०८. खिलजी सुल्तान (१२९०-१३१६)
जब जलालुद्दीन खिलजी ने (१२९०-१२९६) रणथम्भौर पर चढ़ाई की तो रास्ते में झौन नामक स्थान पर उसने वहाँ के हिन्दू मंदिरों को नष्ट कर दिया। उनकी खंडित मूर्तियों को जामा मस्जिद, दिल्ली, की सीढ़ियों पर डालने के लिए भेज दिया गया जिससे वह मुसलमानों द्वारा सदैव पददलित होती रहें।(४४) किन्तु इसी जलालुद्दीन ने, मलिक छज्जू मुस्लिम विद्रोही को कत्ल करने से, यह कहकर इंकार कर दिया कि 'वह एक मुसलमान का वध करने से अपनी सिहांसन छोड़ना बेहतर समझता है।'(४५) दया और भातृभाव केवल मुसलमानों के लिये है। काफिर के लिये नहीं।(४६) अलाउद्दीन खिलजी (१२९६-१३१६) जो जलालुद्दीन का भतीजा और दामाद भी था, और जिसका पालन पोण भी जलालुद्दीन ने पुत्रवत किया था, धोखे से, वृद्ध सुल्तान का वध कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा। हिन्दुओं से लूटे हुए धन को दोनों हाथों से लुटा कर उसने जलालुद्दीन के विश्वस्त सरदारों को खरीद लिया अथवा कत्ल कर, दिया। जब उसकी गद्दी सुरक्षित हो गई तो उसका काफिरों (हिन्दुओं) के दमन और मूर्तियों को खंडित करने का धार्मिक उन्माद जोर मारने लगा। १२९७ ई. में उसने अपने भ्राता मलिक मुइजुद्दीन और राज्य के मुखय आधार नसरत खाँ को, जो एक उदार और बुद्धिमान योद्धा था, गुजरात में कैम्बे (खम्भात) पर, जो आबादी और संपत्ति में भारत का विखयात नगर था, आक्रमण के लिये भेजा। चौदह हजार (१४,०००) घुड़सवार और बीस हजार (२०,०००) पैदल सैनिक उनके साथ थे।(४७) मंजिल पर मंजिल पार करते उन्होंने खम्भात पहुँच कर प्रातःकाल ही उसे घेर लिया, जब वहाँ के काफिर निवासी सोये हुए थे। उनीदे नागरिकों की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ। भगदड़ में माताओं की गोद से बच्चे गिर पड़े। मुसलमान सैनिकों ने इस्लाम की खातिर उस अपवित्र भूमि में क्रूरतापूर्वक चारों ओर मारना काटना प्रारंभ कर दिया। रक्त की नदियाँ बह गई। उन्होंने इतना सोना और चाँदी लूटा जो कल्पना के बाहर है और अनगिनत हीरे, जवाहरात, सच्चे मोती, लाल औरपन्ने इत्यादि। अनेक प्रकार के छपे, रंगीन, जरीदार रेशमी और सूती कपड़े।(४८) 'उन्होंने बीस हजार (२०,०००) सुंदर युवतियों को और अनगिनत अल्पायु लड़के-लड़कियों को पकड़ लिया। संक्षेप में कहें तो उन्होंने उस प्रदेश में भीषण तबाही मचा दी। वहाँ के निवासियों का वध कर दिया उनके बच्चों को पकड़ ले गये। मंदिर वीरान हो गये। सहस्त्रों मूर्तियाँ तोड़ डाली गयीं। इनमें सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण सोमनाथ की मूर्ति थी। उसके टुकड़े दिल्ली लाकर जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर बिछा दिये गये जिससे प्रजा इस शानदार विजय के परिणामों को देखे और याद करे। (४९) रणथम्भौर पर आक्रमण के लिये अलाउद्दीन ने स्वयं प्रस्थान किया। जुलाई १३०१ ई. में विजय प्राप्त हुई। किले के अंदर तमाम स्त्रियाँ जौहर कर चिता में प्रवेश कर गईं। उसके बाद पुरुष तलवार लेकर मुस्लिम सेना पर टूट पड़े और कत्ल कर दिये गये। सभी देवी देवताओं के मंदिर ध्वस्त कर दिये गये। (४९क) अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली में कुतुबमीनार से भी बड़ी मीनार बनाने का इरादा किया तो पत्थरों के लिए हिन्दुओं के मंदिरों को तुड़वा दिया गया। उस स्थान पर उन मंदिरों के पत्थरों से ही'कव्बतुल इस्लाम मस्जिद' का निर्माण भी किया जो आज भी शासन द्वारा सुरक्षित राष्ट्रीय स्मारकों के रूप में मौजूद है। उज्जैन में भी सभी मंदिर और मूर्तियों का यही हाल हुआ। मालवा की विजय पर हर्ष प्रकट करते हुए खुसरो लिखता है कि 'वहाँ की भूमि हिन्दुओं के खून से तर हो गई।' (५०) चित्तौड़ के आक्रमण में अमीर खुसरो के अनुसार इस सुल्तान ने ३,००० (तीन हजार) हिन्दुओं को कत्ल करवाया। (५१) 'जो वयस्क पुरुष इस्लाम स्वीकार करने से इंकार करते थे, उनको कत्ल कर देना और द्गोष सबको, स्त्रियों और बच्चों समेत, गुलाम बना लेना साधारण नियम था। अलाउद्दीन खिलजी के ५०,००० (पचास हजार) गुलाम थे जिनमें अधिकांद्गा बच्चे थे। फीरोज तुगलक के एक लाख अस्सी हजार (१,८०,०००) गुलाम थे।' (५२) अलाउद्दीन खिलजी के समय, जियाउद्दीन बर्नी की दिल्ली का गुलाम मंडली के विषय में की गई टिप्पणी है कि आये दिन मंडी में नये-नये गुलामों की टोलियाँ बिकने आती थीं। (५३) दिल्ली अकेली ऐसी मंडी नहीं थी। भारत और विदेशों में ऐसी गुलाम मंडियों की भरमार थी, जहाँ गुलाम स्त्री, पुरुष और बच्चे भेड़ बकरियों की भाँति बेचे और खरीदे जाते थे। अलाउद्दीन खिलजी ही क्यों, अकबर को छोड़कर, सम्पूर्ण मुस्लिम काल में, जो हिन्दू कैदी पकड़ लिये जाते थे, उनमें से जो मुसलमान बनने से इन्कार करते थे, उन्हें बध कर दिया जाता था अथवा गुलाम बनाकर निम्न कोटि के कामों (पाखाना साफ करना इत्यादि) पर लगा दिया जाता था। शेष गुलामों को सेना ओर शासकों के बीच बाँट दिया जाता था। फालतू गुलाम मंडियों में बेंच दिये जाते थे। जिन लोगों ने अमेरिका में गुलामों की दुर्दशा पर लिखा, विश्व विखयात उपन्यास 'टाम काका की कुटिया' पढ़ा होगा, उन्हें स्वप्न में भी यह विचार नहीं आया होगा कि भारत में उनके पूर्वजों के साथ भी वही पशुवत व्यवहार हुआ है। गुलामों की मंडियों में बिकने वाले परिवारी जनों के एक-दूसरे से बिछड़ने के सहस्त्रों हदय विदारक दृश्य प्रतिदिन ही देखने को मिलते रहे होंगे। पिता कहीं जा रहा है, तो पुत्र कहीं; माता कहीं और युवा पुत्री कहीं किसी के विषय भोग की जीवित लाश बनकर, जो मन भर जाने पर, उसे कहीं और बेच देगा। मुस्लिमों का हिन्दू राजा से विश्वासघात
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