मंगलवार, 8 मार्च 2011

कहाँ है हमारे नायक?

6 जून को महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का उत्सव मनाया जाता है. पिछले वर्ष कॉंग्रेस की राज्य सरकार ने एलान किया कि इस उत्सव को राज्य के उत्सव के रूप में मनाया जाएगा. दूसरी ओर इस वर्ष पूरातत्व विभाग ने हर वर्ष जहाँ उत्सव मनाया जाता रहा है उस रायगढ़ किले के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया है.

टीवी पर आपने एक विज्ञापन देखा होगा, कथित स्वास्थय वर्धक पेय के इस विज्ञापन में दिखाया जाता है कि एक पल की चूक से इतिहास बनते बनते रह जाता है. अगर सिकंदर चूक जाता तो? अगर बाबर को एन मौके पर पेट में दर्द होता तो? अगर न्यूटन सेब गिरते समय….

आपको इस विज्ञापन में कुछ भी गलत न लगा हो तो पढ़ना जारी रखें. यह विज्ञापन भारत का है. इसके सभी नायक विदेशी है या फिर भारत के आक्रांता है! मैं दोष विज्ञापन को नहीं दे रहा, दोष हमारी मानसिकता का है. दोष हमारी तथाकथित धर्म निरपेक्ष शिक्षा व्यवस्था का है, नीति निर्माताओं का है. भारत के नायकों को मिटा दिया गया है, भूला दिया गया है. परिणामतः आज भी हम गुलामी की मानसिकता से उभर नहीं पाएं है. हमारे नायक विदेशी है या हमारे ही हत्यारे है.

भारत ने विश्व को महान वैज्ञानिक, गणितज्ञ दिये है, महान यौद्धा व क्रांतिकारी दिये है. कौन सा बच्चा उन्हे जानता है? विज्ञापन में दिखाया जा सकता था अगर आर्यभट्ट शून्य का अविष्कार न करते तो? अगर चाणक्य चन्द्रगुप्त से न मिलते तो? अगर हेमचन्द्र की आँख में तीर न लगता तो? लेकिन इन में से कोई हमारा नायक नहीं है. जिन्होने हम पर आक्रमण किया उन्हे हम नायक मानते है. यह कैसी शिक्षा व्यवस्था है?

इन दिनों भारत में हिलटर की आत्मकथा की बिक्री बढ़ी है. यह आँकड़े बता रहे है. युवा हिटलर को पढ़ रहे है! क्यों? उन्हे प्रेरणा चाहिए, वे एक ऐसे नेता की तलाश में है जो देशभक्त व अनुशासित हो. ऐसे में वे सुभाषचन्द्र, भगतसिंह, सावरकर में अपना नायक क्यों नहीं खोजते? क्योंकि की उन्हे धुमिल कर दिया गया है.

सैंकड़ो नारियों के बलात्कारी मुगल को महान प्रेमी बताया जाता है, दुसरी ओर महा नायक के समारोह पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है. हम अपने ही इतिहास को मिटाने पर तुले हुए है. याद रहे बिना इतिहास वाली प्रजा “अनाथ” होती है

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