कश्मीर में अमरनाथ श्राइन बोर्ड के मुद्दे पर हुए विरोध और सरकार को झुका लेने के इस्लामी शक्तियों के अभियान के अपने निहितार्थ हैं। आगे चलकर ऐसे ही प्रयास स्थानीय विषयों को लेकर प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्रें में होंगे।
अभी कुछ दिनों पूर्व जब मैंने पश्चिम बंगाल की यात्र की तो भारत पर मंडरा रहे एक बड़े खतरे से सामना हुआ और यह खतरा है भारत के इस्लामीकरण का खतरा। पश्चिम बंगाल की इस यात्र का प्रयोजन हिन्दू संहति के नेता तपन घोष सहित उन 15 लोगों से मिलना था जिन्हें 12 जून, 2008 को हिन्दू संहति की कार्यशाला पर हुए मुस्लिम आक्रमण के बाद हिरासत में ले लिया गया था। तपन घोष को गंगासागर और कोलकाता के मध्य डायमण्ड हार्बर नामक स्थान पर जेल में रखा गया था। मैं अपने मित्र के साथ 23 जून को कोलकाता पहुंचा। दोपहर में पहुंचने के कारण उस दिन तपन घोष से मिलने का कार्यक्रम नहीं बन सका और हमें अगली सुबह की प्रतीक्षा करनी पड़ी। अगले दिन प्रात: काल ही हमने सियालदह से लोकल ट्रेन पकड़ी और डायमण्ड हार्बर के लिये रवाना हो गए। कोई दो घण्टे की यात्र के उपरांत हम अपने गंतव्य पर पहुंचे और जेल में तपन घोष सहित सभी लोगों से भेंट हुई, जिन्हें अपने ऊपर हुए आक्रमण के बाद भी जेल में बन्द कर दिया गया था। जेल में हुई भेंट से पूर्व जो सज्जन हमें तपन घोष से मिलाने ले गए थे उन्होंने बताया कि हिन्दुओं का विषय उठाने के कारण उन्हें भी जेल में महीने भर के लिए बन्द कर दिया गया था। उन्होंने जेल के अन्दर की जो कथा सुनाई उससे न केवल आश्चर्य हुआ वरन हमें सोचने को विवश होना पड़ा कि भारत के इस्लामीकरण का मार्ग प्रशस्त हो रहा है।
भारत के इस्लामीकरण की सम्भावना व्यक्त करने के पीछे वे घटनाएं हैं जो स्थानीय तथ्यों पर आधारित हैं। 12 जून को जो आक्रमण हिन्दू संहति की कार्यशाला पर हुआ उसमें अग्रणी भूमिका निभाने वाले व्यक्ति का नाम इस्माइल शेख है जिसका गंगासागर क्षेत्र में दबदबा है और यही व्यक्ति आस-पास के क्षेत्रें में जल की आपूर्ति कर करोड़ों रुपये बनाता है पर बदले में इसकी शह पर गंगासागर से सटे क्षेत्रें में खुलेआम गोमांस की बिक्री होती है। एक ओर जहां देश के अन्य तीर्थ स्थलों में गोमांस की बिक्री निषिध्द है वहीं यह क्षेत्र इसका अपवाद है क्योंकि पूरे गंगासागर में मस्जिदों का जाल है और इस्माइल शेख की दादागीरी है। रही सही कसर कम्युनिष्ट सरकार ने पूरी कर दी है और यहां तीर्थ कर लगता है। गंगासागर में प्रवेश करने के बाद आंखों के सामने मुगलकालीन दृश्य उपस्थित हो जाता है और ऐसा प्रतीत होता है मानो इस्लामी क्षेत्र में हिन्दू अपने लिये तीर्थ की भीख मांग रहा है। यह पहला अवसर है जब पश्चिम बंगाल में कम्युनिष्ट और इस्लामवादियों ने मिलकर किसी हिन्दू तीर्थ पर आक्रमण किया है।
पश्चिम बंगाल की यात्र के बाद इस्लामीकरण की आशंका तब पूरी तरह सत्य सिध्द हुई जब कोलकाता से गंगासागर तक पड़ने वाले क्षेत्रें की भूजनांकिकीय स्थिति के बारे में लोगों ने बताया। कुछ क्षेत्र और जिले तो ऐसे हैं जहां दस वर्षों में जनसंख्या की वृध्दि की दर 200 प्रतिशत रही है। कभी-कभार कुछ जिलाधिकारियों या आईएएस अधिकारियों ने अपनी ओर से अपने क्षेत्र की जनसंख्या का हिसाब किया लेकिन जिन लोगों ने इस विषय में अधिक रुचि दिखाई उनका स्थानांतरण कर दिया गया। फिर भी भगोने के एक चावल से पूरे चावल का अनुमान हो जाता है और उस अनुमान के आधार पर कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में इस समय जनसंख्या का अनुपात पूरी तरह बिगड़ गया है और इसका सीधा असर इस्लामवादियों की आक्रामकता में देखा जा सकता है।
मुस्लिम घुसपैठियों की जनसंख्या से जहा एक ओर इस राज्य के इस्लामीकरण का खतरा उत्पन्न हो गया है वहीं कम से एक करोड़ हिन्दू इस राज्य में ऐसा है जिसे देश या राज्य के नागरिक का दर्जा नहीं मिला है। एक ओर जहां बीते दशकों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का स्वागत इस राज्य में राजनीतिक दलों ने दोनों हाथों में हार लेकर किया है वहीं 1971 के बाद से बांग्लादेश से आए हिन्दुओं का नाम भी मतदाता सूची में नहीं है और यदि उन्हें नागरिक का दर्जा दिया भी गया है तो पिता का नाम हटा दिया गया है। इस पर तीखी टिप्पणी करते हुए बंगाल के एक हिन्दू ने कहा कि हमें तो सरकार ने हरामी बना दिया और बिना बाप का कर दिया। लेकिन इस ओर किसी भी राजनीतिक दल का ध्यान नहीं जाता। एक बड़ा खतरा यह भी है कि मुस्लिम घुसपैठी न केवल मतदाता सूची में अंकित हैं, या उनके पास राशन कार्ड है, उन्होंने अपना नाम भी हिन्दू कर लिया है और सामान्य बांग्लादेशियों के साथ घुलमिल गए हैं। यह इस्लामी आतंकवादियों और इस्लामवादियों के सबसे निकट हैं जो कभी भी राज्य की सुरक्षा और धार्मिक सौहार्द के लिए खतरा बन सकते हैं।
ऐसा नहीं है कि बढ़ते इस्लामीकरण का असर देखने को नहीं मिल रहा है। जेल में एक माह बिता चुके एक हिन्दू नेता ने बताया कि डायमण्ड हार्बर जेल में सात नंबर की कोठरी ऐसी है जिसमें केवल मुसलमान कैदी हैं और उन्होंने अपनी कोठरी के एक भाग को कंबल से ढंक रखा है और उसे कंबल मस्जिद का नाम दे दिया है। इस क्षेत्र के आसपास के स्नानागार और शौचालय में काफिरों को जाने की अनुमति नहीं है। यही नहीं हिन्दुओं को ये लोग इस कदर परेशान करते हैं कि उन्हें शौचालय में अपने धर्म के विपरीत दाहिने हाथ का प्रयोग करने पर विवश करते हैं। मुस्लिम कैदियों की एकता और जेल के बाहर उनकी संख्या देखकर जेल प्रशासन भी उनकी बात मानने और उन्हें मनमानी करने देने के सिवा कोई और चारा नहीं देखता।
पश्चिम बंगाल में जिन दिनों हम यात्र पर थे उन्हीं दिनों जम्मू कश्मीर में अमरनाथ यात्र को लेकर चल रहे विवाद के बारे में भी सुना। जेल में तपन घोष से मिलने के बाद जब हम एक घर में भोजन कर रहे थे तो टेलीविजन पर अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने के मामले पर चल रहे विरोध प्रदर्शन पर कश्मीर घाटी के पूर्व आतंकवादी और जेकेएलएफ के प्रमुख यासीन मलिक का बयान आ रहा था कि अमरनाथ यात्र का प्रबंधन पिछले अनेक वर्षों र्से मुस्लिम हाथों में है और इसकी रायल्टी से कितने ही मुस्लिम युवकों को रोजगार मिलता है। कितना भोंडा तर्क है यह कि हिन्दू तीर्थ यात्र का प्रबन्धन मुस्लिम हाथों में हो। क्या ये मुसलमान अजमेर शरीफ का प्रबन्धन, वक्फ बोर्ड का प्रबन्धन, हज का प्रबन्धन हिन्दू हाथों में देंगे तो फिर अमरनाथ यात्र का प्रबन्धन मुस्लिम हाथों में क्यों?
अमरनाथ यात्र को लेकर जो विवाद श्राइन बोर्ड को राज्यपाल द्वारा दी गई जमीन से उठा था उसकी जड़ें काफी पुरानी हैं। 2005 में भी जब तत्कालीन राज्यपाल ने अमरनाथ यात्र की अवधि बढ़ाकर 15 दिन से दो माह कर दी थी तो भी तत्कालीन पीडीपी मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने इसका विरोध कर इस प्रस्ताव को वापस यह कहकर किया था कि प्रदूषण होगा और सुरक्षा बलों को यात्र में लगाना पड़ेगा जिससे कानून व्यवस्था पर असर होगा। बाद में सहयोगी कांग्रेस के दबाव के चलते मुफ्ती को झुकना पड़ा था और यात्र की अवधि बढ़ गई थी। इसी प्रकार मुख्यमंत्री रहते हुए मुफ्ती ने राज्यपाल एस.के.सिन्हा के कई निर्णयों पर नाराजगी जताई थी। मुफ्ती ने कुछ महीने पूर्व जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी मुद्रा चलाने का भी सुझाव दिया था। पीडीपी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती तो खुलेआम पाकिस्तान की भाषा बोलती हैं। ऐसे में अमरनाथ यात्र को लेकर हुआ विवाद तो बहाना है, असली निशाना तो कश्मीर का इस्लामीकरण है। कश्मीर का इस्लामीकरण पूरी तरह हो भी चुका है। यही कारण है कि वहां की सरकार ने घुटने टेक दिए और इस्लामी शक्तियों की बात मान ली। परंतु कश्मीर में हुए इस विरोध और सरकार को झुका लेने के इस्लामी शक्तियों के अभियान के अपने निहितार्थ हैं और ऐसे ही प्रयास स्थानीय विषयों को लेकर प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्रें में होंगे। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र अब अगले निशाने पर होंगे जब वहां से एक और पाकिस्तान की मांग उठेगी। इससे पूर्व कि भारत के इस्लामीकरण का मार्ग प्रशस्त हो और देश धार्मिक आधार पर कई टुकड़ों में विभाजित हो जाए, हमें अपनी कुम्भकर्ण निद्रा त्याग कर इस्लाम के खतरे को पहचान लेना चाहिए जो अब हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।
अमिताभ त्रिपाठी
आप कई कड़वे सच सामने लाये हैं. एक आंदोलित कर देने वाला लेख.
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