गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

भारत माँ का लाल भगत सिंह

भगतसिंह का जन्म 27-28सितम्बर,1907 को बंगा गांव,लायलपुर जिला में हुआ।पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीत सिंह स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल में बन्द थे।भगतसिंह के जन्म के ही बाद ये लोग जेल से रिहा हुए थे।गुलामी से नफरत और देशभक्ति इनके खून में समाई थी।विरासत में मिली थी गुलामी से लड़ने की हिम्मत।शिक्षा देशभक्तों के केन्द्र नेशनल कालेज-लाहौर में ग्रहण की।सुखदेव,यशपाल,भगवतीचरण वोहरा इनके कालेज के मित्र थे।भगतसिंह पढ़ने लिखने में ज्यादा ध्यान देते थे।विक्टर ह्यूगो,हाॅल केन,टाॅल्सटाॅय,गोर्की,बर्नोर्ड शाॅ,डिकेन्स आदि उनके पसंदीदा लेखक थे।भगतसिंह ने कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र प्रताप में काम किया था।कानपुर में ही इनकी मुलाकात चन्द्रशेखर आजाद,बटुकेश्वर दत्त,शिव वर्मा,जयदेव कपूर,कुन्दनलाल आदि क्रांतिकारियों से हुई।भगतसिंह और सुखदेव रूसी अराजकतावादी बाकुनिन से प्रभावित थे।भगतसिंह को अराजकता से समाजवाद की ओर लाने का श्रेय कामरेड सोहन सिंह जोश और लाला छबील दास को है।

क्रांतिकारियों के बौद्धिक नेता के रूप में भगतसिंह स्थापित हो चुके थे।असेम्बली बम काण्ड़ में सुखदेव ने इसी कारण से भगतसिंह को बम फोडने जाने के लिए केन्द्रीय समिति का निर्णय बदलवाने पर जोर दिया था।सन 1926 में भगतसिंह,भगवती चरण वोहरा और यशपाल ने लाहौर नैजवान भारत सभा की स्थापना की।भगतसिंह इसके प्रथम महामंत्री व भगवती चरण वोहरा प्रथम प्रचार मंत्री चुने गये।सुखदेव,धन्वंतरी,यशपाल और एहसान इलाही प्रमुख सक्रिय सदस्य नियुक्त किये गये।सभा का उद्देश्य क्रान्तिकारी आन्दोलन के तन्त्र को पुनःजीवित करना था और कार्य था-क्रान्ति के विचारों और उद्देश्यों का प्रचार करने के लिए आम सभायें करना,बयान देना,इश्तहार बांटना आदि।शोषण,गरीबी,विषमता जैसी विश्वव्यापी समस्याओं से निपटने के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता चाहिए।क्रान्तिकारियों का विचार था कि आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना पूर्ण स्वतंत्रता सम्भव नही है।स्वतंत्रता के बाद के शासन की रूपरेखा पर भी क्रांतिकारी विचार-विमर्श करते थे।हुतात्माओं के चित्रों की प्रदर्शनी लगाकर,उनके बारे में जानकारी दी जाती थी।जनता के सामने क्रातिकारी अपना इतिहास बताते थे।सशस्त्र क्रांति के गुप्त संगठन के लिए कार्यक्षेत्र तैयार करना और लोगों में साम्राज्यवाद के विरोध में राष्टीयता की प्रबल भावना को जागृत करना-यही उद्देश्य था भगतसिेह का।

भगतसिंह श्रेष्ठ प्रचारक थे।कुशल वक्ता तो वे थे ही,लेखनी और विचारों में पैनापन और पकड़ भी थी।हिन्दी,उर्दू,अंग्रेजी व पंजाबी भाषाओं पर उनका अधिकार था।अमृतसर से निकलने वाले उर्दू अखबारों में वे नियमित लेख लिखते थे।छद्म नामों से उन्होंने कीर्ति में लिखा।हिन्दी प्रताप,प्रभा,महारथी,चांद में भगतसिंह ने लिखा।क्रान्तिकारियों के विषय में अध्ययन करने से मन अशान्त हो जाता है।कैसे थे ये मतवाले?आजाद भारत में लोग जीवन जीने के लिए रोज मर रहें हैं और ये मतवाले आने वाली नस्लों को जीवित करने के उद्देश्य से हॅंसते-हॅंसते मर गये।फिर भी आज आजाद भारत में बेकारी,बेरोजगारी,शोषण,विषमता,भुखमरी,भ्रष्टाचार,कुशासन,अपने चरम पर है।क्या क्रान्तिकारियों का आजाद भारत बन गया है ?देश की आजादी की लड़ाई लडते हुए भगतसिंह अपने साथियों राजगुरू व सुखदेव के साथ 23मार्च,1931 को फांसी पर चढ़ गये।रह गये शेष भगतसिंह और उनके साथियों के सपने,आदर्श,उनके सोच को परिलक्षित करते लेख व देश-समाज के लिए मर मिटने की प्रेरणा।

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