शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

अखण्ड भारत

पन्द्रह अगस्त का दिन कहता,
आजादी अभी अधूरी है।

सपने सच होने बाकी हैं,
रावी की शपथ न पूरी है।
लाशों पर पग धर कर,
आजादी भारत में आई।
अब तक हैं खानाबदोश,
गम की काली बदली छाई॥
के फुटपाथों पर, जो आंधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥
के नाते उनका दुख सुनते, यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो, सभ्यता जहां कुचली जाती॥
इन्सान जहां बेचा जाता, ईमान खरीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियां भरता है, डालर में मुस्काता है॥
को गोली, नंगों को हथियार पिन्हाये जाते हैं।
सूखे कण्ठों से, जेहादी नारे लगवाये जाते हैं॥

लाहौर, कराची, ढाका पर, मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है, गमगीन गुलामी का साया॥

बस इसीलिए तो कहता हूं, आजादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊं मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥

दूर नहीं खण्डित भारत को, पुन: अखण्ड बनायेंगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक, आजादी पर्व मनायेंगे।

उस स्वर्ण दिवस के लिए, आज से कमर कसें, बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें॥

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