जैसा कि सभी जानते हैं वामपंथी भले ही सिद्धान्तों की कितनी भी दुहाई दे लें, कितनी ही शाब्दिक लफ़्फ़ाजियाँ हाँक लें परन्तु उनका “असली रंग” गाहे-बगाहे सामने आता ही रहता है, और वह असली रंग है वोटों की खातिर मुस्लिमों के सामने आये दिन नतमस्तक होने का…। वैसे तो देश के सौभाग्य से अब यह कौम सिर्फ़ दो ही राज्यों (केरल और पश्चिम बंगाल) में ही जीवित है, तथा अपने कैडर की गुण्डागर्दी और कांग्रेस द्वारा मुस्लिम वोटों के शिकार के बाद जो जूठन बच जाती है उस पर ये अपना गुज़र-बसर करते हैं। पश्चिम बंगाल और केरल के आगामी चुनावों को देखते हुए इन दोनों “सेकुलर चैम्पियनों” के बीच मुस्लिम वोटों को लेकर घमासान और भी तीखा होगा। पश्चिम बंगाल में देगंगा के दंगों में (यहाँ देखें…) हम यह देख चुके हैं… हाल ही में केरल से दो खबरें आई हैं जिसमें वामपंथियों का “सेकुलर नकाब” पूरी तरह फ़टा हुआ दिखता है…
1) मुस्लिम बच्चों को मुफ़्त कोचिंग क्लास सुविधा, स्कॉलरशिप एवं मुफ़्त होस्टल की सुविधा, मौलवियों को पेंशन तथा पाकिस्तान को पाँच करोड़ का दान देने जैसे “सत्कर्म” करने के बाद केरल की वामपंथी सरकार ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी करके सभी राशन दुकानों को आदेश दिया है कि राज्य के सभी गरीब मदरसा शिक्षकों को दो रुपये किलो चावल दिया जाये। जैसा कि सभी जानते हैं केरल के कई इलाके लगभग 70% मुस्लिम जनसंख्या वाले हो चुके हैं और कई सीटों पर स्वाभाविक रुप से “जेहादी” निर्णायक भूमिका में हैं, हाल ही में ईसाई प्रोफ़ेसर का हाथ काटने वाली गैंग में शामिल एक अपराधी, जेल से पंचायत चुनाव जीत चुका है तथा कई नगर निगमों अथवा जिला पंचायतों में मुस्लिम लीग व PFI (पापुलर फ़्रण्ट ऑफ़ इंडिया) के उम्मीदवार निर्णायक स्थिति में आ गये हैं… तो अब हमें मान लेना चाहिये कि वामपंथियों ने प्रोफ़ेसर का हाथ काटने के “उपलक्ष्य” (यहाँ देखें…) में इनाम के बतौर मदरसा शिक्षकों को दो रुपये किलो चावल का तोहफ़ा दिया होगा।
उल्लेखनीय है कि केरल में “देवस्वम बोर्ड” के गठन में नास्तिक(?) वामपंथियों की घुसपैठ की वजह से मन्दिरों के पुजारियों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब चल रही है, जहाँ एक तरफ़ पुजारियों को यजमानों से दक्षिणा लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, वहीं दूसरी तरफ़ पुजारियों की तनख्वाह मन्दिर के सफ़ाईकर्मियों के बराबर कर दी गई है।
2) दूसरी खबर वामपंथियों की “सेकुलर बेशर्मी” के बारे में है – पिछले कई साल से केरल के वामपंथी राज्य में “इस्लामिक बैंक” स्थापित करने के लिये जी-जान से जुटे हुए हैं, वह तो भला हो डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी का जिनकी याचिकाओं के कारण केरल हाईकोर्ट ने इस्लामिक बैंक पर रोक लगा दी है (यहाँ देखें…), वहीं दूसरी तरफ़ हाल ही में रिज़र्व बैंक ने एक आदेश जारी करके यह कहा कि केरल में किसी भी प्रकार के इस्लामिक बैंक को अनुमति प्रदान करने का सवाल ही नहीं पैदा होता, क्योंकि इस्लामिक बैंक की अवधारणा ही असंवैधानिक है।
इतनी लताड़ खाने के बावजूद, केरल राज्य औद्योगिक विकास निगम द्वारा प्रवर्तित अल-बराका इंटरनेशनल फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ ने बेशर्मी से दावा किया उसे “इस्लामिक बैंक” बनाने की मंजूरी मिल गई है। “अल-बराका” द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रस्तावित बैंक पूर्णतः “शरीयत कानून” पर आधारित होगा। खाड़ी देशों में कार्यरत “कुछ खास गुट” ऐसी इस्लामिक बैंक बनवाने के लिये पूरा जोर लगा रहे हैं ताकि जो पैसा उन्हें हवाला अथवा अन्य गैरकानूनी रास्तों से भेजना पड़ता है, उसे एक “वैधानिकता” हासिल हो जाये। इसी में अपना सुर मिलाते हुए केरल सरकार ने कहा कि “इस्लामिक बैंक” पूरी तरह से सेकुलर है…।वामपंथ के लिये यह एक स्वाभाविक सी बात है कि जहाँ “इस्लामिक” शब्द आयेगा वह तो सेकुलर होगा ही और जहाँ “हिन्दू” शब्द आयेगा वह साम्प्रदायिक… जैसे कि मुस्लिम लीग सेकुलर है, विश्व हिन्दू परिषद साम्प्रदायिक… मजलिस-इत्तेहाद-ए-मुसलमीन सेकुलर है लेकिन शिवसेना साम्प्रदायिक… इत्यादि।
पहले भी एक बार वामपंथियों के पूज्य बुज़ुर्ग नम्बूदिरीपाद ने अब्दुल नासेर मदनी की तुलना महात्मा गाँधी से कर डाली थी, जो बाद में कड़े विरोध के कारण पलटी मार गये। तात्पर्य यह किवामपंथियों के नारे “धर्म एक अफ़ीम है” का मतलब सिर्फ़ “हिन्दू धर्म” से होता है (यहाँ देखें…), मुस्लिम वोटों को खुश करने के लिये ये लोग “किसी भी हद तक” जा सकते हैं। शुक्र है कि ये सिर्फ़ दो ही राज्यों में बचे हैं, असली दिक्कत तो कांग्रेस है जिससे इन्होंने यह शर्मनिरपेक्ष सबक सीखा है।
चलते-चलते एक अन्य खबर महाराष्ट्र से - जवाहरलाल नेहरु अन्तर्राष्ट्रीय बन्दरगाह (ज़ाहिर है कि अन्तर्राष्ट्रीय है तो इसका नाम नेहरु या गाँधी पर ही होगा…) पर कुवैत के एक जहाज को सुरक्षा एजेंसियों ने जाँच के लिये रोका है। तफ़्तीश से यह साबित हुआ है कि जहाज के कर्मचारी बन्दरगाह पर इस्लाम के प्रचार सम्बन्धी पुस्तकें बाँट रहे थे। 12 पेज वाली इस पुस्तक का मुखपृष्ट “निमंत्रण पत्र” जैसा है जहाँ लिखा है “उन्हें एक बेहतर धर्म “इस्लाम” की तरफ़ बुलाओ, जो हिन्दू धर्म अपनाये हुए हैं…”। CGM एवरेस्ट नामक जहाज के कैप्टन हैं सैयद हैदर, जो कि कराची का निवासी है। 12 पेज की यह बुकलेट कुवैत के इस्लामिक दावा एण्ड गाइडेंस सेण्टर द्वारा प्रकाशित की गई है, तथा जहाज के सभी 33 कर्मचारियों के पास मुफ़्त में बाँटने के लिये बहुतायत में उपलब्ध पाई गई।
हालांकि पहले सुरक्षा एजेंसियों की निगाह से यह छूट गया था, लेकिन बन्दरगाह के ही एक भारतीय कर्मचारी द्वारा पुलिस को यह पुस्तिका दिखाने से उनका माथा ठनका और जहाज को वापस बुलाकर उसे विस्तृत जाँच के लिये रोका गया। जहाज महाराष्ट्र के कोंकण इलाके की तरफ़ बढ़ रहा था, यह वही इलाका है जहाँ दाऊद इब्राहीम का पैतृक गाँव भी है एवं मुम्बई में ट्रेन विस्फ़ोट के लिये इन्हीं सुनसान समुद्र तटों पर RDX उतारा गया था। जहाज के कैप्टन की सफ़ाई है कि वे भारतीय तट पर नहीं उतरे थे, बल्कि जो लोग जहाज में बाहर से (यानी भारत की ज़मीन से) आये थे उन्हें बाँट रहे थे। अधिकारियों ने जाँच में पाया कि अन्तर्राष्ट्रीय जल सीमा में “धार्मिक प्रचार” का यह पहला मामला पकड़ में आया है, तथा यह बुकलेट मजदूरों और कुलियों को निशाना बनाकर बाँटी जा रही थी तथा पूरी तरह हिन्दी में लिखी हुई हैं…
मीडिया द्वारा अपनी “सेकुलर इमेज” बनाये रखने के तरह ऐसी खबरों को जानबूझकर दबा दिया जाता है ताकि “कुम्भकर्णी हिन्दू” कभी असलियत न जान सकें, रही बात कई राज्यों में सत्ता की मलाई चख रहे भाजपाईयों की, तो उनमें से किसी में भी डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसी लगन और हिम्मत तो है ही नहीं… (उल्लेखनीय है कि डॉ स्वामी ने अकेले दम पर याचिकाएं और आपत्तियाँ लगा-लगा कर इस्लामिक बैंक की स्थापना में अड़ंगे लगाये, रामसेतु टूटने से बचाया, इटली की रानी के नाक में दम तो कब से किये ही हैं, अब राजा बाबू के बहाने “ईमानदार बाबू” पर भी निशाना साधा हुआ है…), शायद “थकेले” केन्द्रीय भाजपा नेताओं को डॉ स्वामी से कोई प्रेरणा मिले…
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