सोमवार, 25 अप्रैल 2011

हिंदुस्तान की महान विरासत का उत्सव - महाराजा कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक का ५००वां वर्ष


हिंदुस्तान की महान विरासत का उत्सव - महाराजा कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक का ५००वां वर्ष

विजयनगर साम्राज्य एवं महाराजा कृष्णदेव राय के 500वें राज्याभिषेक का यह शुभ वर्ष है। कर्नाटक में इसे समारोह के रूप में मनाया जा रहा है। उनके बारे में सोलहवीं शताब्दी में भारत की यात्रा पर आए एक पुर्तगाली यात्री डॉमिंगोज पेस ने लिखा था कि वह सर्वश्रेष्ठ राजा और महान शासक के साथ ही एक सच्चे न्याय-पुरुष भी थे। वह 1510 ई. में विजयनगर की गद्दी पर बैठे थे और चालीस वर्ष की उम्र में किसी अज्ञात बीमारी से उनकी मृत्यु हो गई थी।

उनके गद्दी पर बैठने के लगभग आधी सहस्राब्दि के बाद उनके राज्याभिषेक का उत्सव मनाया जा रहा है। वे महान योद्धा थे, लेकिन एक योग्य प्रशासक, सहिष्णु राजनीतिज्ञ और कलाओं के महान संरक्षक भी थे। 20 साल की अवधि में कृष्णदेव राय ने विजयनगर को एक विशालकाय साम्राज्य में तब्दील कर दिया था। उनके राज्य की राजधानी और अब विश्व की विरासतों में से एक हम्पी में कृष्णदेव राय की महानता घुली-मिली है। वस्तुत: लगातार हम्पी की तुलना अब रोम से की जाती है।

उनके समय में दक्षिण भारत की कला और स्थापत्य अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया था। वास्तव में यहां के मिले-जुले स्थापत्य में हिंदू और इस्लामिक, दोनों ही कलाओं के तत्व मिलते हैं। हम्पी के लोटस महल में इस कला के दर्शन किए जा सकते हैं। भले ही कर्नाटक ने उनके राज्याभिषेक के ५००वें वर्ष को समारोह के रुप में मनाने की पहल की हो, लेकिन उनकी कभी न खत्म होने वाली महानता के दर्शन आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में आज भी किए जा सकते हैं।

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