अमृतसर के रहने वाले मदनलाल धींगरा वह गरीब़ और बद्किस्मत क्रांतिकारी थे,जिनके पिता ने उन्हें अपना पुत्र मानने से मना कर दिया था। बी0ए0 पास करने के पश्चात धींगरा इंग्लैण्ड़ गये थे। मदनलाल धींगरा एक असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी थे। आपका फूलों व प्रकृति से बहुत लगाव था। अक्सर धींगरा एक प्रेमी की माफिक बाग के किसी सुन्दर कोने में बैठे रहते और फूलों की सुन्दरता को आत्मसात करते रहते। इंग्लैंण्ड़ के खुफिया विभाग के एक प्रसिद्ध जासूस श्री ई0टी0वुडहाॅल ने यूनियन जैक नामक साप्ताहिक में 25मार्च,1925 के अंक में लिखा- “Dhingra was an extraordinary man.Dhingra”s passion for flowers was remarkable.There is a man to keep an eye on.He will do something desperate someday.”
भारत में फैल रहे जंग ए आजादी की लपटें चारों तरफ फैल रही थीं। वीर सावरकर, श्याम जी कृष्ण वर्मा आदि ने इंग्लैण्ड़ में इण्ड़िया हाउस की स्थापना की। मदनलाल धींगरा भी इससे जुड़ गये। 1908 में अलीपुर षड़यंत्र का फैसला आया। श्री कन्हाई, श्री सतेन्द्रनाथ को फांसी चढ़ा दिया गया तथा धीरेन्द्र और उल्लासकर दत्त को भी फांसी की सजा सुना दी गई। इंग्लैण्ड़ में भी इण्ड़िया हाउस से जुड़े युवाओं का मन उत्तेजना से भर गया।सावरकर ने धींगरा से वार्ता के दौरान हाथ जमीन पर रखने को कहा और धींगरा के द्वारा हाथ जमीन पर रखते ही सुआ हाथ में भोंक दिया। धींगरा के मुंह से एक शब्द न निकला। सावरकर ने सुआ निकाल लिया। गुप्त वार्ता के पश्चात् इस परीक्षा में उत्तीर्ण धींगरा को सावरकर ने गले लगा लिया तथा दोनों के आंखों से प्रेम के आंसू बहने लगे।
फिर नया सबेरा हुआ। मदनलाल धींगरा इण्ड़िया हाउस छोड़ चुके थे। धींगरा ने सर कर्जन वायली Secretary of State fr India के id-d-camp थे, द्वारा चलायी जा रही हिन्दुस्तानी छात्रों की सभा में शामिल हो गये। इण्ड़िया हाउस में युवाओं ने धींगरा को देशद्रोही, गद्दार कहा परन्तु सावरकर ने कहा कि, ‘‘आखिर अभी तक तो उन्होंने हमारी सभा को चलाने के लिए सर तोड़ प्रयत्न किया था और उनकी मेहनत के फलस्वरूप ही हमारी सभा चल रही है, इसलिए हमें उनका धन्यवाद देना चाहिए। 1जुलाई,1909 को जहाँगीर हाल, इम्पीरियल इंस्टीच्यूट में आयोजित बैठक में सर कर्जन वायली आये। सर कर्जन वायली बैठ की लोगों से बातें करने लगे तभी मदनलाल धींगरा ने पिस्तौल निकाल कर दो गोलिया उनके सीने में उतार दीं तथा वायली को मौत के घाट उतार दिया। धींगरा के पिता ने पंजाब से तार भेजा,”ऐसे बागी, विद्रोही और हत्यारे आदमी को मैं अपना पुत्र मानने से इंकार करता हूँ।” भारत में कई बैठकों में इस घटना की निन्दा भारतवासियों ने ही की। सिर्फ एक व्यक्ति थे-वीर सावरकर, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से मदन लाल धींगरा का पक्ष लिया ।एक बैठक में मदन लाल धींगरा के खिलाफ प्रस्ताव पास न होने देने के लिए वीर सावरकर ने कहा कि अभी तक मदन लाल धींगरा को अदालत ने दोषी करार नहीं दिया है। परन्तु सभा के अध्यक्ष विपिन चन्द्र पाल ने निन्दा प्रस्ताव पर यह कहा कि यह सर्वसम्मति से पास समझा जाये तो सावरकर ने खड़े होकर विरोध किया। एक अंग्रेज ने सावरकर के मुंह पर घूंसा मारा, इस पर एक नौजवान ने उस अंग्रेज के सर पर लाठी मार दी और हंगामें के कारण बैठक समाप्त हो गई, प्रस्ताव धरा रह गया।
मदन लाल धींगरा एक निर्भीक वीर थे। उनका अदालत में दिया बयान 12अगस्त,1909 के डेली न्यूज में छपा – “मैं मानता हूँ कि मैने उस दिन एक अंग्रेज का खून किया और कहता हूँ कि यह उन निर्दयता भरी सजा़ओं का मामूली सा बदला है जो कि हिन्दुस्तानी देशभक्त नौजवानों को फांसी और काले पानी की दी गई है। मैने इस काम में अपने जमीर के सिवा किसी और की सलाह नहीं ली। अपने फ़र्ज के सिवाय किसी से साजिश नहीं की।………मेरी ईश्वर के आगे यही प्रार्थना है कि मैं फिर इसी माँ की गोद में जन्म लू और जब तक वह स्वतन्त्र न हो जाये और मानव-समाज की पूर्ण सेवा और उन्नति योग्य न बन जाये, मैं यहीं जन्मता रहूँ और मरता रहूँ।-वन्देमातरम
श्रीमती एग्निस स्मेडले एक जगह मदन लाल धींगरा की फांसी के वक्त के विषय में लिखती हैं -He walked to the scffaold with his head high and shook ffo hands of those who ffoered to support him,saying that he was not afraid of death.As he stood on the scffaold he was asked if he had a last word to say.He answered Vande Matram…क्रंातिकारियों के बौद्धिक नेता सरदार भगत सिंह ने किरती में मार्च,1928 के अंक में मदन लाल धींगरा की शहादत पर लेख लिखा था,जिसमें लिखाः-माँ से इतना प्यार! फाँसी के तख्ते पर खड़े हुए से पूछा जाता है-कुछ कहना चाहते हो? तो उत्तर मिलता है,-वन्देमातरम। माँ,भारत माँ तुम्हे नमस्कार। वह वीर फांसी पर लटक गया और उनकी लाश भी भीतर ही दफना दी गयी और हिन्दुस्तानियों को उनकी दाह क्रिया आदि करने की इजाजत भी नहीं दी गई। धन्य था वह वीर। घन्य है उसकी याद।मुर्दा देश के अमूल्य हीरे को बारम्बार नमस्कार।
आज ही के दिन 17अगस्त,1909 को प्रातः 6बजे भारत के क्रंातिवीर मदन लाल धींगरा को पेन्टनवली की जेल में फाँसी दी गई। शहादत के 67वर्ष के उपरान्त दिसम्बर 1976 में मदन लाल धींगरा की भस्मी भारत में लायी गई और यहाँ पर उस पर श्रद्धा सुमन अर्पित किये गये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें