23मार्च का दिन एक विशेष व प्रेरक दिवस के रूप में सदैव विद्यमान रहेगा। 23मार्च का दिन भारत की ब्रितानिया हुकूमत की गुलामी से मुक्ति की जंग के बलिदानी योद्धाओं की प्राणोत्सर्ग की अमिट व अमर गाथा की यादगार-प्रेरक तारीख है। जंग-ए-आजादी से लेकर आजाद भारत में भी अंतिम सांस तक सरकार के कुशासन व भ्रष्टाचार के खिलाफ अनवरत् संघर्ष करने वाले धुर समाजवादी चिंतक डा0राम मनोहर लोहिया का जन्म दिन भी 23मार्च ही है। 23मार्च,1931को ही ब्रितानिया हुकूमत के जुल्मों के खिलाफ आम जनता की आवाज बनकर उभर चुके क्रंतिकारियों के बौद्धिक नेता सरदार भगत सिंह,सुखदेव व राजगुरू को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। इस घटना से भी 16वर्ष पूर्व क्रन्तिकारी करतार सिंह सराभा,रासबिहारी बोस,शचीन्द्र नाथ सान्याल,विष्णु गणेश पिंगले आदि गदर पार्टी के वीरों ने सम्पूर्ण भारत में एक साथ 1857 की तरह गदर करने की योजना बनाई। तारीख तय हुई 21फरवरी,1915। यह बहुत बडा़ काम था।भारतीय फौजों को अपने पक्ष में करने, हथियार, गोला-बारूद, काफी धन सभी प्रबन्धों को करने में क्रांतिकारी योजना पूर्वक लग गये।देश में सर्वत्र संगठन किया गया।गदर पार्टी के प्रचारकों ने पंजाब के लुधियाना जिले के हलवासिया गाँव के रहने वाले रहमत अली से जो कि फौज में हवलदार पद पर मलय-स्टेट-गाइड में तैनात थे, से सम्पर्क किया। रहमत अली की टुकडी मलय अर्थात सिंगापुर में तैनात थी।रहमत अली एक देशभक्त योद्धा थे।वे भी अपनी सरजमीं की आजादी की जंग को लडना व जीतना चाहते थे।अवसर की प्रतिक्षा में वे थे ही। रहमत अली ने अल्प समय में ही तमाम साथी तैयार कर लिए।तयशुदा तारीख 21फरवरी,1915 को अपनी टुकडी के साथ रहमत अली ने बगावत कर दी। साथ ही पांचवीं नेटिव इन्फैण्टरी ने भी बगावत कर दी। दूसरी टुकड़ी से बागियों पर गोली चलाने को कहा गया, उन्होंने भी साफ मना कर दिया। परिणाम स्वरूप रहमत अली और उसके साथियों पर आज्ञा उल्लंघन के साथ दूसरे सैनिकों को भड़काने का आरोप लगा। रहमत अली, गनी, सूबेदार दूदू खां , चिश्ती खां और हाकिम अली का एक साथ कोर्ट मार्शल किया गया।
23 मार्च ,1915 को सिंगापुर छावनी के सभी फौजियों को परेड़ मैदान में एकत्र किया गया। फौजियों के मन में दहशत पैदा करने के उद्देश्य से पाँचों अभियुक्तों को एक दीवार के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया गया।हाथ पीठ की तरफ बंधे तथा एक बल्ली में पाँचों को एक साथ बांधा गया था। पांचों देशभक्तों ने आवाज लगाई थी, -हमारी पीठ पर नहीं छातियों पर गोली मारों। निशानेबाजों की गोलियों से पांचों भारत माँ के लाडले वतन से बहुत दूर सिंगापुर में 23मार्च,1915 को कुर्बान हो गये।23मार्च,1931 को ही राजगुरू, सुखदेव के साथ भगतसिंह भी क्रंातिपथ को अपने प्राणोत्सर्ग से आलोकित कर मुक्ति-पथ के राही हो लिए। भगत सिंह ने लिखा, – नौजवानों को क्रांति का संदेश देश के कोने-कोने में पहुँचाना है, फैक्टरी-कारखानों के क्षेत्रों में, गन्दी बस्तियों और गावों की जर्जर झोपडि़यों में रहने वाले करोड़ों लोगों में क्रांति की अलख जगानी है जिससे आजादी आयेगी और तब एक मनुष्य के द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा। सुखदेव ने महात्मा गाँधी के नाम एक पत्र में लिखा था, -क्रांतिकारियों का ध्येय इस देश में सोशलिस्ट प्रजातंत्र प्रणाली स्थापित करना है। इस ध्येय में संशोधन की जरा भी गुंजाइश नहीं है।वह दिन दूर नहीं है जबकि क्रंातिकारियों के नेतृत्व में और उनके झण्ड़े के नीचे जनसमुदाय उनके समाजवादी प्रजातंत्र के उच्च ध्येय की ओर बढ़ता हुआ दिखायी पडेगा।आम जन के प्रति ह्दय में असीम दर्द समेटे और उस दर्द को खत्म करने के लिए दधीचि की तरह अपनी बलिदान देने वाले थे ये वीर बलिदानी।
और 23मार्च,1910 को जन्में व अंतिम सांस तक क्रांति की राह पर चलने वाले डा0राम मनोहर लोहिया ने क्रांति के उच्च ध्येय को अपने विचारों से प्रचारित करने का अद्भुत कार्य कर दिखाया।आजादी के पश्चात् डा0लोहिया ने इस भ्रम को तोडने के लिए कि सामाजिक न्याय, समता व आर्थिक समानता सिर्फ कांग्रेस ही दे सकती है, समाजवादी पार्टी का स्वतंत्र संगठन बनाया था और घोषणा भी किया था कि – कांग्रेस पार्टी ही एक ऐसी पार्टी है जो भारतीय जनता की अस्मिता और आकांक्षाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। डा0लोहिया की सोच, उनके संघर्ष भारत की आम जनता के हित में रहे हैं। समाजवादी विचारक मधु लिमये के अनुसार-कार्यक्रम और विचार की दृष्टि से भूमिगत संगठन में उनका स्थान असाधारण था।भूमिगत रेडियों की कल्पना को उषा मेहता और उनके साथियों की मदद से उन्होंने साकार किया।भूमिगत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा नित्य नये कार्यक्रम जारी करने का काम मुख्य रूप से वे ही करते थे। सुचेता कृपलानी जैसी गाॅंधीवादी व अच्युत पटवर्द्धन जैसे समाजवादी-इनके बीच की कड़ी लोहिया ही थे।अंग्रेजी साम्राज्यवाद के मर्म स्थानों- पुलिस, थाना, रेल, तार, स्टेशन, डाकखाना आदि पर हमला कर विदेशी हुकूमत से जल्दी और थोड़े में उभर कर खत्म होने वाली क्रांति के जरिए उखाड़ फेंकने की उन्ही की योजना थी। डा0 लोहिया के मनोमस्तिष्क में भगत सिंह के प्रति असीम श्रद्धा थी।समाजवादी नेता बदरी विशाल पित्ती के अनुसार-एक बार 23मार्च को लोहिया जी के जन्म दिन के अवसर पर होली भी आई तो उस दिन लोहिया जी ने कहा कि यह दिन अच्छा नहीं है, मेरे लिए यह खुशी का दिन नहीं है और तुम लोगों के लिए भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि 23मार्च को ही भगत सिंह को फांसी हुई थी।
23मार्च, 1915 के अमर बलिदानी रहमत अली, गनी, सूबेदार दूदू खां , चिश्ती खां एवं 23मार्च, 1931 के बलिदानी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू तथा 23मार्च, 1910 को भारत भूमि पर जन्म लेने वाले डा0 राम मनोहर लोहिया सहित माँ भारती के सभी अमर सपूतों कों श्रद्धा सुमन अर्पण तथा कोटिशः वन्दन-अभिनन्दन।
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