रविवार, 11 जुलाई 2010

गांधी का अहं

भारतीय स्‍वतंत्रता के इतिहास में एक ऐसा समय भी आया जब गांधी जी को अपने अस्तित्व पर संकट नज़र आने लगा था। गांधी जी को एहसास होने लगा था कि अगर अब प्रतिरोध नही किया गया तो, “गांधी” से भी बड़ा कोई नाम सामने आ सकता है। जो स्‍वतंत्रता की लड़ाई “गांधी” नाम की धूरी पर लड़ा जा रहा था, वह युद्ध कहीं किसी और के नाम से प्रारम्‍भ न हो जाये। वह धूरी गांधी जी को नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस के रूप में स्‍पष्‍ट दिखाई दे रहा था। यह एक ऐसा नाम था जो गांधी जी को ज्‍य़ादा उभरता हुआ दिखाई दे रहा था। देश की सामान्‍य जनता सुभाष बाबू में अपना भावी नेता देख रही थी। सुभाष बाबू की लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगनी बढ़ रही थी। जो परिस्थितियॉं गांधी जी ने अपने अरमानों को पूरा करने के‍ लिये तैयार की वह सुभाष चन्‍द्र बोस के सक्रिय रूप से समाने आने पर मिट्टी में मिलती दिख रही थी। गांधीजी को डर था कि जिस प्रकार यह व्‍यक्ति अपने प्रभावों में वृद्धि कर रहा है वह गांधी और नेहरू के प्रभाव को भारतीय परिदृश्य से खत्‍म कर सकता है। इन दोनों की भूमिका सामान्य स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भांति होने जा रही थी। गांधी और नेहरू की कुटिल बुद्धि तथा अंग्रेजों की चतुराई को यह कदापि सुखद न था। इस भावी परिणाम से भयभीत हो नेता जी को न केवल कांग्रेस से दूर किया गया बल्कि समाज में फैल रहे उनके नाम को समाप्‍त करने का प्रयास किया गया। यह व्‍यवहार केवल नेता जी के साथ ही नही हर उस स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ किया गया जो गांधी जी के अनर्गल प्रलापों का विरोधी था और उनकी चाटुकारिता करना पंसद नही करता था तथा देश की आज़ादी के लिये जिसके मन में स्‍पष्‍ट विचार थे।

गांधी और सुभाष का स्‍वतंत्रता संग्राम में आने में एक समानता थी कि दोनों को ही इसकी प्रेरणा विदेश में प्राप्‍त हुई। किन्‍तु दोनों की प्रेरणाश्रोत में काफी अन्‍तर था। गांधी जी को इसकी प्रेरणा तब मिली जब दक्षिण आफ्रीका में अंग्रेजो द्वारा लात मार कर ट्रेन से उतार दिया गया, और गांधी जी को लगा कि मै एक कोट पैंट पहने व्‍यक्ति के साथ यह कैसा व्‍यवहार किया जा रहा है? अंग्रेजों द्वारा लात मारने घटना गांधी जी को महान बनाने में सर्वप्रमुख थी। अगर गांधी जी के जीवन में यह घटना न घटित हुई होती तो वह न तो स्‍वतंत्रता के प्रति को ललक होती, और न ही आज राष्‍ट्रपिता का तमका लिये न बैठे होते, न ही उनकी गांधीगीरी अस्‍तित्‍व में हो।

वही सुभाष चन्‍द्र बोस इग्लैन्‍ड में भारतीय प्रशासनिक सेवा (Indian Civil Service) की परीक्षा के दौरान देश में घट रहे जलियावाला बाग काण्‍ड, रोलट एक्‍ट, तथा काग्रेस के द्वारा इन घटनाओं के परिपेक्ष में असहयोग आंदोलन जैसी घटनाओं प्रभावित हो उन्‍होने स्‍वतंत्रता संग्राम में आना उचित समझा। उनके जह़ान में देश के प्रति प्रेम और इसकी स्‍वतंत्रता के भाव का संचार हो गया। उन्‍होने भारतीय प्रशासनिक परीक्षा चौथे स्‍थान पर रह कर पास की थी। ऊँचा रैंक था, ऊँचा वेतन और किसी राजा से भी बढ़कर मानसम्‍मान एवं सुख सुविधाऐं उन्‍हें सहज प्राप्‍त थी। सुभाष बाबू किसी अग्रेंज ने छुआ तक नही था। किन्‍तु भारत माँ की करूण पुकार ने उन्‍हे देश भक्ति के लिसे प्रेरित किया। उन्‍होने समस्‍त सुख सुविधाओं से त्‍यागपत्र दे दिया। त्‍यागपत्र में कहा-

“मै नही समझता कि कोई व्‍यक्ति अंग्रेजी राज के प्रति निष्‍ठावान भी रहे तथा अपने देश की मन, आत्मा तथा ईमानदारी से सेवा करें, ऐसा संभव नही।”

नेताजी विदेश से लौटते ही देश की सेवा में लग गये और जब 1925 ई. को कलकत्‍ता नगर‍ निगम में स्‍वाराज दल को बहुमत मिला तो उन्‍होने निगम के प्रमुख के पद पर रहते हुऐ अनेक महत्‍वपूर्ण काम किये।

1928 मे जब कलकक्‍ता में भारत के लिये स्‍वशासी राज्य पद की मांग के मुख्‍य प्रस्‍ताव को महात्‍मा गांधी ने प्रस्‍तावित किया। तो सुभाष बाबू ने उसमें एक संशोधन प्रस्‍तुत किया, जिसमें पूर्ण स्‍वाराज की मांग की गई। गांधीजी पूर्ण स्‍वाराज रूपी संसोधन से काफी खिन्न हुए, उन्‍होने धमकी दिया कि यदि संशोधित प्रस्‍ताव पारित हुआ तो वे सभा से बाहर चले जायेगें। गांधी जी के समर्थकों ने इसे गांधी जी की प्रतिष्‍ठा से जोड़ दिया, क्‍योकि अगर गांधी की हार होती है तो निश्चित रूप से समथकों की महत्‍वकांक्षाओं को झटका लगता, क्‍योकि गांधी के बिना वे अपंग़ थे। सर्मथकों की न कोई सोच थी और न ही सामान्‍य जनों के विचारों से उनका कोई सरोकार था। सिर्फ और सिर्फ महत्‍वकांक्षा ही उनके स्‍वतंत्रता संग्राम का आधार थी। यही उनके संग्राम सेनानी होने के कारण थे। गांधी जी की इस प्रतिष्‍ठा की लड़ाई में अंग्रेज सरकार की पौबारा हो रही थी। सुभाष बाबू का संशोधित प्रस्‍ताव 973 के मुकाबले 1350 मतो से गिर गया। गांधी की आंधी के आगे सुभाष बाबू को 973 वोट प्राप्‍त होना प्राप्‍त होना एक महत्‍व पूर्ण घटना थी। यहॉं पर गांधी जी जी का स्‍वा राष्‍ट्र से बड़ा हो गया। गांधी जी के अहं के आगे उन्ही का सत्‍य, आहिंसा, और आर्शीवचन पाखंड साबित हुआ और जिस लाठी सहारे वह चलते थे वही लाठी काग्रेसियों के गुंडई प्रमुख अस्‍त्र बन गई। कांग्रेसियों द्वारा गांधी जी के नाम को अस्‍त्र बना अपना मनमाना काम करवाया, और इस कु-कृत्‍य में गांधी जी पूर्ण सहयोगी रहे। इसका फायदा मिला सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी सामराज्‍य को।

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