सनातन धर्म हिन्दु समाज के रग-रग में बसे भगवान राम के बारे में शायद ही कोई अभागा व्यक्ति होगा जो नही जानता होगा कि भगवान राम कौन थे? उनकी जन्मस्थली किस जगह पर हैं? जो व्यक्ति सनातन धर्म हिन्दु समाज से नहीं हैं अर्थात जो अन्य देश या धर्मों से जुड़े हैं वही व्यक्ति श्रीराम के बारे में प्रश्न कर सकता हैं लेकिन जो इसी देश याने हिन्दुस्थान में पैदा हुआ है और जो हिन्दु समाज से ही ताल्लुक रखता हैं अगर वह व्यक्ति भगवान राम के अस्तित्व पर प्रश्न उठाता है तो मुझे उसके ही व्यक्तित्व पर शंका होती हैं कि वह कहीं वर्णसंकर प्रजाती से तो नहीं हैं? क्योकि सिर्फ वर्णसंकर हिन्दु ही भगवान राम के अस्तित्व को नकार सकता हैं, दुसरा कोई नहीं!
वर्णसंकर प्रजाति से होने वाले नुकसानों से भगवान श्रीकृष्ण ने भी श्रीमद्भगवत गीता के माध्यम से लोगों को सावधान किया हैं-
सक्ड.रो नरकायैव कुलन्घानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरो हयोषां तुप्तपिण्डोदकक्रिया:॥
दोषैरेतै: कुलन्घानां वर्णसंकर कारकै:।
उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्रच शाश्वता:॥
अर्थात-: वर्णसंकर सन्तानों की वृद्धि से निश्चय ही परिवार के लिए तथा परिवारिक परंपरा को विनष्ट करने वालों के लिए नारकिय जीवन उत्पन्न होता है ऐसे पतित कुलों के पुरखे (पीतर) नर्क में जाते है क्योकि उन्हे जल तथा पीण्ड दान देने की क्रियाएं समाप्त हो जाती है, जो लोग कुल परंपरा को विनष्ट करते है और इस तरह वर्णसंकर संतानों को जन्म देते है उनके दुष्कर्मों से समस्त प्रकार की समुदायिक योजनाएं तथा पारिवारिक कल्याण-कार्य विनष्ट हो जाते हैं। (भगवत्गीता 1.41-42)
वर्णसंकर या राक्षस वंश हर युग में भगवान के विरोधी रहे है इस कलयुग में भी अगर कोई असुरी शक्ति भगवान के अस्तित्व को चुनौती देती है तो यह कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है यह तो हमेशा से होता आया है और आगे भी होगा। प्रकृति का नियम भी यही कहती हैं। इन्ही बातों से दैवीय या असुरी वंशजों (वर्णसंकर) की पहचान भी होती हैं।
असुरी शक्तियों द्वारा हर युग मे भगवान के अस्तित्व उनके निशान एवं पहचान को नष्ट करने की कुचेष्टा की गई हैं, ऐसा हमें अनेक धार्मिक ग्रंथ, शास्त्र-पुराणों में उदाहरण मिल जाएंगे, चाहे वह रावण हो या कंस, हिरंण्यकश्यप हो या भस्मासुर या और भी अनेंक असुरों द्वारा।
यही कुचेष्टा इस कलयुग में भी जारी है जैसे- महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मंदिर को ध्वस्त किया, महमुद गोरी ने विक्रमादित्य द्वारा स्थापित किया मिहिरावली के मंदिर-संकुल को तोड़ा और उसकी छाती में अपनी जीत की निशानी मस्जिद कुत्वतुलइस्लाम खड़ी की, फिर मलिक कफुर ने अलाउद्दीन खीलजी के साथ मिलकर दक्षिण भारत में कहर बनकर टुटा और देवगीरि को दौलताबाद बनाता हुआ रामेश्वरम के ऐतिहासिक मंदिर को तोड़ा, बहमनी सुल्तानों ने विजय नगर में खुनी आतंक खेला जो हम्पी के खंडहर आज भी खड़ें गवाही दे रहे हैं, बाबर ने अयोध्या का भव्य राम जन्मभूमि को ध्वस्त किया, औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि पर खड़े भव्य मंदिर को तोड़कर उस पर अपनी आसुरी विजय के प्रतीक मस्जिद और ईदगाह खडी की, निरंजन ठाकुर ने कामाख्या देवी के मंदिर को ध्वस्त किया तो सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह भी धनुष कोटी के रामसेतु को तोड़ने पर आमादा हैं। हमारे देश में आज भी इन आसुरी सम्राटों को मानने वालों की कमी नहीं है। जो आसुरी शक्ति हमारे ही राष्ट्र में आकर हम पर ही जुल्म ढाया, हमारी संस्कृति को नष्ट करने की चेष्टा की गई, हमारे अराध्य देवी देवताओं के प्रति अपशब्द एवं उनके अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की गई और हम पर ही राज किया, उसके बाद भी जो लोग इन्हें पुज्य मानकर अपना आदर्श मानते है वे वर्णसंकर नहीं तो और क्या हो सकते हैं।
सत्ता का मद शासक को अंधा बनाकर सही और गलत का भेद मिटा देता है। द्वापर और त्रेता युग में रावण और कंस दोनों को राम और कृष्ण के बारे में पुरी सच्चाई मालुम था कि ये भगवान हैं, लेकिन फिर भी उन दोनों ने हमेशा ही अपनी सत्ता के अहम को पहली प्राथमिकता दी और नतीजतन अपने विनाश को ही आमंत्रित किया। यही हाल कलयुग में भी चाहे जितने सनातन धर्म के विरोधी शासक अपने हिन्दुस्थान में राज किया सभी ने सच्चाई जानते हुए भी भगवान के अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की हैं, नतीजा वे खुद ही मिट गए। अब उसी रस्ते पर हिन्दुस्थान के वर्तमान सरकार भी चलने जा रही हैं। कहते हैं न ”विनाश काले विपरित बुद्धि।”
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