मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के कारण देश में आतंकवाद को मिली शह ने एक ऐसी अराजकता उत्पन्न कर दी है जिसका समाधान शीघ्रातिशीघ्र ढ़ूंढ़ा जाना नितान्त आवश्यक हो चुका है. कुछ कठमुल्लों के कारण देश में मुसलमानों का पूरा तबका बदनाम होता है और ये कठमुल्ले अपने को देश के सभी मुस्लिमों का प्रतिनिधि बताते हैं. अधिकांश राजनीतिक दल मुस्लिमों को थोक वोट बैंक के रूप में देखते हुए उन्हें पिछड़ा बनाए रखने में ही अपना हितसाधन देखते हैं. राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ऐसे ही कुछ गंभीर प्रश्नों को इस आलेख में उठा रहे हैं.
डा. फैसल शाह, फैसल शाहजाद और अजमल कसाब, ये नाम इन दिनों सुर्खियों में हैं. ये सभी मुस्लिम हैं और अलग-अलग कारणों से चर्चा में हैं. डा. फैसल शाह के शिक्षक पिता की कश्मीरी आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. हत्या के दो दिन बाद फैसल ने मेडिकल प्रवेश की परीक्षा दी और सफल रहे. उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा का जुनून था और उन्होंने पिछले दिनों वह भी हासिल कर लिया. फैसल की मां भी शिक्षिका हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.
अजमल कसाब पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का वाशिदा है और बहुत ही निर्धन परिवार से है. उसने मुंबई में निरपराध लोगों पर अंधाधुंध गोलिया चलाईं. उसके अन्य जिहादी साथी तो मारे गए, किंतु वह जिंदा पुलिस के हाथ लग गया. पिछले दिनों उसे फांसी की सजा सुनाई गई. वहीं, फैसल शाहजाद पाकिस्तान के एक वायु सेना अधिकारी का पुत्र है और बेहतर परवरिश के साथ उसे ऊंची तालीम भी हासिल है. अमेरिका में वह वित्त विश्लेषक के रूप में काम भी कर चुका है. किंतु आज वह अमेरिकी पुलिस की गिरफ्त में है, क्योंकि उसने जानमाल की भारी तबाही मचाने के लिए न्यूयार्क के टाइम्स स्क्वायर पर बम विस्फोट की साजिश रची थी. डा. फैसल शाह आज सभ्य समाज के सम्मानित सदस्य हैं, वहीं फैसल शाहजाद जिहादी आतंक का प्रतीक. दोनों फैसल में यह अंतर क्यों? इस संदर्भ में पाकिस्तान के एक अधिकारी की प्रतिक्रिया अध्ययन योग्य है, ‘ऐसा नहीं है कि वे अंग्रेजी बोलना नहीं जानते या कार्यदक्ष नहीं हैं. किंतु वे दिल और दिमाग से पश्चिम का तिरस्कार करते हैं. वे मानते हैं कि एक ही राह है और वही सही मार्ग है.’
वस्तुत: इस्लामी जिहाद ‘एकमात्र सच्चे पंथ’ की कट्टरवादी मानसिकता की ही देन है. कथित उदारवादी बुद्धिजीवी और भारत के सेकुलर चिंतक अर्से से जिहादी जुनून के कारणों के प्रति भ्रांतिया फैलाते रहे हैं. उनके अनुसार गरीबी, अशिक्षा और सच्चे इस्लाम के बारे में सही जानकारी का अभाव मुसलमानों के एक वर्ग को शेष विश्व के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाता है. टाइम्स स्क्वायर पर बम धमाके की साजिश करने वाला फैसल एक यमनी-अमेरिकी कठमुल्ला अनवर अल अवलाकी से गहरे प्रेरित था. अवलाकी ने किस कुरान की विवेचना कर फैसल को बड़े पैमाने पर तबाही मचाने के लिए प्रेरित किया? मुंबई पर 26/11 को किए गए हमले के मास्टरमाइंड के बीच करीबी रिश्तों का पता चला है. दो अलग-अलग जगहों में आतंकी ताडव मचाने का प्रेरणास्त्रोत आखिर कौन है? महमूद गजनी, मुहम्मद गोरी, कुतुबुद्दीन ऐबक, तैमुरलंग, सिकंदर लोदी, इब्राहिम लोदी से लेकर औरंगजेब को बुतश्किन और गाजी बनने के लिए किसने प्रेरित किया? बख्तियार खिलजी ने नालंदा, विक्रमशिला और उदंतपुर के विश्वविख्यात हिंदू शिक्षण संस्थानों को ध्वस्त क्यों किया? न्याय का घटा बाधने वाले जहागीर ने सिख गुरु अर्जुन देव का वध क्यों किया? गाजी औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविंद सिंह के नाबालिग बच्चों की बर्बरतापूर्वक हत्या क्यों की? क्या यह माना जाए कि ओसामा बिन लादेन आदि को इस्लाम की सही जानकारी नहीं है और केवल सेकुलरिस्टों को ही सही ज्ञान है?
यह झूठ भी परोसा जाता है कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था आतंकवाद को काबू में रख सकती है. उनका तर्क है कि यदि मुसलमान पूर्ण स्वतंत्रता के साथ रहें और उन्हें प्रजातात्रिक ढंग से अपना नेता चुनने को मिले तो आतंकवादी पैदा ही नहीं हों. पाश्चात्य आधुनिक प्रजातंत्र में स्वतंत्र और खुशहाल जीवन जीने वाले मुस्लिम युवा फिर किस कारण उसी धरती को लहूलुहान करते हैं? कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों, जिन्हें कम्युनिस्ट विचारकों का बड़ा समर्थन प्राप्त है, का मानना है कि अमेरिका की विदेश नीति के कारण इस्लामी आतंक पैदा हुआ. टाइम्स स्क्वायर के विफल प्रयास के बाद लंदन के डेली मेल में प्रकाशित एक लेख से न केवल इस तर्क का खोखलापन साबित होता है, बल्कि कट्टरपंथी मुसलमानों की मानसिकता की भी पुष्टि होती है. ब्रितानी मुस्लिम आतंकी गुटों से संबद्ध चरमपंथी हसन बट्ट अपने लेख में इसी तर्क पर ठहाका लगाते हुए कहता है, ‘मुझे और कइयों को ब्रिटेन और अन्यत्र आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जिस भावना ने प्रेरित किया, वह है दुनियाभर में इस्लामी निजामत कायम करना.’
गरीबी, अशिक्षा, सुविधाओं की कमी, राजनीतिक अस्पृश्यता, ऐतिहासिक अन्याय आदि ऐसे कई कुतकरें से इस्लामी जिहाद के नंगे सच को ढकने की कोशिश की जाती है, जबकि यथार्थ इससे कोसों दूर है. अमेरिका के विश्व व्यापार पर हवाई हमला करने वाले सभी कसूरवार उच्च शिक्षा प्राप्त और संभ्रात परिवार के थे. लंदन पर आत्मघाती हमला करने वाले फिदायीन ब्रिटेन की खुली फिजा में पले-बढ़े. उन्होंने पेशावर, मोगादिशू और कंधार की दुष्कर जिंदगी नहीं जी. जिहादी आतंकियों के आदर्श- ओसामा बिन लादेन सऊदी अरब के सबसे अमीर घरानों में से एक का वारिस है. लादेन का दाया हाथ अयमान जवाहिरी मारो-काटो का दामन थामने से पूर्व मिस्त्र के कैरो में जान बचाने वाला एक डाक्टर था. दुनियाभर में आतंकवाद की जितनी भी बड़ी घटनाएं घटी हैं, उन्हें अंजाम देने वालों में अधिकाश डाक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट आदि हैं. शिक्षा और गरीबी तो जिहादी इस्लाम का इकलौता पक्ष कतई नहीं हो सकतीं. वस्तुत: अजमल कसाब जैसे चेहरे तो मोहरे हैं. उनकी गुरबत और धर्मभीरूता का जिहाद के लिए दोहन होता है.
क्या राजनीतिक भेदभाव इस्लामी चरमपंथ का कारण है? अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रास, जर्मनी, भारत जैसे गैर मुस्लिम देशों में क्या मुसलमानों के साथ राजनीतिक स्तर पर भेदभाव का आरोप सच है? हमारे यहा भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में एक मुसलमान टाप करता है और इसका प्रमाण है डा. फैसल शाह. एक मुसलमान इस देश की सबसे बड़ी संवैधानिक कुर्सी पर बैठता है और इस देश के संविधान प्रावधान बनाकर अल्पसंख्यकों से यह वादा करता है कि उनके साथ किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं होगा. यही स्थिति तमाम अन्य प्रजातात्रिक देशों में भी है और वहा मुसलमान किसी भी मुस्लिम देश की अपेक्षा ज्यादा खुशहाल और स्वतंत्र हैं. किंतु क्या एक भी ऐसा मुस्लिम देश है जहा ऐसी ही व्यवस्था हो? किस मुस्लिम देश में एक गैर मुस्लिम को शासनाध्यक्ष बनाया गया? हमारे यहा तो विकृत सेकुलरवाद के कारण बहुसंख्यक ही हाशिए पर हैं. यदि ऐसा नहीं होता तो कश्मीर घाटी के मूल निवासी-कश्मीरी पंडित इसी देश में निर्वासित नहीं होते.
जहा तक ऐतिहासिक अन्याय का प्रश्न है, यथार्थ इसका भी समर्थन नहीं करता. दुनिया का करीब हर समुदाय उत्कर्ष और अपकर्ष के दौर से गुजरा है, किंतु समय के साथ संबंधित समुदाय का प्रवाह कभी थमा नहीं. यह इस्लाम ही है, जो अपने स्वर्णिम अतीत का रोना रोता है. भारत में कई जातियां सामाजिक भेदभाव व शोषण की शिकार हुईं. कौन-सी जाति बम विस्फोट में सैकड़ों लोगों की जान लेकर अपना प्रतिशोध ले रही है? इस्लामी आतंक पर काबू पाने के लिए इन प्रश्नों का ईमानदारी से उत्तर ढूंढ़ना होगा.
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