बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

मीडिया ने चुनौती दी है राष्ट्र को

मीडिया ने चुनौती दी है राष्ट्र को—————————-

——————————————————यशेन्द्र की बतकही

पूरा देश बम-बम है इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को सुनकर I सच कहूँ तो इस प्रकार के निर्णय की आशा न थी I सैकड़ों वर्षों से मन मार के सहने की आदत जो पड़ चुकी है हमें I हमें पता था कि आज के युग में केवल तथ्यों के भरोसे रहने पर कुछ नहीं होता I पर उच्च न्यायालय ने तथ्यों के आधार पर निर्णय सुना दिया I

नतीज़ा यह हुआ कि अधिकांश मीडिया ( टी.वी एवं प्रिन्ट दोनों) में कोहराम मच गया I अंग्रेज़ी के कुछ महानतम समाचारपत्र तो सन्न रह गए ! न्यायालय ने हिन्दुओं की बात कैसे मान ली ? पिछली रात शायद ‘पब’ में बैठकर जिन महान पत्रकारों ने भाजपा और संघ-परिवार की बखिया उधेड़ने की योजना बनाई थी उनकी तो फट गई I वैसे मुझे आज तक यह नहीं समझ आया है कि जब कहीं श्रीराम का नाम उठता हैं तो इन्हें भाजपा एवं संघ – परिवार की ही याद क्यों आती है ? आसेतुहिमाचल उन करोड़ों भारतीयों की याद क्यों नहीं आती जिनके ह्रदय में श्रीराम बसते हैं — जो राम मन्दिर का निर्माण करना चाहते है पर कोई प्रदर्शन नहीं कर पाते I 1962 में भारत पर चीन के आक्रमण का समर्थन करने वाले महान वामपंथ के नेता सीताराम येचुरी तक के नाम में ‘सीताराम’ बसते हैं ! बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय का संघ-परिवार से कोई सरोकार नहीं है और ना ही ये इस्लाम का विरोधी है I पर इसे इस बात का पता है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण राम-मंदिर का ध्वंस कर के ही हुआ था I


अधिकांश टी.वी. चैनलों ने वामपंथी इतिहासकार और चाचा नेहरु के पद-चिन्हों पर चलने वाले विद्वानों को एकत्रित किया I सभी आग बबूला थे I ‘विश्वास’ को आधार बनाकर उच्च न्यायालय ने वहाँ राम की जन्मभूमि कैसे मान ली ? पर किसी ने भी यह जिक्र नहीं किया कि यह ‘विश्वास’ इस्लाम के जन्म के हजारों वर्ष पहले से चला आ रहा है ! किसी ने यह जिक्र करने की जरुरत नहीं समझी कि मस्जिद में अल्लाह बसते हैं क्या यह ‘विश्वास’ नहीं है ? अल्लाह का अस्तित्व ‘विश्वास’ नहीं तो और क्या है ?

महानतम पत्रकारों में से एक – बरखा दत्त – तो बौखला गईं : ” अगर सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस निर्णय पर अपनी मुहर लगा दी तो उस ‘worst case scenario ‘ में ‘हम’ क्या करेंगे ?” उनके इस वक्तव्य की वीडियो रेकॉर्डिंग इन्टरनेट पर सहज उपलब्ध है I जिन ‘हम’ लोगों का जिक्र उन्होंने किया, सत्य ही उन लोगों के लिए भारतवर्ष के आदर्श मर्यादा-पुरूषोत्तम श्रीराम का मंदिर- निर्माण एक ‘ worst case scenario ‘ के अतिरिक्त और क्या हो सकता है ! सचमुच देखने लायक है बरखा दत्त के उस कार्यक्रम की वीडियो रेकॉर्डिंग जिसमे उन्होंने ‘भव्य मंदिर’ शब्द- युग्म का जम कर माखौल उड़ाया है I मीडिया के इस वर्ग के लिए राम का नाम लेने वाला हर भारतीय ‘संघ- परिवार’ का सदस्य है I

उच्च न्यायालय ने 2-1 के बहुमत से यह निर्णय दिया कि वहाँ एक हिन्दू धार्मिक-स्थल का ध्वंस कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था I जिन एक न्यायाधीश ने ध्वंस करने की बात नहीं मानी उन्होंने भी स्वीकार किया कि मस्जिद बना तो हिन्दू धार्मिक-स्थल के ध्वंसावशेष पर ही था, और निर्माण में अवशेष की संरचनाओं का उपयोग भी हुआ था !पर इस मूल तथ्य पर मीडिया का ध्यान क्यों जाए ! सैकड़ो वर्षों तक मुस्लिम हमलावरों ने जिस दरिदंगी और हैवानियत का खेल खेला है वह इनके लिए तथ्य कैसे हो सकता है ! मुस्लिमों की प्रत्येक बात का समर्थन किये बिना कोई ‘सेक्युलर’ अथवा सफल पत्रकार थोड़े ही बन सकता है ! मीडिया के इस बहुसंख्यक वर्ग का ध्यान सिर्फ इस पर केन्द्रित है कि 1992 में हिन्दू धार्मिक-स्थल का ध्वंस कर बनाये गए बाबरी मस्जिद को क्यों तोड़ा गया ? इन महान पत्रकारों के लिए इतिहास भी 22 दिसम्बर 1949 से प्रारम्भ होता है जब रामलला की मूर्तियाँ बाबरी मस्जिद में जबरदस्ती रखी गयी थी I उसके पहले क्या हुआ था उससे मीडिया को क्या मतलब ?!

वास्तव में यदि देखें तो बाबरी मस्जिद को तोड़कर वहाँ श्रीराम-मंदिर बनाने का दायित्त्व भारत सरकार का था I 15 अगस्त 1947 के तुरंत बाद ही यह कार्य हो जाना चाहिए था I अयोध्या ही नहीं, मथुरा, काशी एवं अन्य ऐसे सभी स्थलों से राष्ट्रीय-कलंक के प्रतीकों को मिटाने के लिए 1947 अथवा 1950 में ही ‘राष्ट्रीय-चेतना मंत्रालय’ का गठन हो जाना चाहिए था I राष्ट्र को धर्म-निरपेक्ष घोषित किये जाने के बाद संवैधानिक रूप से यह सरकार का दायित्त्व बनता था कि मुस्लिम हमलावरों द्वारा किए गए ध्वंस पर हुए निर्माण को मिटा दे I जब तक ऐसा नहीं होता हम सरकार को धर्म निरपेक्ष कैसे मान लें ? इस्लाम के नाम का दुरूपयोग करने वाले हमलावरों द्वारा किये गए कुकृत्यों के स्मारकों को मिटाए बिना हम धर्म-निरपेक्षता की बात कैसे कर सकते है ?सरकार ने कुछ नहीं किया तो भारत के लोगों ने 6 दिसम्बर 1992 को स्वयं इस कार्य का शुभारम्भ कर दिया I जो इस महान कार्य को मुस्लिम- विरोधी दृष्टिकोण से देखते हैं वह भयंकर भूल करते हैं I बाबरी मस्जिद के ध्वंस से स्वयं को गौरवान्वित समझने वाला बृहत् हिन्दू समाज इस्लाम का विरोधी नहीं हैं I भारत का यह बहुसंख्यक समाज मस्जिद की उतनी ही श्रद्धा करता है जितनी मंदिर की I रामकृष्ण परमहंस, गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा, संत कबीर, गुरु नानक आदि महान भारतीय संतों ने पैगम्बर मोहम्मद एवं पवित्र कुरान को पूर्ण श्रद्धा की दृष्टि से देखा है I बिहार, बंगाल, उड़ीसा एवं अन्य क्षेत्रों में श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र जी (1888-1969) के शिष्यगण श्रीराम, कृष्ण, बुद्ध, ईसा एवं मोहम्मद सबकी समान-रूप से प्रतिदिन आराधना करते हैं I पर यह सारी बातें मीडिया के लिए तथ्य नहीं है I इससे उनकी टी.आर. पी. नहीं बढ़ती Iउच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि भारतीय पुरातत्त्व विभाग के शोध ने यह प्रमाणित कर दिया कि एक हिन्दू धर्मस्थल का ध्वंस कर मस्जिद बनाई गयी थी I ऐसी स्थिति में वह मस्जिद अल्लाह की इबादत योग्य स्थान कैसे रही ? वह तो कलंक थी हमारी सभ्यता और संस्कृति पर I यदि भारत को वास्तविक रूप से धर्म-निरपेक्ष बनाना है तो ऐसे सभी कलंको को मिटाना होगा I

भारतीय मुस्लिम समाज को इस यथार्थ को स्वीकारना होगा कि इस्लाम की शिक्षा भले अरब से आई हो, पर उनकी संस्कृति भारतीय है, अरब की नहीं I उन्हें गौरी, गज़नी, ख़िलज़ी और बाबर के वंश पर गर्व करना छोड़ना होगा I यह सभी भारतीय -संस्कृति के ध्वंसकर्त्ता हैं I नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों का विध्वंस करने वाले बख्तियार खिलजी के नाम पर एक शहर है बिहार में– बख्तियारपुर ! औरंगजेब के नाम पर तो कई शहर हैं, और राजधानी नई दिल्ली का एक प्रमुख मार्ग उसी के नाम पर है I यह भारत के पतन का परिचायक नहीं तो और क्या है ? अजमल कसाब के नाम पर मुंबई का नाम ‘कसाबपुर’ या ताज होटल का नाम ‘कसाबधाम’ रख देना क्या धर्म- निरपेक्षता होगी ? संसद पर हमला करने वाले अफज़ल गुरु को फाँसी न देना क्या धर्मं निरपेक्षता है ?सनातन धर्म ‘सर्वधर्म-समभाव’ पर आधारित है I अनादिकाल से चली आ रही इस सभ्यता को तहस-नहस करना चाहा है मुस्लिम आक्रमणकारियों ने I हजारों मंदिरों को ही नहीं, विश्वविद्यालयों तक को नेस्तनाबूद कर डाला उन्होंने I दारा शिकोह जैसी किसी शख्सियत ने भारतीय दर्शन में यदि रूचि भी दिखाई तो उन्हें हाथियों द्वारा कुचलवा दिया गया I पर इन तथ्यों से मीडिया को क्या फर्क पड़ता है !

‘सर्वधर्म-समभाव’ की भावना मूल इस्लाम में अवश्य है, पर अनुयायियों ने उसे विकृत कर दिया I अब इसका मुस्लिम-सोच में कोई स्थान नहीं I मुस्लिम संस्कृति भारत की राष्ट्रीयता की परिचायक नहीं I हाँ, जहाँ वे अल्पसंख्यक हैं वहाँ ‘सेकुलरिज्म’ बात वे जरुर करेंगे I पर जहाँ वे बहुसंख्यक हैं वहाँ क्या होता है ? सउदी अरब, दुबई, खाड़ी- देश, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में ‘सर्वधर्मं समभाव’ या ‘सेक्युलरिज्म’ की बात करने वाले जीवित नहीं छोड़े जाते I काश्मीर के मुस्लिम ‘सर्वधर्म समभाव’ की बात क्यों नहीं करते ?!! मुस्लिम जिस क्षेत्र में बहुसंख्यक होंगे वहां वे अलग राष्ट्र की माँग करेंगे, यह ध्रुव सत्य है I पाकिस्तान एवं बांग्लादेश का निर्माण इसी कारण हुआ था I आज जो कश्मीर की समस्या है उसका कारण बस यही है कि वहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हैं I काश्मीर से अधिक पिछड़े बिहार जैसे अन्य क्षेत्र में पृथक राष्ट्र की माँग क्यों नहीं उठती ? सशस्त्र विद्रोह पर उतर आए नक्सलवादी भी पृथक राष्ट्र की माँग नहीं कर रहे !पिछले महीने ही पश्चिम बंगाल के देगंगा में मुस्लिमों ने जो हिन्दुओं पर जो कहर बरपा किया उस पर मीडिया चुप क्यों है ? वे शायद इस अवसर की प्रतीक्षा में है कि कब हिन्दू प्रत्याक्रमण करें और वे कैमरा और सेकुलरिज्म का झंडा लेकर कूद पड़ें ! भला हो मीडिया की शीर्ष-संस्था का जिसने खबरिया चैनलों पर अंकुश लगा दिए थे I वर्ना अपनी टी. आर. पी. बढ़ने के लिए ये चैनल सबको भड़का कर पूरे देश में दंगा करवा देने से शायद ही हिचकें I और फिर चेहरे पर पाउडर पोत कर इनके संवाददाता मरने वालों के परिजनों से पूछते फिरते “कैसा महसूस हो रहा है ?” !!राजनीतिक नेताओ को तो चुनावों में जनता को जवाब देना होता है I पर मीडिया वाले सिर्फ व्यापारी हैं I स्वयं पर स्व-घोषित रूप से ‘जनता की आवाज़’ का नकाब ओढ़े हुए है I साथ ही साथ बहुसंख्यक जनता के मत की आलोचना भी करते हैं !! उन्हें टी. आर. पी. चाहिए और वे उसी की सुनेंगे जो उन्हें धन दे I धन तभी मिलेगा जब ज्यादा विज्ञापन मिलेंगे और यह तभी संभव है जब देश में उपभोक्तावाद बढे तथा भारत का अधिक से अधिक बाजारीकरण हो I

परन्तु सनातन धर्म की मूल भारतीय- संस्कृति तो त्याग पर आधारित है ! यह विषयोपभोग को पतन मानती है, विकास नहीं I ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ I इन्द्रियों एवं स्वयं की आवश्यकताओं पर संयम रखने की शिक्षा देता है सनातन धर्म का विज्ञान I मूल इस्लाम की आध्यात्मिकता के भी यही मूल्य हैं I यह पाश्चात्य संस्कृति एवं मूल्यों के ठीक विपरीत है जिनका आदर्श है – अधिक से अधिक उपभोग I यही कारण है कि अधिकांश मीडिया (चैनल एवं प्रिंट) वालो को सनातन धर्म के मूल्य फूटी आँखों नहीं सुहाते I वैदिक शिक्षा हो या निजामुद्दीन औलिया की, अधिकांश मीडिया को आध्यात्मिक मूल्यों से ही चिढ़ है I हिन्दू- मुस्लिम सबको समझ लेना होगा कि मीडिया अपनी रोटी सेंकना चाहता है Iइसके अतिरिक्त, चाचा नेहरु की वज़ह से भारतीय शिक्षा पद्वति एवं भारतीय इतिहास का प्रस्तुतीकरण वामपंथ के दृष्टिकोण पर आधारित हैं I यह वामपंथ सनातन धर्म पर आधारित भारतीय संस्कृति एवं उसके इतिहास के तथ्यों से घृणा करता है I सनातन धर्म की हमारी सभ्यता आसुरिक एवं पैशाचिक संस्कृति की विरोधी है I उन्मुक्त यौन-सम्बन्ध, समलैंगिकता, सिद्धांत -विहीन स्वछन्दता, विवाह-संस्था का पतन, परिवार का बिखराव, मदिरापान एवं मांसाहार जैसे तामसिक कृत्य आसुरिक संस्कृति के अंग है I यह संस्कृति व्यक्ति को इन्द्रियों का गुलाम बनाकर भोगवाद सिखाती है I इसी से समाज में उपभोक्तावाद बढ़ता है I यही कारण है कि आधुनिक मीडिया का अधिकांश भाग इन्ही कृत्यों के गुण गाता है और ‘विकास’ का जामा पहनाकर इन दुष्प्रवृत्तियों को समाज में बढ़ाना चाहता है Iमीडिया की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है सनातन धर्म ! श्रीराम इसी सनातन धर्म के प्रतीक हैं जो ‘सर्वधर्म समभाव’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ पर आधारित है I यह भोगवाद एवं उपभोक्तावाद के विरुद्ध है I इसीलिये मीडिया चुनौती दे रहा है भारतवर्ष की सनातन संस्कृति को जो हमारे राष्ट्र का वज़ूद है I श्रीराम मंदिर का निर्माण उनके लिए ‘worst case scenario’ है I
राम जन्मभूमि का मामला शायद राजनीतिक दलों के हाथ से निकल चुका है I अब जो युद्ध है वह भारतवर्ष और भारत की मीडिया के बीच है ! मीडिया ने उच्च न्यायालय के निर्णय एवं राममंदिर-निर्माण का माखौल उड़ा कर समग्र राष्ट्र को ललकारा है I उनकी इस चुनौती का सामना करना होगा पूरे देश को एकजुट हो कर I


“समर शेष है, अहंकार इनका हरना बाकी है,
वृक को दंतहीन, अहि को निर्विष करना बाकी है ।
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध ।” (-दिनकर )

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