शनिवार, 16 अप्रैल 2011

भारतीय राजनीतिक एवं न्याययिक व्यवस्था से ज्यादा पश्चिमी देशों पर भरोसा करता है चर्च

आजादी के बाद से भारतीय ईसाई एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के नागरिक रहे है। धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था चाहे कितनी ही दोषपूर्ण हो, लोकतांत्रिक व्यवस्था चाहे कितनी ही गैर प्रतिनिधिक हो, यहां के ईसाइयों (चर्च) को जो खास सहूलियतें हासिल है, वे बहूत से ईसाइयों को यूरोप व अमेरिका में भी हासिल नही है। जैसे विशेष अधिकार से शिक्षण संस्थान चलाना, सरकार से अनुदान पाना आदि। इसके बावजूद वह अपनी छोटी छोटी समास्याओं के लिए पश्चिमी देशों का मुँह ताकते रहते है। भारतीय राजनीतिक एवं न्यायिक व्यवस्था से ज्यादा उन्हें पश्चिमी देशों द्वारा सरकार पर डाले जाने उचित-अनुचित प्रभाव पर भरोसा रहता है। यह बाते ईसाई नेता आर.एल.फ्रांसिस की आने वाली पुस्तक ‘चलो चर्च पूरब की ओर’ में कही गई है।

पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट के अध्यक्ष आर.एल.फ्रांसिस ने विभिन्न समाचार पत्रों में लिखे अपने लेखो का पुस्तक के रुप में संकलन किया है। जिसमें उन्होंने चर्च को साम्राज्वादी रैवया छोड़ने का सुझाव दिया है। कंधमाल मामलों का जिक्र करते हुए पुस्तक में कहा गया है कि भारतीय ईसाइयों का यह दुर्भाग्य रहा है कि मिशनरी ईसाइयों पर होने वाले हमलों को भी अपने लाभ में भुनाने से परहेज नही करते। वह वार्ता से भागते हुए अपनी गतिविधियों को यूरोपीय देशो का डर दिखाकर जारी रखते है। महत्मा गांधी तक ने धर्मातंरण की निंदा करते हुए इसे अनैतिक कहा उस समय के कई राष्ट्रवादी ईसाइयों ने गांधी जी के इस तर्क का समर्थन किया था क्योंकि उस समय मिशनरी गतिविधियों का मुख्य लक्ष्य लोगों को अंग्रेज समर्थक बनाना था आज भी मिशनरी अपना काम काज विदेशी धन से ही चलाते है। वे अमेरिकी और यूरोपीय ईसाई संगठनों के प्रति जवाबदेह है।

चर्च पादरियों के प्रति बढ़ती हिंसा पर पुस्तक के लेखक ने चर्च नेतृत्व को आत्म-मंथन का सुझाव देते हुए कहा है कि चर्च लगातार यह दावा करता है कि वह देश में लाखों सेवा कार्य चला रहा है पर उसे इसका भी उतर ढूढंना होगा कि सेवा कार्य चलाने के बाबजूद भारतीयों के एक बड़े हिस्से में उसके प्रति इतनी नफरत क्यों है कि 30 सालों तक सेवा कार्य चलाने वाले ग्राहम स्टेन्स और उसके दो बेटों को एक भीड़ जिंदा जला देती है और उसके धर्मप्रचारकों के साथ भी टकराव होता रहता है। ऐसा क्यों हो रहा है इसका उतर तो चर्च को ही ढूंढना होगा।

‘चलो चर्च पूरब की ओर’ पुस्तक में लेखक ने वर्तमान परिस्थितियों का जिक्र करते हुए कहा है कि ईसाई भारतीय समाज और उसकी समास्याओं से अपने को जुड़ा नहीं महसूस करते है। वे अभी भी वेटिकन एवं अन्य पश्चिमी देशों पर निर्भर है। और उनके सारे विधि-विधान वेटिकन द्वारा संचालित किये जा रहे है।

करोड़ों धर्मांतरित दलित ईसाइयों की दयनीय स्थिति के लिए चर्च को कठघेरे में खड़ा करते हुए लेखक ने कहा है कि चर्च ने उनकी स्थिति सुधारने की उपेक्षा महज उन्हें संख्याबल ही माना है । विशाल संसाधनों वाला चर्च अब अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ते हुए उन्हें सरकार की दया पर छोड़ने के लिये रंगनाथ मिश्र आयोग की दुहाई दे रहा है।

‘चलो चर्च पूरब की ओर’ पुस्तक के भाग दो में रंगनाथ मिश्र आयोग रिपोर्ट का संक्षिप्त विवरण एवं समीक्षा दी गई है और रंगनाथ मिश्र आयोग रिपोर्ट के धर्मांतरित ईसाइयों पर पड़ने वाले दुखद: तथ्यों को रेखकिंत किया गया है।

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