गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

आज़ादी के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

कटक के वकील जानकीनाथ बोस के घर 23जनवरी, 1897 को एक पुत्र का जन्म हुआ। श्रीमती प्रभावती बोस व जानकीनाथ बोस का यह पुत्र ” माँ भारती की बेड़िया ” काटने के लिए ही जन्मा था । यह बालक ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नाम से विश्व विख्यात हुआ।मेधावी प्रतिभा के धनी नेताजी ने बी0ए0आनर्स प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण होने के उपरान्त पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आई0सी0एस की परीक्षा के लिए 1921 में लन्दन गये और सफलता प्राप्त की । किन्तु देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना के कारण सिविल सर्विसेज की नौकरी न करके नेताजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत के वतंत्रता संग्राम में लगा दिया ।


बोस पर स्वामी विवेकानन्द,अरविन्द घोष का बड़ा गहरा प्रभाव था। आजाद हिन्द फौज के इस सेनापति का स्वभाव आध्यात्मिक ही था।सन्यासियो के प्रति आकर्षण रखने वाले बोस एक सच्चे समाजसेवी तथा स्वाभिमानी योद्धा थे। क्रान्तिकारियो के बौद्धिक नेता सरदार भगत सिंह के अनुसार,-‘‘ सुभाष चन्द्र बोस हिन्दुस्तान के युवाओ प्रतिक के रूप मे स्थापित हो चुके है।।’’ नेताजी को हिन्दुस्तान की आजादी का पक्का समर्थक बताते हुए भगत सिंह ने जुलाई 1928 में लिखा था कि सुभाष को प्राचीन संस्कृति का उपासक कहा जाता है। सुभाष चन्द्र बोस को ब्रितानिया हुकूमत तख्ता पलट गिरोह का सदस्य मानती थी । बंगाल अध्यादेष के तहत् सुभाष को कैद भी किया गया था।मद्रास सम्मेलन में सुभाष चन्द्र बोस,पंडित जवाहर लाल नेहरू आदि के प्रयासों से ही पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव स्वीकृत हो सका था। आध्यात्मिक प्रवृत्ति के सुभाष चन्द्र बोस ने बम्बई में आयोजित एक जनसभा के दौरान ,जिसकी अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू कर रहे थे,कहा कि,-‘‘हिन्दुस्तान का दुनिया के नाम एक विशेष सन्देश है।वह दुनिया को आध्यात्मिक शिक्षा देगा।………चांदनी रात में ताजमहल को देखो और जिस दिल की यह समझ का परिणाम था,उसकी महानता की कल्पना करो। सोचो,एक बंगाली उपन्यास कार ने लिखा है कि हममे यह हमारे आंसू ही जम-जम कर पत्थर बन गये है।।राष्ट्रीयता के सवाल पर बोस ने कहा,-‘‘अंतर्राष्ट्रीयतावादी , राष्ट्रवाद को एक संकीर्ण दायरे वाली विचारधारा बताते है।,लेकिन यह भूल है , हिन्दुस्तानी राष्ट्रीयता का विचार ऐसा नही है।वह न संकीर्ण है,न निजी स्वार्थ से प्रेरित है और न उत्पीड़नकारी है,क्योंकि इसकी जड़ या मूल तो यह ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ है,अर्थात‘सच,कल्याणकारी और सुन्दर।

’सुभाष चन्द्र बोस के नजरिए में पंचायती राज और जनता का राज की अवधारणा भारत के लिए नई चीज नही। है,यह भारत की पुरातन व्यवस्था है।भावुक सुभाष चन्द्र बोस अपनी पुरातन मर्यादाओ और सिद्धांतों के मानने वाले एक राजपरिवर्तनकारी व्यक्तित्व के थे।पूर्ण स्वराज्य के समर्थक सुभाष चन्द्र बोस अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने के साथ-साथ मजदूरों के प्रति सहानुभूति रखने वाले तथा उनकी स्थिति में सुधार चाहने वाले थे।सुभाष चन्द्र बोस के फैसले दिल के फैसले होते थे। सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रीय राजनीति में तब तक ध्यान देना आवष्यक समझते थे,जब तक दुनिया की राजनीति मे। हिन्दुस्तान की रक्षा और विकास का सवाल हो देशबंधु चितरंजन दास के राजनैतिक शिष्य सुभाष चन्द्र बोस,उनके निर्देष पर कलकत्ता की राष्ट्रीय विद्यापीठ में प्रचार विभाग में कार्य करने लगे। सुभाष चन्द्र बोस को ‘‘बाग्लारकथा’’नामक अखबार का सम्पादन कार्य की जिम्मेदारी भी दी गई।1924 मे। चित्तर।जन दास के कलकत्ता के महापौर बनने पर सुभाष चन्द्र बोस को उन्हो।ने अपना कार्यकारी अधिकारी बनाया।समाजसेवी सुभाष चन्द्र बोस अपनी तनख्वाह गरीब छात्रों पर खर्च करने लगे। स्वयंसेवकों के SANGATHAN का अपराधी होने के आरोप मे। सुभाष बाबु को छः माह की जेल यात्रा भी करनी पड़ी थी।जेल से रिहायी के बाद देशबंधु चितरंजन दास के ‘फारवर्ड’ नामक पत्र का सम्पादन कार्य सुभाष चन्द्र बोस ने संभाला | 25अक्तूबर,1924 को बगैर कारण पुनःहिरासत में ले लिए गये सुभाष को अस्वस्थ हो जाने पर ही 15मई,1927 को रिहा किया गया। बंगाल प्रांतीय के अध्यक्ष के पद और उसके बाद अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महामंत्री के पद पर कार्य करके सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिभा और व्यक्तित्व में निखार आया।बहुमुखी प्रतिभावान सुभाष चन्द्र बोस एक लेखक,सैनिक,दार्शनिक ,राजनीतिज्ञ , कुशल नायक , वक्ता और राष्ट्र द्रष्टा के रूप में युगों -युगों तक भारतीय जनमानस के राष्ट्रवादी विचारधारा के वाहकों के ह्दय सम्राट व आदर्श रहेंगे ।सन्1930 में कलकत्ता के महापौर चुने जाने पर सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के अभिनन्दन की प्रथा को समाप्त करने का ऐतिहासिक कार्य किया।साथ ही साथ कलकत्ता को स्वच्छ करवाया,आरोग्य सेवा के प्रचार प्रसार को प्रारम्भ कराया,‘‘महाजती सदन’’ का षिलान्यास गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के हाथों करवाया , सांस्कृतिक पारम्परिक कार्यक्रमो को पुनः आयोजित करवाना प्रारम्भ किया,प्रशासनिक दक्षता बढ़ायी,कल्याण कोशों की स्थापना तथा उद्योगों को प्रोत्साहन दिया।

सुभाष चन्द्र बोस के प्रभाव से त्रस्त ब्रितानिया हुकूमत,बार-बार सुभाष चन्द्र बोस को कैद करके इघर उधर के जेलों में रखती थी। सुभाष को अंग्रेज सरकार ने निर्वासित करके यूरोप भेज दिया।पिता की बीमारी की खबर सुनकर सुभाष चन्द्र बोस,भारत में निशेधाज्ञा की परवाह किये बगैर लौट आये करांची में बोस को रोक कर,उनकी पुस्तक ” इन्डियन स्ट्रगल ” को जब्त कर लिया गया।पिता की मृत्यु के बाद सुभाष चन्द्र बोस को अंत्येष्टि हेतु जाने मिला। सुभाश चन्द्र बोस ने भूमिगत होकर,यूरोपीय देशों का प्रवास कर वहां पर भारतीयों की आजादी के लिए समर्थन जुटाया।लन्दन में प्रवेश प्रतिबन्धित होने के कारण 10जून, 1933 को लन्दन में आयोजित तृतीय भारतीय राजनीतिक सभा के अधिवेषन में सुभाष चन्द्र बोस का अध्यक्षीय भाषण पढ़कर सुनाया गया। हरिपुरा ओंग्रेस अधिवेशन का अध्यक्षीय भाषण ,सुभाष चन्द्र बोस के इतिहास की गहरी जानकारी तथा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के असाधारण ज्ञान का दस्तावेज है। सत्याग्रह को क्रियात्मक बनाने पर जोर देने वाले नेताजी 1939 मे पुनः त्रिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। महात्मा गाँधी से राजनैतिक मतभेद के कारण सुभाष चन्द्र बोस ने का।ग्रेस छोड़ दी तथा 3मई,1939 को कलकत्ता मे। ‘‘फारवर्ड ब्लाक’’ की स्थापना कर बिखरी शक्ति के एकीकरण तथा स्वतंत्रता आन्दोलन को तेज करने का प्रयास किया।द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारम्भ में ही ब्रितानिया हुकूमत ने बोस को ‘‘हाॅलवैल स्मारक हआओ’’ मुहिम के कारण कैद कर लिया। बोस की भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए यह ग्यारहवी तथा अन्तिम जेल यात्रा साबित हुई। सुभाष चन्द्र बोस ने इस अन्याय व दमन के खिलाफ अंग्रेज सरकार को पत्र लिखा कि या तो उन्हें जेल से मुक्त किया जाये नहीं तो वे अनशन कर प्राण त्याग देंगे । यह पत्र सुभाष चन्द्र बोस की राजनैतिक वसीयत है।सप्ताह भर के अनशन के बाद अंग्रेजी सर्कार ने 5दिसम्बर,1940 को सुभाष चन्द्र बोस को जेल से रिहा कर दिया। धूर्त अंग्रेजों ने नेताजी को घर में ही नजरबन्द कर दिया।आखिरकार 18जनवरी,1941 को सुभाश चन्द्र बोस,मौलवी का वेष धर कर घर के पिछले दरवाजे से बाहर निकल कर,अपने भतीजे डा० शिशिर बोस के द्वारा लाई गई कार से धनबाद पहुंचे । इस समय भारत की आजादी के लिए जापान में रह रहे , रासबिहारी बोस ने जापान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मदद के लिए तैयार कर,आजाद हिन्द फौज का गठन कर लिया था।15जून,1942 को बैंकॉक सम्मेलन में सुभाष चन्द्र बोस को जापान आकर इस फौज का नेतृत्व संभालने का निमत्रण गया। बोस 16मई,1943 को टोकियो-जापान पहुंचे ।सुभाष चन्द्र बोस ने टोकियो रेडियो पर बोलते हुए ब्रिटिष हुकूमत के खिलाफ हथियारबंद लड़ाई के दृढ़ निष्चय और पूर्वी सरहद से आक्रमण आरम्भ करने की घोषणा की। 4जुलाई,1943 को रासबिहारी बोस ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का नेतृत्व सुभाश चन्द्र बोस को सौंपा | बोस ने स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनाने तथा आजाद हिन्द फौज को लेकर हिन्दुस्तान जाने की घोषणा की। 5जुलाई,1943 को बोस ने आजाद हिन्द फौज का निरीक्षण कर ‘‘दिल्ली चलो’’ का उद्घोष किया।25अगस्त, 1943 को सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का सिपहसालार पद ग्रहण कर,सेना मे। भारतीय युवतियो को लेकर ‘‘झाँसी की रानी रेजीमेण्ट’’ बनाई। आजाद हिन्द फौज में गाँधी ,आजाद और नेहरू बिग्रेड़ बनाई गई। 23अक्तूबर, 1943 को आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार की तरफ से सुभाश चन्द्र बोस ने ब्रिटेन और अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।जापान,जर्मनी,इटली,बर्मा,चीन,थाईलैण्ड़,फिलीपीन्स,म।चूरिया की सरकारो ने आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार को मान्यता दी तथा 6नवम्बर,1943 को तोजो ने बृहत्तर पूर्व एशिया सम्मेलन घोषणा हुई कि जापान ने अंडमान और निकोबार के टापुओ को आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार को सौंपने का फैसला किया है। 31दिसम्बर,1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने अंडमान कर दोनो टापुओ का शासन अपने हाथो में लेते हुए टापुओ का नाम “क्रमशः शहीद और ‘स्वराज्य’ द्वीप रखा।

गाँधी ,आजाद व नेहरू बिग्रेड़ के चुनिन्दा सैनिको। को लेकर सितम्बर1943 में मलाया के ताइपिंग में पहली छापामार रेजीमेण्ट ‘ सुभाष बिग्रेड’ के नाम से बनायी गयी थी और इसके सेनापति शाहनवाज खां थे । 4जनवरी,1944 को सुभाषचन्द्र बोस ने रंगून पहुँच कर,मुख्य कार्यालय स्थापित किया। 3फरवरी,1944 को रंगून से बोस ने आजाद हिन्द फौज को जीत या शहादत के लिए रवाना किया। आजाद हिन्द फौज के सैनिको और भारतवासियो से NETAJI -‘‘तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा ’’ शाहनवाज खां ,कप्तान सूरजमल,मंदर अजाब सिंह ,मनसुख लाल,मेजर आबिद हुसैन,मेजर रतूरी आदि आजाद हिन्द के सेना नायको ने अपनी सरजमी की आजादी के लिए हरसम्भव प्रयास किये। इन रणबांकुरों ने अपने अदम्य शौर्य व साहस का प्रदर्षन करते हुए टेटमा,प्लेटवा,डलेटमा,मोडक चैकी,अल्वा चैकी,क्ल।ग-क्ल।ग चैकी,क्लालखुआ,कोहिमा पर तिरंगा फहरा कर नेताजी की जय और जय हिन्द के नारे लगाये। इम्फाल के निर्णायक युद्ध मे हार चुकी अंग्रेजी फ़ौज मार्ग न मिलने के कारण लडती रही,प्रकृति ने अंग्रेजों का साथ दे दिया, भीषण बरसात ने आजाद हिन्द फौज को तितर-बितर कर दिया।नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मन व शरीर दोनो से युद्ध,प्रशासन व संगठन तीनों मोर्चो पर एक साथ काम करते हुए फौजियों का मनोबल व उत्साह बढ़ा रहे थे। इम्फाल में शिकस्त खाकर फौज रंगून लौटी। अमेरिका के द्वारा जापान पर अणु बम के हमले के बाद जापान ने हार स्वीकार कर ली परन्तु नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने हार न स्वीकारी।आपात कालीन फैसले लेते हुए गोपनीय दस्तावेज नष्ट करके, झाँसी की रानी रेजीमेण्ट को भंग करके,युवतियो को घर भेजा गया। सारे साथियो को बर्मा से कुशल बाहर निकाल कर,16अगस्त 1946 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सि।गापुर से बैंकॉक होते हुए सैगोन,सैगोन से इण्डोचायना व फारमोसा द्वीप पहुंचे | फारमोसा के ताईहोकू हवाई अड्डे पर 18अगस्त,1945 को भोजन करने के अश्चात , दो इंजन वाले जापानी बमबाज हवाई जहाज से जैसे ही उड़ान भरे कि जहाज में आग लग गई। बुरी तरह जले हुए सुभाष चन्द्र बोस को अस्पताल ले जाया गया,जहाँ पर रात 8 से 9 बजे के बीच उनका देहान्त हो गया। इस दुर्घटना की बात को सुभाश चन्द्र बोस के परिजनो व प्रशंसकों ने सत्य नहीं माना| आजादी के बाद भारत सरकार की जांच में यह दुर्घटना सत्य साबित हुई। नेताजी का अ।तिम सन्देश था,-’’मेरा अन्त समीप है,हबीब देशवासियों से कहना कि आजादी की लड़ाई चालू रखे।।भारत शीघ्र ही आजाद होने वाला है।’’

साहस,सह्दयता व नैतिकता की साक्षात् मूर्ति नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के दिल में महात्मा गाँधी व अहिंसा के सिद्धांतों को लेकर श्रद्धा थी | लेकिन वे सशस्त्र संघर्ष को वीरोचित आचरण मानते थे। यह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ही थे,जिन्होंने सर्वप्रथम रेडियो रंगून से महात्मा गाँधी को ‘‘राष्ट्रपिता’’ कह कर सम्बोधित किया था।नेताजी ने एक बार कहा था,-‘‘एक बार भारत स्वतंत्र हो जाये,तो इसे गांधीजी को सौंप दूंगा और कहूँगा कि अब इसे आपकी अहिंसा की सबसे ज्यादा जरूरत है।’’ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के संघर्ष , उनकी सोच व कर्मठता आज हमारे बीच प्रेरक बनकर,उनके सदैव हमारे साथ होने का अहसास कराने के साथ-साथ देश हित अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने का पाठ पढ़ाती रहती है।

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