सोमवार, 23 मई 2011

पाकिस्‍तान में प्रताड़णा झेलने को विवश हिंदू

कराची के ल्यारी इलाके में 13 साल की एक हिंदू लड़की पूनम को पिछले साल मार्च में अपहृत कर लिया गया और उसे अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया. उसके माता-पिता अपनी बेटी पर मौलवियों के प्रभाव को देखकर काफी हैरान थे.

पूनम के 61 वर्षीय चाचा भांवरू ने इंडिया टुडे को बताया, ''वह बेहद डरी हुई थी. उसने मुझे बताया कि अब वह मुसलमान बनकर उनके साथ रहने जा रही है.'' पूनम अब मरियम हो गई है.

मासूम पूनम के इस तरह धर्म परिवर्तन पर किसी ने विरोध में आवाज नहीं उठाई, क्योंकि ल्यारी में लगभग सभी हिंदू परिवार वर्षों से इस धार्मिक अत्याचार को झेल रहे हैं.

पाकिस्तान में अपहरण आम बात है. लेकिन 16.8 करोड़ की आबादी वाले मुसलमानों के मुल्क में 27 लाख हिंदुओं के समुदाय को जिस बात ने हिला कर रख दिया है, वह है छोटी उम्र की लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन. बहुत से लोगों का मानना है कि यह काम एक साजिश के तहत किया जा रहा है ताकि बचे-खुचे हिंदुओं को पाकिस्तान से बाहर खदेड़ा जा सके.

सिंध प्रांत में नवाब शाह नामक जगह के 46 वर्षीय सनाओ मेघवार कहते हैं, ''हम चिंतित हैं. हमने अपने बच्चों को भारत या किसी अन्य देश में भेजना शुरू कर दिया है. हम भी जल्द ही यहां से जाने की तैयारी कर रहे हैं.'' उनके लिए चिंतित होने का कारण भी है. स्थानीय एजेंसियों की ओर से किए गए शोध के मुताबिक पाकिस्तान में हर महीने औसतन 25 हिंदू लड़कियों का अपहरण होता है और उनका जबरन धर्म परिवर्तन किया जाता है.

विभाजन के समय 1947 में पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी करीब 15 फीसदी थी, जो अब मात्र 2 फीसदी रह गई है. कई हिंदू पाकिस्तान छोड़ कर चले गए हैं, तो उनसे ज्‍यादा हिंदू मारे जा चुके हैं और कुछ ने जिंदा रहने के लिए इस्लाम को स्वीकार कर लिया है.

हिंदुओं को सिर्फ अलग मतदाता के तौर पर मतदान की इजाजत है और उन्हें अपनी शादियां पंजीकृत कराने का अधिकार नहीं है. रावलपिंडी में हिंदू समुदाय के मुखिया जगमोहन कुमार अरोड़ा बताते हैं कि देश के कुल 428 मंदिरों में से सिर्फ 26 में ही पूजा-पाठ होता है.

उनकी तकलीफों का यहीं अंत नहीं है. 19 जुलाई, 2010 को रावलपिंडी के श्मशान घाट को, जहां हिंदू और सिख अपने सगे-संबंधियों की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार करते थे, खत्म कर दिया गया. अरोड़ा सवाल करते हैं, ''अगर मस्जिदों को तोड़ कर वहां घर बना दिए जाएं तो मुसलमानों को कैसा लगेगा?''

भारत में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के परिणामस्वरूप होने वाले दंगों के बाद हिंदुओं पर हमले बढ़ गए हैं. पाकिस्तान में हिंदू भारत में होने वाली सांप्रदायिक घटनाओं और कश्मीर में हिंसक वारदात से आम तौर पर सीधे प्रभावित होते हैं.

पाकिस्तान के एक स्वयंसेवी संगठन नेशनल कमीशन फॉर जस्टिस ऐंड पीस की 2005 की रिपोर्ट में पाया गया कि पाकिस्तान स्टडी.ज की पाठ्यपुस्तकों को हिंदुओं के खिलाफ नफरत पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि ''निंदात्मक वैरभाव सैनिक और निरंकुश शासन को वैध बनाता है और घृणा की मानसिकता को जन्म देता है.

पाकिस्तान स्टडी.ज की पुस्तकें भारत को दुश्मन पड़ोसी देश के तौर पर पेश करने में काफी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं.'' इसी रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ''पाकिस्तान के अतीत की कहानी जान-बूझ्कर अलग ढंग से लिखी गई है, और यह भारत में इतिहास की जिस तरह व्याख्या की गई है उससे अकसर एकदम उलट होती है. सरकार द्वारा जारी की गई इन पुस्तकों में विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है कि हिंदू पिछड़े और अंधविश्वासी लोग होते हैं.''

एक प्रतिष्ठित पाकिस्तानी विद्वान 61 वर्षीय परवे.ज हूडभाय कहते हैं पाकिस्तानी स्कूलों का इस्लामीकरण 1976 में तब शुरू हुआ जब एक एक्ट ऑफ पार्लियामेंट के तहत जरूरी कर दिया गया कि सभी सरकारी और निजी स्कूल (सिवा उन स्कूलों के जहां ग्रेड 9 से ब्रिटिश ओ-लेवेल पढ़ाया जाता है) ग्रेड 5 के सामाजिक अध्ययन में इस तरह के विषयों को पढ़ाएं- ''पाकिस्तान के खिलाफ काम कर रही ताकतों की पहचान करो'', ''जिहाद, और पाकिस्तान के खिलाफ भारत के बुरे इरादों पर भाषण दो.''

पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की परिषद के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता अमरनाथ मोटूमल ने इंडिया टुडे को बताया, ''अकेले कराची में हिंदू लड़कियों का अपहरण आम बात है. लोग डरे हुए हैं. ये अपहरण और धर्म परिवर्तन इलाके के प्रभावशाली लोगों द्वारा करवाए जाते हैं. इससे पीड़ित लोग अपनी जान गंवाने के डर से मुंह बंद रखना ही ठीक समझ्ते हैं.''

प्रांतीय विधानसभा के एक पूर्व सदस्य भेरूलाल बलानी भी इस बात से सहमत हैं. वे कहते हैं कि अपहृत की जाने वाली हिंदू लड़कियां ज्‍यादातर निचले तबके की होती हैं. अधिकारियों का कहना है कि पिछले तीन महीनों में सिंध के दूरदराज के इलाकों में हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं. यहां जबरन धर्म परिवर्तन से लेकर बलात्कार और हत्या की कम-से-कम नौ घटनाएं हो चुकी हैं.

एक घटना नगरपारकर इलाके की है. वहां 17 साल की एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया जबकि एक अन्य वारदात आकली गांव की है, जिसकी एक 15 वर्षीया लड़की का अपहरण करके उसका जबरन धर्म परिवर्तन किया गया. आकली गांव की घटना के बाद तुरंत 71 हिंदू परिवार घर-बार छोड़कर हमेशा के लिए राजस्थान चले गए. सिंध प्रांत के कोटरी कस्बे में हिंदू समुदाय के सदस्यों ने हाल ही में किशोरवय की चार लड़कियों अनीता, किशनी, अजय और सागर के अपहरण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.

पाकिस्तान में हिंदुओं की दुर्दशा की बात इस साल जनवरी में तब सामने आई जब बलूचिस्तान प्रांत के कलात जिले में काला माता मंदिर के पदाधिकारी और हिंदू आध्यात्मिक नेता 82 वर्षीय लक्की चंद गारजी का कुछ अज्ञात लोगों द्वारा उनके अपने ही घर से अपहरण कर लिया गया. उन्हें 50 करोड़ रु. की फिरौती देने के बाद अप्रैल में छोड़ा गया लेकिन यह मामला आज तक अनसुलझा ही रहा.

हिंदुओं के खिलाफ भेदभाव की जानकारी मिलने के बाद पाकिस्तान की 43 वर्षीया सांसद मारवी मेमन ने, जो पाकिस्तान मुस्लिम लीग-.कैद (पीएमएल-क्यू) की सदस्य हैं, इसकी आलोचना की है. वे इसे सरकार की पूरी नाकामी मानती हैं. इस भेदभाव का विरोध करने वाली एकमात्र सांसद मेमन कहती हैं, ''दुख की बात यह है कि इन अपहरणों के परिणामस्वरूप तमाम हिंदू परिवार भारत चले गए हैं. आखिरकार पाकिस्तान में हर समय दहशत में जीने से अच्छा है कि वे दूसरे मुल्क में चले जाएं.

पाकिस्तान में मुस्लिम समुदाय के असरदार लोगों के हाथों हिंदुओं का अपमानित होना आम बात हो चुकी है.'' वे एक घटना के बारे में बताती हैं कि सिंध में किस तरह दिनेश नाम के एक हिंदू लड़के ने मुसलमानों के लिए बनाए गए प्याऊ से पानी पी लिया था तो उसके बाद हिंदू समुदाय के कई लोगों पर हमले किए और उन्हें उनके घरों से जबरन बाहर खदेड़ा गया था. दिनेश के पिता मीरूमल, जो उस हमले के समय मौजूद थे, बताते हैं, ''उसे बुरी तरह पीटा गया था.''

वर्षों तक दब कर रहने के बाद हिंदुओं में अपनी पहचान की भावना खत्म हो चुकी है. मेमन कहती हैं, ''वे ऐसे लोग बन चुके हैं, जिनकी कोई पहचान नहीं है. अगर पाकिस्तान के हिंदुओं के लिए कोई जागरूकता और चिंता नहीं होगी तो वे बिना आवाज वाले लोग रह जाएंगे और धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे.''

पेशावर के 62 वर्षीय जगदीश भट्टी लंबे समय तक सेना में रहे लेकिन भी भेदभाव से बचाने के लिए कोई गांरटी नहीं थी. उनके बेटों रमेश और लाल को नौकरी पाने के लिए मुस्लिम नाम रखना पड़ा. रमेश (अब अहमद चौहान) एक निजी बहुराष्ट्रीय बैंक में काम करते हैं और लाल (नदीम चौहान) पेशावर जिले में नगरपालिका के अधिकार वाले खाद्य गोदाम में सुपरवाइजर का काम करते हैं.

रमेश भट्टी ने इंडिया टुडे को बताया, ''अपनी पूरी पढ़ाई के दौरान मुसलमान अध्यापकों और सहपाठियों के साथ हमारे रिश्ते अच्छे रहे हैं. लेकिन जब नौकरी पाने के लिए मुस्लिम नाम रखने को कहा गया तो हम दंग रह गए.''

सिंध प्रांत के लरकाना में हिंदू समुदाय के लोग 18 साल की हिंदू छात्रा सुंदरी की त्रासद कहानी बयां करते हैं. 2004 में एक दिन सुंदरी अपने कॉलेज से घर वापस नहीं आई. काफी खोजबीन करने के बाद उसका परिवार पुलिस के पास गया. दो हफ्ते बाद पुलिस ने परिवार को बताया कि सुंदरी एक स्थानीय ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करने वाले कमाल खान के साथ भाग गई है और मुसलमान बन गई है.

सुंदरी के माता-पिता को यह भी बताया गया कि उनकी बेटी अपना नया धर्म घोषित करने के लिए जल्दी ही कोर्ट में हाजिर होगी. कुछ पुलिसकर्मियों और लंबी दाढ़ी वाले कुछ लोगों के साथ सुंदरी अदालत में हाजिर हुई और उसने कहा, ''मैं, सुंदरी, हिंदू माता-पिता की संतान हूं. लेकिन अब वयस्क होकर मुझे एहसास हुआ है कि मैंने जिस धर्म में जन्म लिया वह सही नहीं है. इसलिए अपने पूरे होशो-हवास में, बिना किसी की जोर-जबरदस्ती के मैंने अपने माता-पिता और धर्म से अलग होकर इस्लाम को अपनाने का फैसला किया है.''

जज ने उसके धर्म परिवर्तन को स्वीकार कर लिया और सुंदरी को तुरंत वहां से हटाकर किसी अज्ञात जगह पहुंचा दिया गया. माना जाता है कि उसने बाद में कमाल से शादी कर ली लेकिन जल्दी ही दोनों में तलाक हो गया. इसके बाद उसने पड़ोस के एक और मुस्लिम लड़के से शादी की. वह शादी भी टूट गई. फिर सुंदरी ने तीसरी शादी की. लेकिन इस शादी के कुछ ही दिन बाद उसे रहस्यमय हालत में मृत पाया गया. उसके माता-पिता का मानना है कि उसकी हत्या कर दी गई, जबकि उसके तीसरे पति का कहना है कि उसने खुदकुशी की थी.

कराची में हिंदू पंचायत के सदस्य लालजी मेघवार कहते हैं, ''हिंदू लड़कियों का इस तरह अपहरण आम बात है. इसके बाद लड़कियों को उस कागज पर दस्तखत करने के लिए कहा जाता है, जिसमें लिखा होता है कि वे अपनी मर्जी से मुसलमान बन गई हैं.''

पिछले साल कराची में एक फैक्टरी में काम करने वाले 27 वर्षीय जगदीश कुमार की हत्या उनके कुछ मुस्लिम सहकर्मियों ने कर दी. उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने इस्लाम की निंदा की थी. पुलिस और फैक्टरी के अधिकारियों ने कुमार पर हमले को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया. बताया जाता है कि कुमार किसी मुस्लिम लड़की से प्यार करते थे.

सितंबर, 2010 में सिंध प्रांत के हैदराबाद में आयकर निरीक्षक 32 वर्षीय अशोक कुमार दुकानदारों से आयकर इकट्ठा करने गए. टैक्स देना तो दूर, एक दुकानदार ने उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने उसे दाढ़ी खींच कर ले जाने की धमकी दी. कुछ ही मिनटों में दुकानदारों ने जुलूस निकालकर मांग की कि अशोक कुमार को सबक सिखाया जाए.

इसके चलते दो दिन की हड़ताल रही. अशोक कुमार को न सिर्फ नौकरी से निलंबित कर दिया गया, बल्कि इस्लाम की तौहीन के जुर्म में उन्हें कैद की स.जा सुनाई गई. एक सूत्र का कहना है कि तभी से वे और उनका परिवार गायब है.

उसी महीने में आंख के विशेषज्ञ 52 वर्षीय डॉ. कन्हैया लाल का लरकाना में अपहरण कर लिया गया. उन्हें पांच लाख रु. की फिरौती पर छोड़ा गया. लरकाना जिले के बदाह कस्बे में एक और हिंदू दर्शन लाल (50 वर्ष) ने जब अपने अपहरण का विरोध किया तो उनकी हत्या कर दी गई. पिछले पांच वर्षों में सुक्कुर से कम-से-कम 23 जाने-माने हिंदुओं का अपहरण किया जा चुका है.

पुलिस अधिकारियों ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर इंडिया टुडे को बताया कि कई हिंदू जबरन वसूली करने वाले गिरोहों को नियमित भत्ता (सुरक्षा शुल्क) देते हैं. पाकिस्तान में हिंदुओं का कहना है कि सरकार और न्यायपालिका की उपेक्षा के कारण उनकी असुरक्षा और बढ़ गई है.

इस्लामाबाद के एक राजनीति विश्लेषक पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताते हैं, ''भारत-पाकिस्तान युद्ध से लेकर बाबरी मस्जिद ढहाए जाने तक पाकिस्तान में हिंदुओं को दुश्मन के रूप में देखा जाता रहा है और उन पर जुल्म किया जाता रहा है.'' वे हाल ही में एक अखबार के संपादक के साथ एक हिंदू कारोबारी के झ्गड़े का हवाला देते हैं, जिसमें उस व्यापारी ने संपादक को कार देने से इनकार कर दिया था.

उस अखबार ने अगले ही दिन अपने संपादकीय में उस व्यापारी को आतंकवादियों को हथियार मुहैया कराने वाला भारतीय एजेंट बता दिया. सिंध के कंधकोट शहर में एक हिंदू व्यापारी का कहना है, ''50 वर्षों से हमें वानियो या बनिया कहकर संबोधित किया जाता है, जिसे इस इलाके में अपमानजनक शब्द माना जाता है.''

इस संस्थागत भेदभाव को खत्म करने की मांग करते हुए पाकिस्तान के अनुसूचित जाति अधिकार आंदोलन (एससीआरएम) ने हिंदू विवाह के पंजीकरण की अनुमति के कानून बनाने पर जोर दिया है. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की ओर से 23 नवंबर, 2010 के एक आदेश में सरकार से हिंदू विवाहों को वैध बनाए जाने वाला कानून तैयार करने के लिए कहा गया है.

एससीआरएम ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने कदम नहीं उठाया तो इस मुद्दे को सामने लाने के लिए देश भर में हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जाएगा. हिंदू महिलाएं अकसर कंप्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (सीएनआइसी) के मामले में भेदभाव की शिकायत करती रही हैं.

कराची की 45 वर्षीया संगीता देवी कहती हैं, ''अगर हम विवाह का पंजीकरण प्रमाणपत्र नहीं दिखा सकते हैं तो हम सीएनआइसी हासिल करने के अधिकारी नहीं हैं. और इस तरह हमें मतदान का अधिकार नहीं मिल सकता. हमारे पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है.'' संगीता हिंदू विवाह के पंजीकरण की मांग करने वाले अभियान की अगुआ रही हैं. दक्षिणी पंजाब के रहीम यार खान में रहने वाली 34 वर्षीया हिंदू महिला शामी माई कहती हैं, ''तलाक या घरेलू हिंसा के मामले में हिंदू महिला कोई शिकायत नहीं कर सकती क्योंकि उसके पास अपनी शादी को कोई दस्तावेज ही नहीं होता है.

अगर वह अदालत को यही नहीं बता पाएगी कि उसका पति कौन है तो अदालत उसकी समस्या पर कैसे विचार करेगी.'' यहां तक कि हिंदू महिलाओं के लिए सफर करना भी एक समस्या है. इस्लामाबाद की 37 वर्षीया नैना बाई की शिकायत है, ''अगर हम किसी होटल में रुकते हैं तो पुलिसवाले और होटल के कर्मचारी हमारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं. हमें मजबूरी में फुटपाथ पर रातें गुजारनी पड़ती हैं.''

अगर किसी राष्ट्र के चरित्र की पहचान इस बात से होती है कि वह अपने यहां के अल्पसंख्यकों के साथ क्या सलूक करता है, तो पाकिस्तान में हिंदुओं की दुर्दशा के मद्देनजर उसे एक नाकाम मुल्क कहना गलत नहीं होगा.

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