गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

31जुलाई,बलिदान दिवस वीर उधम सिंह

तारीखें गवाह हैं कि हिन्दुस्तान की सरजमीं वीरों से खाली नहीं है। आतताईयों का दमन चक्र यदि अपने चरम पर रहा है तो माँ भारती के लाडलों ने भी अत्याचारों का बदला लेने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। भारतीय इतिहास में ब्रितानिया हुकूमत की काली खामोश गवाह तारीख 13 अप्रैल 1919 है। इसी दिन रौलेट एक्ट के विरोध में वैशाखी के पर्व पर जालियांवाला बाग में विशाल जन समुदाय एकत्रित हुआ था। अपने प्रिय नेताओं के विचारों को सुनने के लिए लोग परिवार सहित तीन तरफ से बंद, संकरे, रास्ते वाले इस बाग में जमा हुए थे।

इस समय पंजाब प्रांत का गर्वनर माइकल ओ डायर था। इसी रक्त पिपासु गर्वनर माइकल ओ डायर के आदेश, पर क्रूर एव बहशी अंग्रेज जनरल डायर ने संकरी गली पर फौज के साथ कब्जाकर के गोलीबारी करवायी थी। जालियांवाला बाग की मूक दीवारें इन दरिंदों की आज भी गवाह हैं। दीवारों पर गोलियों के निशान भारतीयो के अमानुषिक कत्लेआम तथा ब्रितानिया हुकूमत के अत्याचार की साक्षी हैं।

भारतीय युवकों-किशोरों में इस घटना के पश्चात बदले की भावना बलवती हो गई। जालियांवाला बाग की माटी माथे पर लगाकर सौगंध खाई गई। सरदार भगत सिंह यहां की माटी साथ ले कर गये थे। मात्र 12 वर्ष की उम्र का किशोर उधम सिंह यहां घटी घटना को अपनी आँखों से जीवन्त रूप से देखने वालों में से एक था। बदले की भावना नसों में समा चुकी थी। ह्दय में भाव समेटे किशोर उधम सिंह इंजीयिरिंग की शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गया।

कालान्तर में इधर पंजाब का गवर्नर माइकल ओ डायर सेवानिवृत्त हो गया। वो इग्लैण्ड पहुँचा, ब्रिटिश नागरिकों ने इस हत्यारे का नायक के रूप में अभिनन्दन किया और बीस हजार पौंड का नगद पुरस्कार भी दिया गया। क्रोधित और दृढ़ निश्चयी उधम सिंह मौके की तलाश करने लगा।

‘रोयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी’ और ‘ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन’ द्वारा ‘‘अफगानिस्तान’’ विषय पर सम्मेलन का आयोजन 13 मार्च 1940 को किया गया। सभापति लार्ड जेटलैण्ड थे तथा प्रमुख व्यक्तियों में माइकल ओडायर बैठा था। कार्यक्रम की समाप्ति पर उधम सिंह सामने की पंक्ति में जा पहुँचे और एक साथ पांच गोलियां ओडायर की छाती पर उतारकर इस रक्त पिपासु को मौत के घाट उतार दिया। सभा भवन में भगदड मच गई। इसी दौरान बाहर निकलते समय गिर जाने के कारण उधम सिंह पकड़ लिये गये।

लंदन के ‘ओल्डवेली क्रिमिनल कोर्ट’ में इस वीर योद्धा का मुकदमा चला। जज ने प्रश्न किया- तुमको कुछ कहना है?

उत्तर - ‘‘हाँ, मुझे राम मोहम्मद सिंह डिसूजा के नाम से पुकारा जाये।’’

प्रश्न - ‘‘तुम सिक्ख हो या मुसलमान?’

उत्तर - ‘‘मैं हिन्दुस्तानी हूँ।’’

जज ने कहा- अपने बचाव के लिए तुम्हे कुछ कहना है?

उधम सि।ह- ‘‘मुझे यह कहना है कि माइकल ओडायर को मैने ही मारा है। ओडायर मृत्युदण्ड का ही पात्र था। 21 वर्ष बाद मैं अपने राष्ट्र के अपमान का बदला लेकर संतुष्ट हूँ। फाँसी का फन्दा गले लगाने के लिए उत्सुक हूँ’’।

इस निर्भीक स्वीकारोकित के पश्चात न्यायलय ने फांसी की सजा दे दी।

31जुलाई,1940 के दिन इग्लैण्ड में ही राष्ट्रीय अपमान का बदला लेने के अपराधी माँ भारती के इस सेनानी को फाँसी पर लटका दिया गया। वीर उधम सिंह ने यह साबित कर दिया कि अंग्रेजो को हम अपनी सरजमीं पर ही नहीं, उनकी सरजमीं पर भी मौत दे सकते हैं।

इस अमर सेनानी को उसके बलिदान दिवस पर शत्-शत् श्रद्धाजलि।

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