(10 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा पूरे दो के जिला केन्द्रों पर संघ के कार्यकर्ताओं के नाम कथित आतंकवादी घटनाओं से जोड़ने व केन्द्र सरकार तथा कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा हिन्दु, भगवा आतंकवाद तो कभी संघ को आतंककारी प्रतिबंधित संगठन सिम्मी के समकक्ष रखने के विरोध में दिए गए। इन धरना प्रदार्नों में संघ के नेताओं के बयानों से भी अधिक चर्चा इस बात की है कि संघ के पूर्व प्रमुख केएस सुदार्न ने सोनिया गांधी को लेकर जो बयान दिया है उससे कांग्रेस पार्टी की मुखिया का ही नहीं बल्कि मानो दो का ही अपमान हुआ है। इस सम्बंध में कांग्रेस के विभिन्न नेताओं की जो टिप्पणियां सामने आ रही है उनमें वास्तविकता को जानने की मां कम और 10 जनपथ के सामने नम्बर बनाने की इच्छा अधिक झलकती है। इस सम्बंध में विस्फोट डॉट कॉम पर अनिल सौमित्र द्वारा लिखित आलेख वास्तविकता के नजदीक होने के साथसाथ कांग्रेस के नेताओं को सच्चाई से भी रूबरू करवाता महसूस होता है। )
एक बार फिर लोकतंत्र पर आपातकाल मंडरा पड़ा है। राजमाता सोनिया गांधी के सिपहसालारों ने कांग्रेसी गुण्डों, माफियाओं और लोकतंत्र के हत्यारों का आह्वान किया है कि वह देशभर में संघ कार्यालयों पर धावा बोल दे। इसका तत्काल प्रभाव हुआ और कांग्रेसी गुण्डों ने संघ के दिल्ली मुख्यालय पर धावा भी बोल दिया। ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी की मौत के बाद सिखों को निशाना बनाया गया था। हिंसक और अलोकतातंत्रिक मानसिकता से ग्रस्त कांग्रेसी सोनिया का सच जानकर आखिर इस तरह बेकाबू क्यों हो रहे हैं?
10 नवम्बर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभर में अनेक स्थानों पर धरना दिया। संघ सूत्रों के अनुसार यह धरना लगभग 700 से अधिक स्थानों पर हुआ। इनमें लगभग 10 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया। हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की राजनीति के खिलाफ आयोजित इस धरने में संघ के छोट बड़े सभी नेताकार्यकताओं ने हिस्सा लिया। संघ प्रमुख मोहनराव भागवत लखनउ में तो संघ के पूर्व प्रमुख कुप सी। सुदर्शन भोपाल में धरने में बैठे। इसी धरने में मीडिया से बात करते हुए संघ के पूर्व प्रमुख ने यूपीए और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के बारे में कुछ बातें कही। इसमें मोटे तौर पर तीन बातें थी पहली यह कि सोनिया गांधी एंटोनिया सोनिया माइनो हैं। दूसरी यह कि सोनिया के जन्म के समय उनके पिता जेल में थे और तीसरी बात यह कि उनका संबंध विदेशी खुफिया एजेंसी से है और राजीव और इंदिरा की हत्या के बारे में जानती हैं। गौरतलब है कि ये तीनों बातें पहली बार नहीं कही गई हैं। जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी सार्वजनिक रूप से कई बार इन बातों को बोल चुके हैं। गौर करने लायक बात यह है कि हिन्दू आतंक, भगवा आतंक का नारा बुलंद करने वाले और संघ की तुलना करने वाले कांग्रेसी अपने नेता के बारे में कड़वी सच्चाई सुनकर बौखला क्यों गए? लोकतंत्र की दुहाई देने वाली पार्टी अपनी नेता के समर्थन में अलोकतांत्रिक क्यों हो गई? क्या कांग्रेस स्वभाव से ही फासिस्ट है?
कांग्रेस के नेता सुदर्शन के बयान की भाषा पर विरोध जता रहे हैं। लेकिन उनकी कही बातों पर नहीं। भाषा चाहे जैसी भी हो, लेकिन कांग्रेस को मालूम है कि उसके नहले पर संघ का दहला पड़ गया है। कांग्रेस के नेता ने भी तो संघ की तुलना आतंकी संगठन सिमी से की थी। उसी कांग्रेस के नेताओं ने भगवा आतंक और हिन्दू आतंकवादी कह कर संघ को लांछित किया था। यह जरूर है कि कांग्रेस के हाथ में केन्द्रीय सत्ता की बागडोर है। संघ के हाथ में ऐसी कोई सत्ता नहीं है। कांग्रेस के बड़े नेता और केन्द्र सरकार में कांग्रेस के मंत्री चाहे तो तो जांच एजेंसियों और पुलिस को इशारा कर सकते हैं। उनके एक इशारे पर जांच की दिशा तय हो सकती है। आईबी, सीबीआई और अब एटीएस को ऐसे इशारे कांग्रेसी नेतामंत्री करते रहे हैं। जैसे गृहमंत्री पी। चिदंबरम ने पुलिस प्रमुखों की बैठक में भगवा आतंक का सिद्घांत ग़ने की कोशिश की, जैसे दिग्विजय सिंह ने पत्रकारों से चर्चा में संघ पर आईएसआई से पैसा लेने का आरोप लगा दिया, जैसे किसी लेखक ने पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी पर सीआईए से पैसा लेने का उल्लेख किया ठीक वैसे ही सुदर्शन ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया के बारे में कुछ रहस्योद्घाटन कर दिया। कांग्रेस सड़कों पर क्यों उतर रही है? क्यों नहीं सुदर्शन के रहस्योद्घाटन की जांच करवा लेती? देश के सामने सोनिया का सच आना ही चाहिए। अगर सुदर्शन झूठे होंगे तो वे या फिर सोनिया बेनकाब हो जायेंगी। लेकिन कांग्रेस माता सोनिया के खिलाफ कांग्रेसी कुछ सुन नहीं सकते, कुछ भी नहीं।
मंगलवार, 16 नवंबर 2010
सोनिया का सच जान बेकाबू क्यों होते हो?
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एक अच्छा और संग्रहणीय लेख जिसे भारत के सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित कर नेहरू गांधी के 'पवित्र खानदान' को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
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