सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

दूसरा कश्मीर बनता असम

गुरुवार को असम में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के पीछे उल्फा या किस आतंकवादी संगठन का हाथ है, इसके बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है, लेकिन इतना तय है कि हाल के दिनों में सीमावर्ती असम के इलाकों में पाकिस्तानी झंडों के लहराए जाने से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस तरह की घटनाओं के पीछे कौन लोग हो सकते हैं?

हाल के दिनों में देश के भीतर आतंकवाद की घटनाओं ने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी है और सब परेशान हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है? पूर्वोत्तर या असम में भी इस तरह के भीषण धमाके हो सकते हैं, इसका अंदाजा केन्द्र और राज्य सरकार को नहीं रहा होगा। तभी तो खुफिया एजेंसियाँ भी राज्य और केन्द्र सरकार को समय रहते आगाह नहीं कर सकीं।

पर असम में होने वाले धमाके बताते हैं कि देश के ज्यादातर राज्यों में स्लीपर सेल्स हैं, जो आतंकवादियों की हर तरह से मदद करते हैं और धमाकों को अंजाम देने के लिए स्थानीय आदमी भी मुहैया कराते हैं और असम भी इसका अपवाद नहीं है, वरन असम में तो सबसे ज्यादा हालात खराब हैं।

कई कारणों से असम का मामला अलग है, क्योंकि यह इलाका बांग्लादेशी घुसपैठ, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के मददगारों के जड़ें जमाने और स्थानीय स्तर के तनावों के चलते सांप्रदायिक, विभिन्न वर्गों या गुटीय हिंसा के मैदान के रूप में बड़ी तेजी से उभरा है।

असम में होने वाली हिंसा कहीं अधिक गंभीर और दूरगामी असर डालने वाली है। पाकिस्तान से सटे कश्मीर की तरह अब बांग्लादेश (कभी पूर्वी पाकिस्तान) से सटे असम में देश के दुश्मनों द्वारा चिंगारी भड़काई जा रही है। विशेषज्ञों की नजर में यदि समय रहते इसे बुझाया नहीं गया तो यह चिंगारी भयंकर आग का रूप धारण कर एक और कश्मीर बन सकती है।

क्या असम में फैली हिंसा बांग्लादेशी घुसपैठियों और आईएसआई के आकाओं तथा उल्का जैसे भारत विरोधी संगठनों की एक सोची-समझी साजिश है? क्या इसके पीछे हमेशा भारत को अस्थिर रखने की कोशिश में जुटा पाकिस्तान नहीं है? असम में रह रहे बांग्‍लादेशी घुसपैठियों ने उदालगिरी जिले के आइठनबारी, पूनिया, पानबारी, मोहनपुर सोनाईपारा मेपाकिस्तान के ही झंडे क्यों लहराए, बांग्‍लादेश के क्यों नहीं?

वर्ष 1979 से ही घुसपैठियों की समस्या से जूझते आ रहे असम और अब मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश तथा नगालैण्ड के लोग बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ से तंग आ चुके हैं। ये अवैध बांग्लादेशी न केवल उनकी भूमि, व्यवसाय और संसाधनों पर कब्जा कर रहे हैं, बल्कि जिस भी क्षेत्र में उनकी संख्या 25 प्रतिशत से अधिक होती जा रही है, वहाँ से हिन्दुओं को भगाने के लिए षड्यंत्र रच रहे हैं। इसी कारण असम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैण्ड के निवासी अवैध बांग्‍लादेशियों को उनके राज्य से निकालने के लिए आंदोलन करते रहे हैं।

क्या असम में फैली हिंसा बांग्लादेशी घुसपैठियों और आईएसआई के आकाओं तथा उल्फा जैसे भारत विरोधी संगठनों की एक सोची-समझी साजिश है? क्या इसके पीछे हमेशा भारत को अस्थिर रखने की कोशिश में जुटा पाकिस्तान नहीं है
इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे छात्र संगठनों ने चेतावनी दी थी और बांग्‍लादेशियों को भारत छोड़ने का 'अल्टिमेटम' दे दिया था, पर इसके विरुद्ध बांग्लादेशी मुस्लिमों ने ऑल असम माइनारिटी स्टूडेन्ट्स यूनियन (आमसू) के बैनर तले 'असम बंद' की घोषणा की थी।

इस बंद के दौरान कट्टरपंथी मुस्लिम युवक हिंसक हो गए। उन्होंने अनेक वाहन फूँक दिए और 8 हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया था। हिंसा का सिलसिला यहीं नहीं थमा, ईद के अगले ही दिन यानी 3 अक्टूबर को पूर्व योजना के तहत उदालगिरी जिले में बांग्लादेशी मुसलमानों ने हिन्दुओं और उनके गाँवों के विरुद्ध हिंसक अभियान छेड़ दिया।

बोडो, गारो, खासी, राभा, संथाल जनजातियों के साथ असमिया, बंगला और हिन्दी बोलने वाली जनजातियों के गाँवों पर योजनाबद्ध ढंग से हमला बोला गया। 40 से अधिक हिन्दू बहुल गाँवों पर हमला कर उन्हें आग के हवाले करने का प्रयास किया गया। इसमें इकबारी, बाताबारी, फाकिडिया, नादिका, चाकुआपारा, पूनिया, झारगाँव, जेरुआ, बोरबागीचा, आइठनबारी, राउताबागान और सिदिकुआ के सैकड़ों घर जल गए और हजारों हिन्दू पलायन कर गए।

उन्हें उदालगिरी डिग्री कॉलेज, उदालगिरी गर्ल्स हाईस्कूल, नलबाड़ी के एलपी स्कूल और कैलाइबारी के स्कूल में शिविर बनाकर रखा गया है। यह हिंसा निकटवर्ती दर्रांग जिले में भी फैल गई और वहाँ भी हजारों लोग जान बचाने के लिए शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं।


उदालगिरी के झाकुआपाड़ा में गाँव बूढ़ा (ग्राम प्रधान) को उसकी माँ और बहन के साथ जिंदा जला देने की घटना ने सभी को हिलाकर रख दिया। इसके बाद भड़के जनाक्रोश के कारण कांग्रेसी राज्य सरकार ने इस मामले पर मुँह खोला, वह भी अल्पसंख्यकों (अर्थात अवैध बांग्‍लादेशी मुसलमानों) को मरहम लगाने के लिए। राज्य सरकार ने इसे बोडो और संथालों तथा मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक हिंसा के रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया।

यह भी कहा गया कि इसके लिए नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैण्ड (एनडीएफबी) दोषी है, जबकि सच्चाई यह है कि यह बांग्‍लादेशी मुसलमानों और असमिया हिन्दुओं के बीच संघर्ष है। यह इससे भी साफ होता है कि दर्रांग जिले में जो हिंसा हुई, उसमें ब्रह्मपुत्र नदी के पार मारीगाँव के मुसलमानों ने भी साथ दिया, जो ब्रह्मपुत्र के छोटे-छोटे द्वीपों से नाव द्वारा दर्रांग जिले में घुसे थे। ये सब सेना की वर्दी पहने हुए थे। यह वही पद्धति है, जो मुसलमानों ने 1983 के दंगों के समय अपनाई थी।

सूत्रों के अनुसार इस बार की हिंसा के दौरान ऑल असम माइनारिटी स्टूडेन्ट्स यूनियन (आमसू), स्टूडेन्ट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), ऑल असम मुस्लिम छात्र परिषद् और मुस्लिम स्टूडेन्ट्स एसोशिएशन (मूसा) के नेता मुस्लिम बहुल गाँवों का लगातार दौरा करते रहे और उन्हें हिन्दुओं पर हमला करने के लिए निर्देशित करते रहे तथा हथियार उपलब्ध कराते दिखे।

दर्रांग जिले में जलाए गए हिन्दुओं के घरों पर मारीगाँव से नाव द्वारा ब्रह्मपुत्र पार करके आए मुस्लिमों द्वारा कब्जा जमा लेने की भी खबर है। सूत्रों के अनुसार उदालगिरी, दर्रांग और बक्सा जिलों के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में रमजान के दौरान ही गुप्त बैठकें हुईं। कट्टरपंथियों को इससे भी संबल मिला कि बदरुद्दीन अजमल द्वारा गठित असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक रसूल हक बहादुर तथा आमसू के अध्यक्ष अब्दुल अजीज ने निचले असम में अलग स्वायत्तशासी क्षेत्र की माँग की है और वहाँ से सभी असमिया लोगों को चले जाने की धमकी दी है।

इस संबंध में असम के एक वरिष्ठ पत्रकार, जो कि हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करके लौटे हैं, ने बताया कि 14 सितम्बर को आमसू द्वारा आहूत असम बंद के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-58 पर स्थित रौटा (उदालगिरी) कस्बे में जबरन दुकानें बंद करने की कोशिश की गई। इस दौरान हुई झड़प में बोडो समुदाय के दो युवक मारे गए।

तभी से पूरे क्षेत्र में तनाव चला आ रहा था, लेकिन राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने घोर लापरवाही बरती, जिसके कारण यह आग इतनी तेजी से भड़की। यह भी समझना होगा कि उदालगिरी एक नया बना जिला है, जो अति संवेदनशील है, क्योंकि यह सीमावर्ती राज्य है, जिसकी सीमाएँ भूटान और अरुणाचल प्रदेश से सटी हुई हैं।

इस संवेदनशील जिले को सिर्फ एक उपायुक्त (डीसी), एक अतिरिक्त उपायुक्त (एडीसी) एवं एक क्षेत्राधिकारी (सीओ) के भरोसे छोड़ रखा है। दो प्रखण्ड (सबडिवीजन) होने के बावजूद वहाँ किसी उप जिलाधिकारी (एसडीएम) की नियुक्ति नहीं की गई। एक संवदेनशील जिले में राज्य सरकार द्वारा इतना लचर प्रशासन रखने का क्या औचित्य है, यह समझ से परे है।
सूत्रों के अनुसार जब उदालगिरी जिला नहीं बना था तब इस विस्तृत दर्रांग जिले में ही 1962 में चीनी आक्रमण के समय पाकिस्तानी झण्डे मिले थे। 1965 और 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान पाकिस्तानी झण्डे यहाँ लहराए गए थे और 1983 में दंगों के दौरान भी, इसलिए अब फिर पाकिस्तानी झण्डे फहाराने पर आश्चर्य नहीं।

...लेकिन बांग्‍लादेशी या कहें पूर्वी पाकिस्तानी आतंकवादियों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि वे खुलेआम 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाने के साथ हिंसक आक्रमण कर रहे हैं। न हिंसक वारदातों के बाद असम के अन्य वरिष्ठ पत्रकार ने भी अपनी रपट में लिखा कि जो बांग्‍लादेशी मुसलमान मारे गए हैं, उनमें से अधिकांश पुलिस फायरिंग में मरे, क्योंकि वे सुरक्षा बलों पर हमला कर रहे थे।

मुसलमानों को जान-माल की कम हानि हुई है, लेकिन इसके बावजूद वे जानबूझकर बड़ी संख्या में राहत शिविरों में भाग आए, ताकि सरकार से मिलने वाली राहत सामग्री ले सकें। केन्द्र और राज्य सरकार को भी यही दिखाई दे रहा है और वह बांग्लादेशी घुसपैठियों को 'अल्पसंख्यकों पर अत्याचार' के रूप में प्रचारित कर रही है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ असम, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में छात्र संगठनों द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन के कारण पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था (आईएसआई) के इशारे पर ये हिंसक वारदातें हुई हैं, लेकिन घुसपैठियों को असमिया मुसलमान बताकर कांग्रेस अपना वोट बैंक बचा रही है।

ये सारी कोशिश इसलिए चल रही है कि बोडो, संथाल, गारो तथा खासी जनजातियों को उनके गाँवों से भगाकर वहाँ बांग्‍लादेशी मुसलमानों को बसाया जा सके। हम देख रहे हैं कि बांग्‍लादेशी मुस्लिम गाँवों की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात है पर असमिया लोगों के गाँवों की सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए हैं। सरकार कह रही है कि शरणार्थी शिविरों में लगभग 2 लाख मुस्लिम हैं। आखिर ये कहाँ से आए हैं? इनकी पहचान की जाए और जो असमिया मुस्लिम हैं, उन्हें वापस उनके घरों में भेजकर बाकी सब को बांग्लादेश में वापस भेज दिया जाए।

दरअसल घुसपैठ को सही मायने में देखा जाए तो यह कांग्रेस सरकार के वोटबैंक की गलत नीतियों व उसकी धूर्तता का ही दुष्परिणाम है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की असंवैधानिक तौर पर आज भी घुसपैठ जारी है। सत्तारूढ़ सरकार ने वोट बैंक पॉलिसी के मद्देनजर ऐसी नीतियाँ व कानून बनाए, जिसके चलते बांग्लादेशी घुसपैठियों का निकालना असंभव हो गया।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने 15 जुलाई 2005 में अवैध घुसपैठ से जुड़ी आईएमडीटी एक्ट को असंवैधानिक ठहराया। लेकिन केन्द्र के सर पर जूँ तक नहीं रेंगी। उसने वोट बैंक की चिंता करते हुए फॉरनर्स एक्ट में ऐसे बदलाव किए, जिससे उसमें आईएमडीटी एक्ट की सारी चीजें आ गईं। जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वर्तमान की केन्द्र सरकार वोट के लिए देश के भविष्य को भी दाँव पर लगा सकती है।

घुसपैठ को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट नें दिसम्बर 2006 के फैसले में कहा कि फॉरनर्स एक्ट के तहत नई व्यवस्था चार महीने के भीतर बनाई जाए पर कांग्रेस सरकार सब कुछ जानते हुए भी स्थिति से बिलकुल अनजान बनी हुई है।

घुसपैठ को सही मायने में देखा जाए तो यह कांग्रेस सरकार के वोटबैंक की गलत नीतियों व उसकी धूर्तता का ही दुष्परिणाम है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की असंवैधानिक तौर पर आज भी घुसपैठ जारी है।
उल्फा विदेशों में बैठे अपने आकाओं के आदेशानुसार असम में बांग्लादेशी मुसलमानों को बढ़ाने के साथ-साथ उसे विस्तारित करने की रणनीति को बड़े साफगोई से अंजाम दे रही है। इसमें बांग्लादेश की सोची-समझी चाल काम कर रही है। उसके इस चाल में हिन्दी भाषियों, गरीबों और मजदूरों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। आज स्थिति यह है कि असम में बांग्लादेशियों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई है कि उन पर नियंत्रण करना काफी मुश्किल है।

आज बांग्लादेश के कई कट्टरपंथी जेहादी संगठन असम व पश्चिम बंगाल के कई मुस्लिम बहुल इलाकों को अलग करके बृहत्तर बांग्लादेश की माँग करने की तैयारी में जुटे हैं। जो खूनी खेल आईएसआई ने कश्मीर में खेला, वही आज पूर्वोत्तर भारत में बांग्लादेश की मदद से दोहरा रही है। उल्फा इसका माध्यम बन रही है। पिछले एक दशक से असम के हालात बद से बदतर हो गए हैं। असम की मुस्लिम राजनीति में उफान आना कोई मामूली घटना नहीं है।

मुसलमानों की भलाई का नाटक करने वाली यहाँ असम की मुस्लिम पार्टियों में अधिकांशत: बांग्लादेशी हैं। पहले असम के शहरों में रिक्शा चलाने वाले, रेहड़ी वाले बिहारी मजदूर होते थे किंतु अब उनकी संख्या घटकर मात्र आधी से भी कम रह गई है। उनके द्वारा छोड़े गए कामों पर बांग्लादेशी घुसपैठिए अपना कब्जा चुके हैं। ये घुसपैठिए ठीक तरह से असमी भी नहीं बोल पाते, जिससे यह साफ जाहिर होता होता है कि ये बांग्लादेशी हैं।

दिन-प्रतिदिन भयावह होती असम की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कठोर निर्णय लेने की जरूरत है। केंद्र सरकार को अपनी तुष्टिकरण और वोट बैंक की नीति को छोड़कर देश हित में फैसला लेने से असम अन्य राज्यों की तरह शांत रह सकता है। वर्ना वो दिन दूर नहीं जब जम्मू-कश्मीर के तरह ही असम भी भारत के लिए ऐसा नासूर बन जाएगा, जिसका दर्द सदियों तक हर भारतवासी को झेलना पड़ेगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. Bhai jab Hindu jagega tabhi ye Islam bhagega.
    SOye huye Hinduao ko jagawo aur in Begladeshi ke sath-2 congressiyo ko bhi bhagao.

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