सोमवार, 10 जनवरी 2011

पाकिस्तान को थमाया जा रहा देश के खिलाफ प्रचार का हथियार

हिंदुस्तान के हिंदुओं का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि विभाजन के 63 वर्षों बाद भी उन्हें अपना हिंदू राष्ट्र नहीं मिल सका। तकरीबन सौ साल की कुर्बानी भरे संघर्षों के बाद मिला भी तो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र। विश्व के हर देश के पास अपनी भाषा, अपनी सभ्यता-संस्कृति के अनुरूप उनकी पहचान है लेकिन विश्वभर में फैले करीब एक करोड़ हिंदुओं का अपना कोई मुल्क नहीं है। अब हिंदु संगठनों के साथ आतंकवादी शब्द जोड़ कर हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को समाप्त करने की गहरी साजिश रची जा रही है। भारत के इतिहास, संस्कृति, संस्कार से अनभिज्ञ कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व और उसके नैसिखिए राजनीतिक मां-बेटे की पार्टी को सबसे बफादार साबित करने में देश के अस्तित्व को ही संकट में डालने का काम कर रहे हैं।

वाराणसी प्रवास के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता व सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी की यह चिंता काबिले गौर है कि कांग्रेस के बबुआ और बचवा वोट बैंक के खेल में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ प्रचार का हथियार थमा रहें है। उनके इस राजनीतिक खेल पर अंकुश नहीं लगा अथवा लगाया गया तो देश को एक और विभाजन का दंश झेलना पड़ सकता है। उनका यह दुःख भी जायज ही है कि देश में बहस समस्याओं के समाधान पर होनी चाहिए न कि समस्या पैदा करने की लेकिन कांग्रेस उल्टी गंगा बहा रही है। भय, भूख, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं के समाधान तो कर नहीं पा रही है उल्टे हिंदू संगठनों को लश्करे तैयबा से ज्यादा खतरनाक बता कर देश के अस्तित्व को ही खतरे में डालने का काम कर रही है। भाजपा के वयोवृद्ध नेता की यह चिंता मौजूदा राजनीतिक परिदृष्य में राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक एकता के सामने सवालिया निशान खड़ा करता है। अधिक नहीं बीते एक दशक के राजनीतिक बदलाव की समीक्षा की जाए तो समझ में आ जाता है कि वोट बैंक की अंधी दौड़ में राजनीतिक तुष्टीकरण के कई दंश देश और समाज को झेलने पड़े हैं। इतना ही नहीं हिंदू सभ्यता-संस्कृति को समाप्त कर पश्चिम की मजहबी संस्कृति को देश पर थोपने जैसे प्रयास किये जा रहे हैं। हालात तो यहां तक आ पहुंचे हैं कि हिंदुस्तान में किसी संगठन के आगे हिंदु लिखना अब बड़े अपराध की श्रेणी में ला खड़ा करता है। हिंदुस्तान में ही मुसलमान, ईसाई, पारसी सभी को अपने धर्म-संप्रदाय के अनुरूप जीने-खाने और उसके प्रचार-प्रसार का अधिकार है लेकिन हिंदू संगठनों को इसका अधिकार नहीं है। जाहिर है हिंदुत्व कमजोर होगा तो पूरा विश्व संकट में आ जाएगा। क्योंकि विश्व समाज में अनादिकाल से सत्य-असत्य और धर्म-अर्धम के बीच संघर्ष होता रहा है और अंत में जीत सत्य व धर्म की हुई है। सच तो यह है कि हिंदू विश्व के जिस कोने में गए वहां शांति, सद्भभाव और अहिंसा का ही संदेश दिया। हिंदुत्व का आचरण व्यापक, विश्व कल्याण व शांति का संदेश देने वाला ही रहा है। कुल मिलाकर हिदू चिंतन किसी के विरोध में नहीं बल्कि सर्वे भवंतु सुखिनः की ही कामना करता है। देखा जा रहा है कि इन दिनों देश में दो धाराएं चल रही है। वोटबैंक को राष्ट्रीय राजनीति से जुड़ा एक तबका हिंदुत्व को संकुचित व सांप्रदायिक मानता हैं वहीं दूसरी धारा हिंदू समाज व हिंदुत्व के चिंतन को सशक्त बनाने में क्रियाशील है। यहां हिंदू समाज के चिंतन से अनभिज्ञ राजनितिक तबके को याद दिलाना जरूरी है कि यह वही हिंदू समाज है जिसने इस देश में मुस्लिम, पारसी, ईसाई धर्म से जुड़े लोगों को उसी तरह स्वीकार किया जिस तरह सागर विभिन्न नदियों को बिना किसी भेद के स्वीकार कर लेता है।

यह सच है कि स्वतंत्रता के बाद संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया गया लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि देश में हिंदुत्व चिंतन पर रोक लगा दिया गया हो। बल्कि देश में किसी जाति-धर्म का भेदभाव न करते हुए उन्हें अपनी जाति-धर्म के अनुरूप जीवनयापन की आजादी देना है। मुसलमान, ईसाई जब भारत आए तो यहां पहले से न मस्जिद थी और ना ही गिरजाघर। हिंदुस्तान के हिंदुओं की विश्व बंधुत्व का ही तकाजा है कि उन्हें इबादत करने के लिए खुले दिल से जगह मिली। वहीं आज हिंदुस्तान में अपनी ही सरजमी पर राममंदिर बनाने जब हिंदू निकलता है तो उसे आतंकवादी ठहराया जा रहा है। राष्ट्रहित की सोचने वाले इंद्रेश कुमार सरीखों पर कीचड़ उछाला जा रहा है। दुःख इस बात का है कि कीचड़ फेकने का काम ऐसे लोग कर रहे हैं जिन्हें सिमी व संघ में कोई फर्क नजर नहीं आता। अंग्रेजी हुकूमत की नीति फूट करो, राज करो को आजाद हिंदुस्तान में अमल में लाकर तुष्टीकरण की जो नीति अपनी जा रही है उसकी कीमत यह देश अशिक्षा, भुखमरी, बेरोजगारी, हिंसा, दंगा, नक्सलवाद, आतंकवादी, जातिवाद के रूप में भुगत रहा है। राजनीति को समाज सेवा से हटा कर खानदानी व्यापार की शक्ल दी जा रही है। दुर्भाग्य यह भी है कि धीरे-धीरे राष्ट्रीय राजनीति ही इसी ढर्रे पर चल पड़ी है। ऐसे में देश के बारे में सोचने की फुर्सत किसी के पास है। यह एक बड़े सवाल के रूम में देश के सामने आ खड़ा हुआ है। बहस इस पर चलाने की जरूरत है।

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