शुक्रवार, 10 जून 2011

देश के विखण्डन का जहर घोलती, राष्ट्रीय सलाहकार परिषद

इसे जरा गौर से पढ़ें ‘‘हम भारत के लोग, भारत को एक (संपूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी, पथिनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य) बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई (मिति मार्गशीर्ष शुल्क सत्पमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।’’ किस तरह भारत के कुछ लोग भारत के संविधान की मूल आत्मा को न केवल छिन्न-भिन्न करने पर उतारू है, बल्कि सुनियोजित ढंग से इसकी हत्या करने में जुटे हैं । जब स्वतंत्र भारत में भेदरहित सब एक है तो ऐसे में भेदपूर्ण प्रस्तावित ‘‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक 2011’’ क्यों ? क्या यह भारत को कमजोर, तोड़ने एवं पुनः गुलाम बनाने की कोई सोची समझी चाल तो नहीं ? उत्तर हाँ, ही में आयेगा क्योंकि जिस हिसाब से शब्दों की जादूगरी के साथ इसे रचा गया है वह निश्चित ही भविष्य में भारत को पटकनी एवं गृहयुद्ध छिड़ने की पूरी संभावनाओं को जन्म देता है । जब पूर्व में ही हमारे संविधान निर्माताओं ने देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कानून बनाए हैं तब ऐसे में एक नया विधेयक जिसका प्रत्येक शब्द जहर में डूबा हुआ है आखिर ये क्यों ? यूं तो वर्तमान में भारत के संविधान में साम्प्रदायिक हिंसा की रोकथाम के लिए कड़े एवं पर्याप्त कानून मौजूद हैं और भारत में शांति भी कायम है। इसका ताजा उदाहरण पिछले वर्ष राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का ऐतिहासिक निर्णय के समय पूरे भारत में पूर्ण शांति छाई रही अपराधी तत्वों को कड़े कानून के चलते उनके मंसूबों पर पानी फिरा । यह सब कुछ निर्भर करता है कि सरकार क्या चाहती है ? लेकिन ऐसा लगता है कुछ लोगों को शायद यह सब कुछ रास नहीं आ रहा है। इस देश में चाटुकारों, शिखण्डी एवं भांडों की भी कोई कमी नहीं है । ऐसेे लोग अपने आकाओं की नजरों में चढ़ने के लिए अपनी ऊल-जलूल हरकतों से भी बाज नहीं आते फिर चाहे देश की एकता अखण्डता को ही क्यों न दांव पर लगाने पड़े कुछ ऐसा ही शर्मनाक कृत्य राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा हाल में प्रस्तावित विधेयक ‘‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक 2011’’ है । यहाँ कुछ यक्ष प्रश्न उठते हैं
पहला विधेयक बनाने का कार्य भारत की संसद को है या राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को ?
दूसरा क्या इससे संसद के मूल अधिकारों एवं कर्तव्यों का हनन नहीं होता ?
तीसरा क्या परिषद को इस विधेयक को बनाने की वैधानिक मान्यता प्राप्त है ?
चौथा यदि उत्तर हाँ में है तो ऐसा अधिकार अन्ना हजारे या बाबा रामदेव के संगठन को क्यों नहीं ?
पाँचवा इस विधेयक से यदि देश की एकता-अखण्डता, अराजकता, साम्प्रदायिक सद्भाव, धर्मनिरपेक्षता को आघात पहुंचता है जो निश्चित तौर पहुंचेगा ही, भविष्य में जो घटना घटित हो ऐसे षड़यंत्रकारियों के खिलाफ क्या केन्द्र शासन जवाबदेही निर्धारित कर कार्यवाही करेगा? क्या ऐसे लोगों पर केन्द्र सरकार देशद्रोह का मुकदमा चलायेगी ? यहां मैं इस विधेयक की जहरीली मंशा एवं राज्यों के बारे में चली कुत्सित चाल के बारे में मोटे तौर पर सभी सच्चे भारतीयों को न केवल बताना चाहूंगी बल्कि ये जनता के बीच राष्ट्रीय बहस के भी मुद्दे होना चाहिए ताकि, साजिशकार, विदेशी एवं आतंकी विचारधारा वाले लोग बेपर्दा हो सकें । पहला ‘समूह शब्द’ यहां इसका अर्थ अल्पसंख्यक (मुसलमान, बौद्ध, जैन सिख आदि-आदि) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए हैं बहुसंख्य हिन्दु इसमें नहीं आते, इसे यूं समझें हिन्दू को अल्पसंख्यक मारे तो कोई दण्ड नहीं, यदि हिन्दू इनको मारे तो दण्ड ? ये कैसा न्याय? मरने वाला सिर्फ और सिर्फ आदमी होता है फिर इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि वो किस जाति या धर्म का है । ऐसा करने की इजाजत तो हमारा संविधान भी नहीं देता । दूसरा बहुसंख्यक हिन्दुओं को माना गया है यहां मूल प्रश्न उठता है कि आखिर हिन्दु कौन ? ये हम सभी जानते हैं कि हिन्दु न जाति है न धर्म सिन्धु नदी के किनारे बसने वाले सभी हिन्दू कहलाए। हमें धर्म, जाति समुदाय में स्पष्ट भेद करना ही होगा, नहीं तो भविष्य में बड़ा उत्पात मच सकता है । क्या जैन, सिख, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोग हिन्दू नहीं ? तीसरा विधेयक का मसौदा तैयार करने में अधिकांशतः विशेष वर्ग या विशेष विचारधारा वाले ही हैं, आखिर क्यों ? जब इसे पूरे भारत पर ही लादने की बात कर रहे हैं तो सभी जाति, धर्म समुदाय के लोग क्यों नहीं ? चौथा अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय नागरिकों को बोलने एवं लिखने की स्वतंत्रता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा जो संविधान के अनुच्छेद 19 का घोर उल्लंघन होगा । पांचवां वर्गों में भेद संविधान की मूल भावना के वपरीत है ।
छठवां इस विधेायक में पीड़ित व्यक्ति भी केवल अल्पसंख्यक ही हो सकता है बहुसंख्यक नहीं ? वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह सबसे खतरनाक है । इसे यू समझंे कोई विशेष जाति समूह का व्यक्ति या समूह बहुसंख्यक के साथ दंगा या बलात्कार करता है तो जायज एवं सुरक्षित है । लेकिन बहुसंख्यक समुदाय का व्यक्ति या समूह अल्पसंख्यक जिसमें मुस्लिम भी सम्मिलित हैं के साथ यही कृत्य करता है तोे करने मात्र से ही दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आ जायेगा । इससे आतंकी विचारधारा के विशेष समूहों को केवल सुरक्षा मिलेगी बल्कि खुले में नंगा नाच, हत्या, दंगा, मारकाट भी मात्र अल्पसंख्यक होने से जायज हो जायगी या यूं कहे इन्हें दोषी नहीं माना जायेगा क्या यह जायज है ? विधेायक की ड्राफ्टिंग में लगे लोग आखिर संविधान को शीर्षासन कराने में क्यों तुले हैं? संविधान का अपमान क्यों करना चाहते हैं ?
सातवां इस विधेयक से सिर्फ और सिर्फ वोट की राजनीति की ही बू आती है । यदि किसी राजनैतिक पार्टी को अल्पसंख्यकों की इतनी ही चिंता है तो क्यों नहीं एक नया अल्पसंख्यक राष्ट्र या प्रदेश घोषित कर देते ? आखिर देशवासियों को पता तो चले कौन है नया जिन्ना ?
आठवां कई राज्यों में हिन्दु अल्पसंख्यक हैं उसका क्या होगा ये प्रस्तावित विधेयक में कहीं उल्लेख नहीं है ।
नवां राष्ट्रीय एकता परिषद को इतना जबरदस्त अधिकार सम्पन्न बनाया गया है जिससे केन्द्र एवं राज्यों के सम्बन्धों में निश्चित दरार आयेगी ।
दसवां इस विधेयक में पूरा का पूरा जोर कर्मचारियों पर ही केन्द्रित है । नेताओं को इससे मुक्त रखा गया है क्यों ? जबकि दंगे भड़काने, शहर, प्रदेश बंद कराने में इन्हीं की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है फिर भी जवाबदेही से मुक्त क्यों ?
ग्यारहवां राष्ट्रीय एकता परिषद जो फूट डालो का कार्य कर रही है, देश में शांति बनाए रखने के लिए, देशहित में तत्काल प्रभाव से इसे भंग कर देना चाहिए । भारतीय जनता एवं बुद्धिजीवी भी इस दिशा में चिन्तन करे ।

डॉ. शशि तिवारी

जनोक्ति.कॉम

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