वामपंथी पार्टियों से संबंधित एक खबर अखबारों में छपा है। खबर का शीर्षक है ओबामा के भारत दौरे पर विरोध करेंगे चार वामदल। जिन मुख्य बातों को लेकर उनका विरोध है उसमें भोपाल गैस त्रासदी मामले के आरोपी को भारत सौंपने, अमेरिकीपरस्त आर्थिक नीतियों को भारत में लागू कराने के लिए भारत पर दबाव डालने से बाज आने जैसी बातें शामिल हैं। यह मुद्दे बिल्कुल ठीक हैं और सभी राजनीतिक दलों व आम लोगों को इन मुद्दों पर एकजुट होना चाहिए। ये ऐसे मुद्दे हैं जो देश के हित से जुडा हुआ है। लेकिन उसके बाद जो बातें लिखी गई हैं थोडा हैरत में डालने वाला है। फिलीस्तीन, इराक, क्यूबा, अफगानिस्तान पर भी वाम दलों की मांगें हैं। वाम दलों का मानना है कि इन इलाकों में अमेरिका द्वारा मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। इसके खिलाफ वे आंदोलन करेंगे।
भारत का पडोसी देश है तिब्बत, जिसको माओ के समय चीन ने हथिया लिया हैं। वहां की मानवाधिकारों की स्थिति अत्यंत खराब है। लेकिन भारत के वामदलों से लेकर अपने आप को मानवतावादी बता कर सबको प्यार करने का दावा करने वाले विचारक इस पर चुप्प रहते हैं। तिब्बत में क्या स्थिति है उस पर कुछ नजर डालेंगे तो स्थिति स्पष्ट होगी।
१२ लाख से भी अधिक तिब्बती मारे जा चुके है!
६००० से भी अधिक धार्मिक एंव सांस्कृतिक संस्थान नष्ट किए जा चुके हैं!
हजारों तिब्बती मौलिक अधिकारों का प्रयोग करने के आरोप में जेलों में बन्द हैं!
तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों तथा कोमल पर्यावरण को बुरी तरह नष्ट कर दिया गया है!
यह एक प्रमाणिक तथ्य है कि तिब्बत को आणविक कचरा फेंकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा हैं!
तिब्बत में तिब्बती लोगों की आबादी (६० लाख) से अधिक चीनी लोगों की आबादी (७५ लाख) हो गई हैं!
तिब्बत केवल मात्र जमीन का टुकडा नहीं है। तिब्बत का जिंदा रहने का अर्थ तिब्बतियता का जिंदा रहना, यानी तिब्बत की संस्कृति, उसकी भाषा, परंपरा का जिंदा रहना है। लेकिन वामपंथी चीन द्वारा जो अमानुषिक अत्य़ाचार किये जा रहे हैं उससे तिब्बतीयता ही संकट में है। उनकी संस्कृति को खत्म करने के लिए कम्युनिस्ट शासन ने दिन रात एक किया हुआ है। किसी के यहां से परम पावन दलाई लामा की तस्वीर मिलने मात्र से ही उसे जेल में डाल दिया जाता है। बोद्ध मंदिरों को खत्म किया जा रहा है।
तिब्बती नस्ल करने का प्रयास किया जा रहा है। वहां चीनी हान लोगों को बसाया जा रहा है। जबरदस्ती तिब्बती ल़डकियों की शादी हान लडकों से की जा रही है। चीनी कम्युनिस्ट सरकार पूरी तैयारी में है कुछ सालों मे तिब्बतीयता को खत्म कर देगी। फिर तिब्बत की भूमि तो रहेगा लेकिन तिब्बती राष्ट्रीयता खत्म हो जाएगी। इसी षडयंत्र को पूरा करने में चीनी कम्युनिस्ट सरकार लगी हुई है।
क्या फिलिस्तीन, इराक व अफगानिस्तान के मामलों में लंबे लंबे लेख तथा लगातार लिखने वाले वामपंथी विचारक, विद्वान तिब्बत में हो रहे अमानवीय, विभत्स अत्याचारों के बारे में जानकारी नहीं रखते हैं। अगर जानकारी है तो फिर वे इस मामले में चुप्प क्यों हैं। क्या वामपंथियों का मानवता को लेकर परैमिटर अलग अलग होता है ?
इस पूरे विषय पर विचार करने पर तो ऐसा ही लगता है। फिलीस्तीन, इराक, क्यूबा, अफगानिस्तान में जो मारे जा रहे हैं वे मानव हैं। तिब्बत में जो मारा जा रहा है वह में मानव नहीं है। उनका कोई मानवाधिकार नहीं होता।
चीन द्वारा किसी भी देश की संस्कृति खत्म करना, लोगों को मौत के घाट उतारना सब जायज है। इसका जो विरोध करेगा वह फासीवादी है। मेरे विरोधी कुछ भी करें गलत और मै या फिर मेरे आका चीन जो भी करे ठीक, भारत पर हमला कर जमीन हडप ले तो ठीक, तिब्बत में अत्य़ाचार करे तो ठीक, अरुणाचल प्रदेश पर दावा जताये तो ठीक।
अंत में, मैं मार्क्सवादी, लेनिनवादी स्टालिनवादी व माओवादी विचारकों व विद्नानों से आग्रह है कि वे कि अपने आंख पर लगाये चीनी चश्में को उतार कर भारतीय चश्मे से दुनिया को देखें। तब उन्हें तिब्बत की त्रासदी दिखेगी, वहां हो रहा अत्याचार दिखेगा, एक सांस्कृतिक नरसंहार की भयावह चित्र दिखेगा।
इन मार्कसवादी, लेनिनवादी स्टालिनवादी व माओवादी विचारकों व विद्नानों से आग्रह है कि वे वाम मार्ग पर चलने के बजाए धर्म मार्ग पर चलें (मजहब नहीं धर्म )। क्योंकि धर्म ही धारण करता है, कम्युनिज्म आपस में द्वेष बढाता है, संपूर्ण मानवता को एक दूसरे के खिलाफ खडा कर हिंसा करवाता है। इतिहास इस बात का साक्षी बहै। वामपंथी सर्वसमावेशी बनें, समाज को न तोडें, मानवता की भलाई के लिए सोंचे। अपने आप को मानवतावादी बता कर पाखंड न करें। अन्यथा अपने लंबे लंबे लेखों व भाषणोंका कोई लाभ नहीं होगा। यह उनके दोहरेपन को दर्शाता है।
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