8दिसम्बर,1879को काया ग्राम,जनपद नदिया-कुष्टिया,पश्चिम बंगााल में एक प्रतिभाशाली विद्वान श्री उमेश चन्द्र मुखर्जी के एवं उच्च कोटि की कवियत्री मांॅ शरत शशि देवी के पुत्र रत्न रूप में यतीन्द्र नाथ मुखर्जी का जन्म हुआ।मात्र 5वर्ष की उम्र में पिता का साया यतीन्द्र के सिर से उठ गया।1899 में फैले प्लेग की बीमारी के दौरान मरीजों की सेवा करते हुए यतीन्द्र की समाज सेवी माॅं शरत शशि देवी की रोग ग्रस्त हो जाने के कारण मृत्यु हो गयी।माॅं की मृत्यु के पश्चात् यतीन्द्र को अपनी बडी बहन श्रीमती विनोद बाला का ममत्व भरा संरक्षण मिला।बहन की देख-रेख में यतीन्द्र ने इण्टर-मीडियट तक की शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् शार्ट हैण्ड और टाइपिंग सीखी।यतीन्द्र ने जीविकोपार्जन हेतु बंगाल सचिवालय में स्टेनोग्राफर के पद पर नौकरी की।सचिवालय के गुलामी भरे वातावरण में यतीन्द्र के ह्दय में कोने में दबा हुआ क्रंातिकारी जाग गया।यतीन्द्र का एक बार रेल यात्रा के दौरान फौज के अंग्रेज सिपाहियों से झगड़ा हो गया।उन चार फौजियों को यतीन्द्र ने अकेले ही पीट डाला।उन्होंने यतीन्द्र के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी तथा अभियोग भी चला,परन्तु यह मुकद्मा ही वापस लेना क्योंकि अदालत को यह विश्वास दिलाना उनके लिए असंभव हो गया कि एक व्यक्ति ने अकेले ही चार फौजियों को पीटा।लेकिन इस घटना के कारण यतीन्द्र नौकरी से निकाल दिये गये।माॅं समान बडी बहन विनोद बाला ने गृहस्थी का बोझ डालते हुए यतीन्द्र का विवाह अप्रैल,1900 में इन्दुबाला नामक युवती से करा दिया।यतीन्द्र को तीन संताने क्रमशःतेजेन,वीरेन और आशालता की प्राप्ति हुई।
यतीन्द्र गृहस्थ होकर भी गृहस्थ जीवन में लिप्त न हो पाये।हरिद्वार के प्रसिद्ध सन्त भोलानाथ गिरि के परम् शिष्य यतीन्द्र ने अपने विद्वान व देशभक्त गुरू भोलानाथ गिरि की प्रेरणा से गीता का पाठ कर गीता-प्रेमी बन गये।आत्मा की अमरता का सिद्धान्त गीता से आत्मसात् करके यतीन्द्र अब देश के प्रति कत्र्तव्य पथ के पथिक बन गये।पारिवारिक जीविका व क्रांतिकारी संगठन चलाने हेतु यतीन्द्र ठेकेदारी करने लगे।ठेकेदारी के काम में यतीप्द्र को भरपूर लाभ होने लगा।यतीन्द्र ने अपने साथ उत्साही एवं आस्थावान नवयुवकों को जोड़ना प्रारम्भ कर दिया।प्रत्येक नवयुवक का ख्याल रखते थे-यतीन्द्र एवं यदि किसी को आर्थिक मदद की जरूरत पडती तो आर्थिक मदद भी करते थे।उम्र एवं अनुभव में बडे होने के कारण ये सभी नवयुवक यतीन्द्र को जतीन दा कहते थे।चारूचन्द्र बोस,वीरेन्द्रनाथ दत्त,चित्तप्रिय रे ,भोलानाथ चटर्जी,मनोरंजन सेन गुप्त,वीरेन्द्र नाथ दास गुप्त,ज्योतिष चन्द्र पाल आदि नवयुवक अपने जतीन दा के इशारे पर किसी की भी जान ले सकते थे तथा उनके लिए कभी भी जन दे भी सकते थे।यतीन्द्र कोमलता,मानवता,देशप्रेम और क्रांति की प्रतिमूर्ति थे।सुन्दर और बलशाली यतीन्द्र ने 26वर्ष की उम्र में एक शाही बाघ से लड कर और उसको मारकर बाघा की उपाधि प्राप्त की थी।तभी से यतीन्द्र बाघा जतीन के नाम से प्रसिद्ध हुए थे।जतीन के व्यक्तित्व से रवीन्द्र नाथ टैगोर,योगी श्री अरविन्द घोष,स्वामी विवेकानन्द,श्राी जगदीश चन्द्र बसु,बहन निवेदिता आदि महान विभूतियां जतीन से बहुत प्रभावित थी।जतीन के शौर्य,देशभक्ति से अंग्रेज भयाक्रांत हो गये थे।
बाघा जतीन ने अपने साथियों के साथ मिल कर बंगाल में दर्जनों राजनैतिक डकैतियां डाली।अंग्रेजों के संस्थानों में दिन-दहाडे़ डकैतियां डाली गईं तथा अनेकों कत्ल किये गये।अंग्रेज बाघा जतीन से बहुत भयभीत होकर शहर बहुत कम निकलते थे।क्रांतिकारी मौत बनकर अंग्रेजों के मनो-मस्तिष्क में छा गये थे।बाघा जतीन को पुलिस ने हावडा षड़यंत्र केस में सन्1910-11 में दो बार हिरासत में लिए गये,किन्तु कुछ माह कारागार में रहने के पश्चात् सबूतों के अभाव में यतीन्द्र रिहा हो गये।बलिया घाट तथा गार्डन रीच की डकैतियां भी बाघा जतीन के द्वारा की गई थी।जेल से रिहा होने के बाद अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य बने बाघा जतीन ने युगान्तर का भी कार्य संभाला।बाघा जतीन ने एक लेख में लिखाः-पॅंूजीवाद समाप्त कर श्रेणी हीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है।देशी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्म-निर्णय द्वारा जीवन यापन का अवसर देना हमारी मांग है।अदालत से बरी बाघा जतीन पर पुलिस की पैनी नजर थी।2फरवरी,1915 को एक मकान में जतीन व साथी बैठ कर कोई योजना बना रहे थे,तभी वहां सी0आई0डी0 पुलिस इंस्पेक्टर निरोध हलधर आ धमका।मजबूरन हलधर को मौत के घाट उतार कर इन क्रांतिकारियों को मकान छोड़कर फरार होना पडा।
सन्1914 में विश्व युद्ध छिडने पर गदर पार्टी ने भारत में आजादी का जंग छेडने की योजना बनाई थी।इस योजना के सूत्रधार रासबिहारी बोस,करतार सिंह सराभा,शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रयास विफल रहा था।लेकिन इसके बावजूद भारत में बाघा जतीन अपने साथियों के साथ क्रांति की अलख जगाने में जुटे रहे।सितम्बर,1915 में मेवरिक नामक जर्मन जहाज को कैप्टीपोदा,बालासोर-उड़ीसा युद्ध की सामग्री लेकर पहुॅंचना था।इस जहाज से हथियार उतारने की जिम्मेदारी बाघा जतीन की थी।अपने साथियों के साथ बाघा जतीन मार्च,1915 में ही बालासोर आ गये।जतीन साधु तथा मनोरंजन और चित्तप्रिय उनके शिष्य बनकर मालदीव मौजा में रहने लगे।आश्रम से कुछ ही दूरी पर तालडीह गाॅंव में नीरेन्द्रनाथ दास गुप्त और ज्योतिष चन्द्र पाल खेती-बाड़ी करने वाले किसान बनकर रहने लगे।यूनिवर्सल इम्पोरियम नामक साईकिल व घड़ी की दुकान बालासोर में खोलकर अन्य साथी गण वहां जम गये।बालासोर एक एकांत व शान्त क्षेत्र था।जतीन व साथियों के आ जाने के कारण स्थानीय लोगों में उत्सुकता बढ़ी।इन लोगों के पास नये-नये चेहरे बालासोर आते थे।स्थानीय लोगों ने बालासोर पुलिस को सूचना दे दी।बालासोर की पुलिस को भी इन बंगाली नवयुवकों पर शक हो गया।बालासोर पुलिस ने इस बात की खबर कलकत्ता पुलिस को कर दी कि बालासोर में कुछ अपरिचित बंगााली युवक आकर रह रहे हैं।कलकत्ता की पुलिस निरोध हलधर की हत्या के बाद से जतीन व उनके साथियों की तलाश में थी,एक सूत्र उसके हाथ लग गया।
कलकत्ता के कई उच्च पुलिस अधिकारियों का एक दल बालासोर आ धमका,स्थानीय पुलिस को साथ लेकर इन लोगों 5सितम्बर,1915 को यूनिवर्सल इम्पोरियम की तलाशी लेकर दो लोगों को हिरासत में ले लिया।वहां एक कागज मिला जिस पर कैप्टीपौदा गाॅंव का नाम लिखा था।6सितम्बर की शाम को ही पुलिस बल हाथियों पर सवार होकर कैप्टीपौदा गाॅंव आ पहुॅंचा।गाॅंव में हलचल मच गई।एक भक्त ने जतीन को पुलिस आगमन की सूचना दी।रातों-रात जतीन ने आश्रम खाली कर दिया और जतीन,मनोरंजन और चित्तप्रिय मालदीव गाॅंव आ गये।यहाॅं पर भी सारा सामान नष्ट करके पांचों साथी बालासोर रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़े।8सितम्बर,1915 को जब पुलिस ने मालदीव वाले घर की भी तलाशी ली और कुछ न मिला तब पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि साधु कोई और नहीं यतीन्द्र नाथ मुखर्जी ही हैं और चेले उसके क्रांतिकारी साथी।पुलिस ने सारे इलाके की नाके बन्दी कर ली।पुलिस ने खबर फैला दी कि कुछ बंगाली डाकू बालासोर क्षेत्र में घुस आयें हैं,जो कोई उनको पकड़वाने में मदद करेगा उसको उचित ईनाम दिया जायेगा।
बाघा जतीन और उसने साथियों के पीछे बालासोर रेलवे स्टेशन जाते समय कुछ ग्रामीण लग गये।ईनाम के लालच में इन ग्रामीणों ने इन देशभक्त क्रांतिकारियों को पकड़ना चाहा जिससे विवश होकर इन लोगों को गोली चलानी पड़ी फलतःएक ग्रामीण मौके पर ही मारा गया।कुछ ग्रामीणों ने भागकर बालासोर पुलिस को सूचना दे दी,तैयार बैठी पुलिस ग्रामीणों के साथ मौके पर आ गई।बुरी तरह से थके हुए पांचों क्रांतिकारी धान के एक खेत में विश्राम कर रहे थे तभी बालासोर के जिला मजिस्टेट किल्वी ने पुलिस बल के साथ ग्रामीणों की मुखबिरी व निशानदेही के आधार पर उसी धान के खेत को चारों तरफ से घेर कर गोलियां बरसाना चालू कर दिया।क्रांतिकारियों ने 20मिनट तक डटकर मुकाबला किया।चित्तप्रिय मौके पर शहीद हो गये।जतीन बुरी तीह घायल हो गये।ज्योतिष पाल भी घायल हो गये।क्रंातिकारियों के पास गोलियां खत्म हो जाने के कारण बाघा जतीन ने लड़ाई बन्द करने का संकेत दिया।पुलिस ने सभी को हिरासत में ले लिया।जतीन और पाल को कटक-उड़ीसा के अस्पताल,चित्तप्रिय के शव को मुर्दाघर तथा नीरेन्द्र व मनोरंजन को बालासोर की हवालात में पहुॅंचाया गया।दूसरे ही दिन 10सितम्बर,1915 को प्रातः5बजे यतीन्द्र नाथ मुखर्जी चिर निद्रा में लीन हो गये।कुछ समय बाद ज्योतिष चन्द्र पाल स्वस्थ हो गये।इन बचे तीनों लोगों पर बगावत का मुकदमा चलाकर,नीरेन्द्र और मनोरंजन को 22नवम्बर,1915 को प्रातः6बजे बालासोर की जेल में फांसी पर लटका दिया गया तथा ज्योतिष चन्द्र पाल को 14वर्ष की काले पानी की सजा सुनाकर अण्डमान भेज दिया गया।
इस प्रकार बाघा जतीन के साथ एक क्रांति युग का समापन हो गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें