल हो जाते हैं। उनकी प्रारंभिक यात्रा दलालों के संपर्क से जैसे ही वे पश्चिम बंगाल की सीमा में पहुंचते है, हावड़ा स्टेशन से सीधे मुंबई आनेवाली ट्रेनों में सवार होकर थाणे या क्षत्रपति शिवाजी टर्मिनल के लिए रवान होने से शुरू होती है।

मुंबई में रह रहे कई बंग्लादेशियों ने पुलिस को बताया कि दलाल प्रति व्यक्ति 2.5 हजार रूपये लेता है। यह रेट हाल ही में बढ़ा है। पहले दो हजार था। दलाल एक अकेले व्यक्ति की बजाय ज्यादा से ज्यादा लोगों को ले जाना पसंद करता है। ज्यादा लोग ज्यादा दलाली। सात से आठ साल की कम उम्र के बच्चों का कोई पैसा नहीं लगता क्योंकि इनका ट्रेन टिकट नहीं लगता। अपने बार्डर पर यह दलाल पहले बंग्लादेशी राईफल्स को 600 रूपये देता है। इसके बाद हीं बंग्लादेशी बॉर्डर पार करने दिया जाता है। अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर वह इन लोगों को सीमा पार करवाने में कामयाब हो जाता है। भारत में पहुचकर स्थानीय बसों द्वारा ये लोग हावड़ा तक पहुंचते हैं। यहां से ये मुंबई आने वाली ट्रेनों में सवार हो जाते हैं। मुंबई पहुचकर दलाल इन लोगों को ऐसे इलाकों तक पहुंचा देता है जहां पहले से ही बंग्लादेशी मुस्लिम बहुल इलाके में होते हैं। पहले से बसे ये बंग्लादेशी नए आये लोगों को रोजगार दिलवाने में पूरी मदद करते हैं। जिन इलाकों में बंग्लादेशी रहते हैं वहां दलाल नियमित रूप से चक्कर लगाते रहते हैं ताकि जिन्हें वापस जाना हो उनको दलाल आसानी से मिल जाए। बंग्लादेश से मुंबई तक के पूरे सफर के दौरान ये दलाल लगातार इनके साथ ही रहता है। एक और दलाल है जो इनके द्वारा यहां कमाए हुए रूपये इनके घर(बंग्लादेश)तक पहुंचाता है। किसी तरह की मुसीबत पड़ने पर ये दलाल इनके घरों से पैसा यहां तक पहुंचाते हैं। ये पूरा लेन-देन हवाला के जरिए संपन्न होता है। हवाला की जरूरत इसलिए पड़ती है क्योंकि ये गैर-कानूनी बांग्लादेशी भारत के किसी भी बैंक में खाता नहीं खुलवा सकते। हवाला की प्रक्रिया इतनी मजबूत और तीव्र है कि मुंबई से बंग्लादेश या बंग्लादेश से मुंबई यह पैसा केवल 10 मिनट में पहुंच जाता है।

नई दिल्ली में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ विषय पर कई वर्ष पहले हुए सम्मेलन में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का ध्यान महाराष्ट्र में बढ़ रही बंग्लादेशियों की जनसंख्या की ओर खींचने का पूरा प्रयास किया था ऐसा करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह हमें आतंकवादी और आई.एस.आई के एजेंटों की गतिविधियों पर पूरा ध्यान देना चाहिए(जो मौका मिलते ही देश की आर्थिक राजधानी को निशाना बनाते हैं) उसी तरह हमें बंग्लादेशियों के मसले को नजर-अंदाज नहीं करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से इस मसले पर गुहार लगाई थी। इसी तरह महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री आर. आर. पाटिल ने भी डांस बारों का बंद कराना जायज ठहराया था और सफाई दी थी कि इन बारों में अधिकांशतः बांग्लादेशी लड़कियां काम करती है। भाजपा चाहती है कि केंद्र सरकार इस समस्या को हल करने हेतु कोई ठोस कदम उठाये हालांकि कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया मिली जुली रही है। कांग्रेस के अधिक तर नेता बांग्लादेशी समस्या से वाकिफ हैं पर कुछ ऐसे नेता भी हैं जिनका मानना है कि इससे पार्टी की छवि अल्पसंख्यकों में खासतौर पर मुसलमानों में खराब होगी।

महाराष्ट्र में बांग्लादेशियों की धरपकड़ सिर्फ सांकेतिक और सतही रही है। यद्यपि उनसे खतरे से वे अवगत हैं। महाराष्ट्र गृह मंत्रालय ने बताया कि वर्ष 2004 में मुंबई में सिर्फ 626 बंग्लादेशी पक ड़े गये थे। स्पेशल ब्रांच के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 सालों में मात्र 5 हजार बांग्लादेशियों को पकड़कर वापस बांग्लादेश भेज दिया गया था। सन् 1995 से 2007 तक मात्र एक हजार के आसपास बांग्लादेशी पकड़े गये थे। इसमें सर्वाधिक संख्या 897 बांग्लादेशियों को 1996 में पकड़ा गया था और न्यूनतम संख्या में 266 को 2001 में पकड़ा था। कुछ समय पहले पुलिस ने भांयखाला स्टेशन से पकड़ा था इसमें से अधिकांश को वे बांग्लादेश लौटाने का दावा करते हैं पर तुरंत बाद उनमें से ही अनेक और दूसरे अनेक बांग्लादेशी बेहिचक फिर मुंबई, ठाणे व पूणे आ जाते हैं।

कुछ प्रसिध्द सक्रिय समाजसेवी हैं, उन्होंने बताया कि इनकी बढ़ती आबादी के खिलाफ सत्ता में कांग्रेस तथा एनसीपी ने आवाज उठाई है। शिवसेना तो समय-समय पर बोलती ही है। बांग्लादेशी उन जगहों को अपना अड्डा बनाते हैं जहां मुसलमान समुदाय की आबादी अधिक होती है। तो क्या इसका मतलब है कि बांग्लादेशियों क ो भारतीय मुसलमान शरण दे रहे हैं? लेकिन यह भी सच है कि लोकशाही में भ्रमों को ज्यादा और सच्चाई को कम महत्व मिलता है। इस बात का बोध हमारे नेता मंत्रियों को सबसे ज्यादा हैं जिस तरह शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे, मनसे नेता राज ठाक रे के साथ मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख मुंबई में स्वयं बांग्लादेशियों के खिलाफ औपचारिक बयानबाजी करते हैं पर लगता है कुछ करना नहीं चाहते। इनके कारण देश में इनकी भीड़ लगातार बढ़ रही है। हालांकि ऐसा कहीं होता हुआ नजर नहीं आता लेकिन हमारी चिंता करने वाले नेताओं को साफ नजर आता है। ऑफिशियल रिकॉर्ड बताते हैं कि सन् 2004 में 626 बांग्लादेशी मुंबई में थे। मुंबई की 1 करोड़ की आबादी सिर्फ 626 बांग्लादेशी? और नेताओं की मानें तो यह संख्या बहुत ही खतरनाक है। दरअसल, सच्चाई यह है कि बांग्लादेशी तो नहीं लेकिन हमारे भ्रष्ट सरकारी अधिकारी देश के लिए असली खतरा हैं ।

आज मुंबई की सन् 2006 में पश्चिमी रेलवे के सीरियल बम विस्फाेंटों की शृंखला को लोग भूल चुके हैं पर उसमें भी उस समय के समाचार पत्रों में बांग्लादेशी आतंकवादियों की बात उठी थी। 11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेन में हुए बम विस्फोटों में लगभग 200 लोगों की जान चली गई थी। कहते हैं कि इन विस्फोटों में बांग्लादेशी आतंकवादियों का भी हाथ था। मुंबई पुलिस एंटी-टेरेरिस्ट स्क्वॉयड के प्रमुख के. पी. रघुबंशी ने बताया था कि कई बांग्लादेशी नागरिक कानूनी तौर पर भारत घूमने आते हैं और फिर अचानक गायब हो जाते हैं ओर फिर उनका कोई सुराग नहीं मिलता। इन्होंने यह भी बताया था कि 11 जुलाई बम विस्फोट की तफतीश में पकड़े गए कमल अंसारी और मोहम्मद मजीन ने आतंकवदियों को भारत-बंग्लादेश बॉर्डर पार कराकर मुंबई तक पहुंचाया था। इन्हीं आतंकवादियों का हाथ 11 जुलाई के बम विस्फोटों में भी था।

मुंबई में झोपड़ी का फैलाव एक नासूर है। यहां झोपड़ियों की समस्या इतनी जटिल है कि आजादी के बाद से आज तक कोई भी सरकार इसे खत्म नहीं कर सकी है। ऐसे में गैर-कानूनी तौर पर रह रहे बांग्लादेशियों के लिए झोपड़पटि्टयां फायदे का सौदा साबित होता है। जिन लोगों ने सरकारी और निजी जमीन पर कब्जा करके 1995 से पहले झोपड़ियां बनाई थी उन लोगों को वहां से हटाकर सरकार पुनर्वसन करने की तैयारी में रहती है। इन जगहों पर एक बड़ा प्रतिशत बांग्लादेशी रहता है। गैर-कानूनी ढंग से रहने वाले बांग्लादेशियों के जिन ठिकानों पर छापे पड़े थे उनमें डोंगरी, पायधुनी, मस्जिद रोड, चीता कैं प, ट्रांबे, लालभाटी और वडाला मुख्य थे पर हाल में नए दर्जनों स्थानों का नाम भी लिया जा रहा हैं। जिनमें उत्तर-पूर्वी मुंबई के एकता नगर, चिखलवाड़ी, साईबाबा नगर, गोंवडी और मानखुर्द भी है।

केंद्र जानता है कि जो स्थिति मुंबई में है, अवैध बांग्लादेशी कि उपस्थिति दूसरे प्रांतों में उससे कहीं बुरी है। भारत और बांग्लादेशी के बीच करीब 1600 कि. मी. की खुली सीमा है। समुद्री सीमा भी बांग्लादेश के साथ लगती है। बांग्लादेश के अलावा पश्चिम में बंगाल की सीमा नेपाल, भूटान और सिक्किम से भी सटी हुई है। उत्तर पूर्व के भारत विरोधी तत्वों को हथियार प्राप्त करने के लिए यह सुरक्षित अभयारण्य है। इस चौराहे पर पशु तस्कर, आई. एस. आई. एजेंट, हथियारों के सौदागर, मादक पदार्थों और जाली नोटों के तस्कारों के साथ-साथ आतंकवादियों की सरगर्मी भी चलती रहती है। बिहार, नेपाल सीमा के दोनों ओर मुस्लिम जनसांख्यिक दबाव स्पष्ट है और रक्सौल, जयनगर, निर्मली, पूर्णिया, किशनगंज तथा जोगबनी, अटरिया, कटिहार आदि जगह में नए मुस्लिम पाकेट बन चुके हैं। वहां के स्थानीय प्रशासन द्वारा स्वीकार किया जा चुका हैं कि वहां कुल 15 लाख बंग्लादेशी मुसलमान बस गए हैं। उनके संबंध महानगरों के कई आपराधिक संगठनों से भी जुड़ते जा रहे हैं। एक ओर तुष्टीकरण की नीति तो दूसरी ओर वोटबैंक की लोलुपता ने आज भी राजनीतिबाजों की आंखों पर पटि्टयां बांध दी हैं।

शनिवार, 26 मार्च 2011

Take the example of Rani Gaidinliu of Nagaland

Take the example of Rani Gaidinliu of Nagaland. She had led a heroic guerilla war against the British and when defeated by the mightier army, was awarded life imprisonment in a ‘fair trial’ at the age of 16. Pt. Nehru met her in Kohima jail and wrote poetically about her heroism calling her “fit to be a Rani”, hence the title of Rani with her name. After Independence it was again Nehru who made her see out of jail. Smt Indira Gandhi awarded her the Padma Bhushan and also a Tamra Patra in the silver jubilee year of the Independence. But Kohima Church and the Christian leaders of the NSCN opposed vehemently when a proposal was put up to have her statue in Kohima after her death, because she had declared her Heraka and Zeliangrong movement Hindu and had refused steadfastly to convert to Christianity.

To convert a Vanvasi, his beliefs, customs and deities are condemned, pronounced ‘incapable to provide salvation’, his entire worldview is sought to be replaced with Romanised conceptions and way of worship. It was the fear of this aggression that made Congress leader and the present CM of Arunachal Pradesh to create a Dony Polo mission and start highly motivated Vanvasi public educational institutions so that his people are saved from conversion threats.

The image of Naga society in length and breadth of the country was (i) that cent-per-cent Nagas have converted to Christianity (ii) that all Nagas were anti-Hindu and anti-India and (iii) that all Nagas were wild, savage and raw-meat enters. In America, Britain and other Christian countries, Nagas were described as wild, savage, naked, head-hunters and with no religion. I have visited several mega cities in the country. I have visited several villages in Uttar Pradesh, Maharashtra, Delhi and other states, I have lived in several Hindu families. When Hindu hosts knew that I was a Naga girl, they whispered. They could not believe that a Naga person could be so refined in all respect. It was not the mistake of Hindu hosts. It was the mistake of our own. Because we allowed foreign Christian missionaries to propagate that we-Nagas, were wild, savage, heathen, naked, head-hunters and raw-meat enters. This propaganda is still made in foreign countries with a view to collect more and more donations for Church work in Nagaland Rani Gaidinliu and later, Pou N.C. Zeliang opposed this malacious propaganda against Naga society. For this deed, both of them were cursed and victimised. Rani Ma toured the country, established close contact with Hindu organisations and cleared the cloud of misconception against Nagas from the mind of Hindus. Earlier Rani Ma, later Pou N.C. Zeliang and now Shri Ramkui Wangbe Newme, President of Zeliangrong Heraka Association have been telling us that any Naga who is neither Christian nor Muslim, falls under the category of Hindu. Because of their untiring efforts, the image of Naga society is improved and brightened in the country. The ‘terrorist’ image of us is dampening and fading away and prudent and prowess image of Nagas is emerging fast.

“Invasion by foreign religion and foreign culture will pose danger to Naga identity. Beware of this danger”.
—Rani Gaidinliu had said.

Church supported terrorism in North-east India: At odds with the cross

Two indigenous groups with a lived history of centuries of civilisational amity are supposedly engaged in fratricidal conflict in Assam's Karbi Anglong district. To the bewilderment of the majority of Karbis and Dimasas, gangs of armed and hooded goons have been killing members of both tribes since late September, while sparking rumours that the other group is behind the killings.

The gangs carry modern weapons but hack their victims with the traditional dao, and their modus operandi does not conform to the usual forms of killing in the Northeast.

The general calm among the civilian population of both tribes, despite media hype over ethnic strife, led their leaders to believe that hidden forces are operating behind the scenes. A joint delegation of Karbi and Dimasa leaders visited the capital last month to apprise Home Minister Shivraj Patil of their suspicions that hostile elements are making mischief to seize sensitive territory.

Their concerns are central to any discussion on the nation's territorial integrity as there is an intimate relationship between land and faith. In the Indian experience, change of faith has resulted in change of national loyalty. The violent Tamil secessionist movement collapsed because the cultural unity of the Indic civilisation overcame colonialism's divisive Aryan-Dravidian legacy.

In contrast, regions where Islam became predominant seceded from the motherland. The eminent religious studies scholar Arvind Sharma feels Hindus should reject the British-imposed term "Partition," as the division was not a mutual decision of the concerned parties; rather some parts were instigated to walk away.

Secession did nothing for common citizens in Pakistan or Bangladesh, but it gave post-colonial Western imperialists a foothold in our part of the world. Worse, the footprint is getting larger, whether or not we admit it. The Twin Towers tragedy gave America the opportunity to secure bases in Afghanistan and Peshawar (Uncle Sam does not easily relinquish bases offered by docile democrats and dictators), and the Kashmir earthquake has brought it literally on our head. We can ignore this altered geo-strategic environment at our own peril.

Even today, the regions where the country faces secessionist threats are those where internationally-funded religious conversions and religion-based infiltrations are altering the demographic profile, a fact substantiated statistically by Census 2001. In the circumstances, the Union Home Minister would do well to heed the Karbi-Dimasa cry for help.

Both claim a proud and ancient Hindu lineage - Dimasas claim descent from the Mahabharata hero Bhima, while Karbis claim to be the offspring of Hanuman's brother Sugriva. In fact, Karbis believe they came to the Northeast in search of purthemi kungripi (Sita Mata) during the Treta yuga, and failed to return to Ayodhya; Dimasas hold that they migrated from Hastinapur (Delhi) via Himachal Pradesh and Cooch Bihar, and established a kingdom at Dimapur, which they ruled for four hundred years.

Both tribes worship Mahadeo Shiva and other Hindu deities. Both communities are staunch nationalists and vigorously resist missionary activity in their areas, with the result that conversion is virtually nil among Dimasas and only five percent among Karbis.

Both tribes believe that the genesis of the present crisis lies in the National Socialist Council of Nagaland (Isak-Muivah) demand for Greater Nagaland (or Nagalim). They say an internationally-sponsored attempt is currently underway to create a Christian belt in the region, which is to include Chamling and Tirap districts of Arunachal Pradesh, Nagaland, Manipur, Karbi Anglong and North Cachar Hills of Assam, Mizoram and Meghalaya.

The fact that the Karbis (who are predominant in Karbi Anglong) and Dimasas (the majority in NC Hills) are staunch Hindus is a major stumbling block in the goal of Nagalim. Hence the church has adopted a two-pronged strategy. On the one hand, Karbis and Dimasas, already squeezed between Christian Nagaland, Meghalaya and Mizoram, are being subjected to violence to compel them to convert to Christianity, as are tribals in neighbouring Tripura. A Hindu sadhu was shot dead some time ago.

On the other hand, the Church may be using Karbi and Dimasa militant outfits to achieve its objectives. The United Peoples Democratic Solidarity (UPDS) of the Karbis and Dima Halam Daogah (DHD) of the Dimasas were set up by certain sections to pursue a political and economic agenda.

The Dimasa DHD was armed and trained by NSCN (IM), but when it refused to pay taxes and work for Nagalim, their relations soured. NSCN (IM) then prompted Hmar People's Convention (HPC) to object to the Dimasa militant camp near Haflong, provoking armed clashes between them in 2003.

Intra-Dimasa conflicts between DHD president Jewel Gorlosa and vice president Dilip Nunisa led the former to form a new outfit called Black Widow, which worked with NSCN (IM) to set scores with DHD.

NSCN resents DHD's desire to include Dimapur and adjoining Dimasa areas in a Dima homeland. NSCN is powerful enough to get some MLAs, MPs and student bodies of four hill districts of Manipur and some MLAs, Village Council Chiefs and student bodies of Changlang and Tirap districts of Arunachal Pradesh to visit the Hebron Camp in Nagaland and issue a statement supporting inclusion of their districts in Nagalim. Obviously the conspiracy to carve out a huge Christian territory in the region is being carefully planned and executed.

The Karbi militant outfit, UPDS, was also armed and trained by NSCN (IM). It too seeks an autonomous state/separate homeland, but lacks a popular mandate and advances its demands at gun point. The UPDS signed a ceasefire agreement with the Centre in May 2002, while the DHD did so in January 2003, but it seems likely that these militant groups (or their splinter groups) were nonetheless used by NSCN (IM) to create trouble in the area.

The Karbi Lingri National Liberation Forum (KLNLF) was set up by a group of extremists who disagreed with the UPDS ceasefire agreement with the Government.

There are thus enough armed gangs moving about the region with impunity. From September 26, 2005, over one hundred Dimasas and Karbis have died in violence, and over one thousand houses across 40 villages torched; nearly 52,000 persons have been forced to take shelter in relief camps. The enquiry ordered by the Assam Chief Minister does not inspire confidence, largely because of his minority-appeasing credentials.

The critical question that remains to be answered is why international forces are allegedly determined to convert these tribes and sponsor separatism in the region. Delegation members who say they risked their lives coming to Delhi, point out that the reasons can be discerned in the undue interest taken in the Northeast by former US President Jimmy Carter, British Prime Minister Tony Blair, the Baptist World Alliance and the World Council of Churches.

What is going on is a post-colonial quest to re-colonise India through strategic balkanization, and this area is rich in oil, uranium, mineral and forest wealth.

Given the fact that the NSCN (IM) ceasefire with the Government ends on January 31, 2006, the outfit is under pressure to create unrest and force an out-migration of the local population. Hence it has built bridges with Bangladeshi infiltrators also, and more violence may ensue in coming days.

The State Government is notable for its absence in the area, while militants are operating freely, threatening villagers trying to return home from relief camps in order to harvest their crops. An ill-wind blows in the Northeast.