मंगलवार, 28 सितंबर 2010

पाकिस्तान में हिंदुओं का अस्तित्व संकट में

इस्लाम में सबसे अधिक पुण्य प्यासे को पानी पिलाने में है। किसी की प्यास बुझाना सबसे बड़ा सद्कर्म है। इसके पीछे एक लम्बा इतिहास है। पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को यजीद ने करबला के मैदान में धोखे से बुलाकर तीन दिन तक भूखा-प्यासा रखा। दानवता की अंतिम सीमा लांघते हुए जालिमों ने इमाम हुसैन के छोटे पुत्र 6 महीने के अली असगर तक को पानी नहीं दिया। अली असगर ने प्यास से तड़पते हुए दम तोड़ दिया। इमाम हुसैन के जितने बंदे करबला पहुंचे थे उन्हें भी इब्ने जियाद की सेना ने पानी से वंचित रखा। मोहर्रम की दस तारीख को अंतत: इमाम हुसैन को प्यासा ही शहीद कर दिया गया। तब से दुनिया भर के मुसलमान प्यासे को पानी पिलाने में सबसे बड़ा सवाब यानी पुण्य मानते हैं।

लेकिन पिछले दिनों सिंध के एक छोटे से देहात मेमन गोथ में एक हिंदू लड़के ने अपनी प्यास बुझाने के लिये एक मस्जिद के बाहर लगे वाटर कूलर से पानी पी लिया। जब यह समाचार गांव में फैला तो कबीले के नाराज लोगों ने हिंदुओं के 450 परिवारों पर हमला बोल दिया। 60 हिंदू पुरुष और महिलाएं अपने बच्चों के साथ घर छोड़कर भागने को मजबूर हो गई। मीरूमल नामक एक हिंदू ने पाकिस्तानी अंग्रेजी दैनिक द न्यूज को बताया कि खेतों में मुर्गियों की देखभाल करने वाले मेरे बेटे दानिश ने एक मस्जिद के बाहर लगे कूलर से पानी पी लिया तो कयामत टूट पड़ी। नाराज मुसलमानों ने हमारी बस्ती के सात लोग जिनमें सामो, मोहन, हीरो, चानू, सादू, हीरा और गुड्डी शामिल है, को बुरी तरह से पीटकर घायल कर दिया। समाचार पत्र एक अन्य हिंदू हीरा के हवाले से लिखता है कि बस्ती के 400 हिंदू परिवारों को अन्यत्र चले जाने के लिए धमकाया जा रहा है। भयभीत हिंदू समीप की एक गोशाला में शरण लेने को बाध्य हैं।

संपूर्ण घटना पर मेमनगोथ के पुलिस प्रभारी का कहना है कि स्थानीय लोगों में शिक्षा के आभाव की वजह से एक छोटी सी बात को लेकर इतनी बड़ी घटना घट गई है। पुलिस ने उन्हें आश्वासन दिया है कि हिंदू लोग जब भी चाहें, गांव वापस लौट सकते हैं। उन्हें पूरी सुरक्षा दी जायेगी। घायलों को जिन्ना अस्पताल ले जाया गया है। स्थानीय पुलिस की तर्ज पर सिंध के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मोहन लाल ने भी हिंदू समुदाय को आश्वासन दिया है कि मैंने जिला पुलिस प्रशासन को हिदायत दी है कि सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए जाएं। लेकिन घबराया हिंदू किसी पर विश्वास नहीं कर पा रहा है। मामले का सबसे दुखद पक्ष यह है कि सिंध की विधानसभा अथवा पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में इस घटना की निंदा के संदर्भ में एक भी शब्द नहीं बोला गया है।

यही कारण है कि पाकिस्तान के हिंदुओं में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है। उन्हें इस बात का भय है कि देश के कट्टर मुसलमान तालिबान का सहारा लेकर पाकिस्तान को एक हिंदू रहित राष्ट्र बनाने को आतुर हैं। पाकिस्तान के मुसलमानों के सामन ताजा उदाहरण कश्मीर का भी है जहां अमरनाथ यात्रा को हमेशा के लिए बंद करने का शडयंत्र घाटी के अलगाववादी तत्वों ने पाकिस्तानी तालिबान से मिलकर रचा था। कश्मीरी पंडितों से घाटी किस प्रकार खाली करवा ली गई, यह बात भी रह-रहकर पाकिस्तानी हिंदुओं में बेचैनी पैदा करती है।

सन् 1947 में जब देश का विभाजन हुआ था, उस समय पश्चिमी पाकिस्तान की कुल आबादी 4 करोड़ के आस-पास थी। सिंध उस समय हिंदू बहुल था ही, पंजाब, फ्रंटियर और बलूचिस्तान में भी हिंदू आबादी अच्छी-खासी संख्या में थी। विभाजन होते ही धर्मांधता की आंधी चली और लाखों लोग इधर से उधर हुए। पाकिस्तान के हिंदू असुरक्षा के कारण भारत चले आए। भारत से लाखों मुसलमान पाकिस्तान गए और वे आज भी वहां मुहाजिर के रूप में जीवन जीने को विवश है। वस्तुत: विभाजन के समय पंजाब और बंगाल की तरह सिंध का भी विभाजन होना था। सिंध प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री अल्लाबख्श सुमरो ने यह मांग उठाई थी। उनकी मांग के समर्थन में जोधपुर नरेश ने यह आश्वासन दिया था कि जोधपुर रियासत के तीन जिलों, सिंध का कराची तथा थारपारकर जिला मिलाकर पांच जिलों के आधार पर हिंदू बहुल सिंध की रचना हो सकती है। किंतु सिंध के विभाजन का पण्डित नेहरू ने कड़ा विरोध किया। जब अल्लाबख्श सुमरो ने आंदोलन की धमकी दी तो पण्डित नेहरू ने मौलाना आजाद की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन कर दिया। इस आयोग ने अपनी एक पन्ने की रपट में निर्णय दे दिया कि चूंकि सिंध प्रांत के विभाजन की कोई मांग नहीं है अतएव विभाजन नहीं किया जाएगा। बाद में मोहम्मद अली जिन्ना के इशारे पर अल्लाबख्श सुमरो की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस प्रकार कराची और थारपारकर के हिंदू अनाथ बना दिए गए। विभाजन के समय उनका कत्लेआम हुआ।

विभाजन के समय फ्रंटियर प्रांत को पाकिस्तान में न शामिल करने की मांग खान अब्दुल गफ्फार खां ने उठायी थी। उन्होंने तब गांधीजी के समक्ष अपनी वेदना प्रकट करते हुए कहा था कि आज हमें इन भेड़ियों के समक्ष क्यों फेंक रहे हो। लेकिन उनकी भी एक न सुनी गयी। इस प्रकार सीमांत प्रदेश के हिंदुओं को भी कत्लेआम हुआ।

पाकिस्तान बनने पर वहां के हिंदुओं की दुर्दशा के बारे में हमारे नेताओं ने सदा से ही चुप्पी साध रखी है। आजादी के बाद पंजाब में हिंदुओं पर कहर ढाया जाने लगा। धीरे-धीरे उनका पंजाब से पलायन होने लगा। जो लोग वहां बचे, या तो उनका धर्मांतरण हो गया, या फिर किसी न किसी बहाने उनकी हत्याएं की गईं।

इस प्रकार के हालात में जालंधर में शरणार्थी के रूप में रह रहे एक पाकिस्तानी हिंदू ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि पाकिस्तान में 15 से 20 लाख हिंदू और सिख समुदाय के लोग जबर्दस्त आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक प्रताड़ना के शिकार हुए हैं। विभाजन के समय जो लोग अपनी धरती, घर-संपदा के मोह में वहां रह गए थे, आज वे सभी पाकिस्तान छोड़कर भारत आने के लिए उतावले हैं। जब से पाकिस्तान बना है, हिंदुओं और सिखों का पलायन जारी है। वहां से लोग किसी प्रकार से भागकर भारत में राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में अपने सगे-संबंधियों के पास शरण ले रहे हैं।

जालंधर में आज ऐसे 200 परिवार रहते हैं। इन्हें भारत में आए 10 से 15 साल बीत चुके हैं लेकिन अभी तक उन्हें भारत की नागरिकता नहीं मिली है। पाकिस्तान के पेशावर से सन् 1998 में जालंधर आए सम्मुख राम ने बातचीत में कहा कि पाकिस्तान में हिंदुओं के हालात बदतर हैं। हमारे पास ना तो कोई अधिकार है और ना ही कोई सुविधा। यही कारण है कि कराची और स्यालकोट के 15 से 20 लाख हिंदू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आना चाहते हैं। सम्मखराम का यह भी कहना है कि जो हिंदू पाकिस्तान से भारत आ चुके हैं, वह अब कदापि पाकिस्तान नहीं जाएंगे क्योंकि अब भारत ही हमारा वतन है। 70 साल के मुल्कराज का कहना है कि सरकार की शह पर हमारे मंदिर और गुरूद्वारे पाकिस्तान में तोड़े जा रहे हैं। मेरे भाई का कारोबार केवल इसलिए बंद करा दिया गया क्योंकि मैं यहां भारत आ गया हूं। कराची और थारपारकर जो कभी हिंदू बहुल जिले हुआ करते थे, आज वहां दूर-दूर तक कोई हिंदू देखने को नहीं मिलता है।

इन पाकिस्तानी हिंदुओं का यह भी कहना है कि पाकिस्तानियों को दिल खुश करने के लिए वाघा सीमा पर हर 15 अगस्त को मोमबत्तियां लेकर भारत के तथाकथित बुध्दिजीवी अवश्य उपस्थित होते हैं लेकिन भारत से हम हिंदुओं को दुखड़ा सुनने के लिए एक भी बुध्दिजीवी कभी क्यों नहीं आता। उनका यह भी कहना है कि मुर्दा जिन्ना का प्रचार तो बहुत है लेकिन हम जीवित हिंदुओं की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

वास्तव में आज विचार करने की जरूरत है कि जब पाकिस्तान में हिंदू नहीं होगा तो फिर मुल्तान यानी मूल स्थान पर जाकर भक्त प्रहलाद के मंदिर का पुनरोद्धार कौन करवाएगा। तक्षशिला, मोहनजोदड़ों और हड़प्पा की सभ्यता को पाकिस्तान में कौन अपनी विरासत कहेगा। तब पाकिस्तान में न तो पाणिनी को याद करने वाले होंगे और ना ही कोई सोनी महिवाल की कब्र पर जाकर प्रेम की मनौती के मटके चढ़ाएगा। आज मुख्य मुद्दा यह नहीं रह गया है कि पाकिस्तान में कितने हिंदू शेष हैं, प्रमुख विचारणीय प्रश्न यह है कि हिंदू विहीन पाकिस्तान में तालिबान की सरकार कब स्थापित होती है।

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