रत्नागिरी,महाराष्ट में 23जुलाई,1857 को जन्में बाल गंगाधर तिलक की शिक्षा पूना में हुई।वकालत करने के बजाए तिलक ने गोपाल गणेश आगरकर के साथ सार्वजनिक जीवन में कार्य करने का निर्णय लिया।विष्णु शास्त्री चिपणूकर के पूना स्थित न्यू इंग्लिश स्कूल में 1जनवरी,1880 से पढ़ाना शुरू किया।विष्णु शास्त्री चिपणूकर ने एक वर्ष के पश्चात् मराठी भाषा में केसरी तथा अंग्रेजी भाषा में मराठा नामक साप्ताहिक निकाला।मराठा का सम्पादन कार्य तिलक को मिला तथा केसरी में कानून और धर्मशास्त्र पर लेख लिखने का अतिरिक्त दायित्व भी तिलक को सौंपा गया।सन्1884 में डेक्कन ऐजूकेशनल सोसायटी की स्थापना करके एक महाविद्यालय की स्थापना की गई।तिलक इस महाविद्यालय में संस्कृत व गणित पढ़ाने लगे।1890 में तिलक ने नौकरी छोड़कर केसरी व मराठा दोनों साप्ताहिक पत्रों को अपने अधिकार में ले लिया।
क्राॅफर्ड नामक एक अंग्रेज अधिकारी के भ्रष्टाचार के खिलाफ तिलक ने विरोध सभा की तथा बम्बई विधान सभा में भी प्रश्न उठाया।भ्रष्टाचार के शिकार लोगों की सहायता करने के कारण अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने वाले निर्भीक व्यक्ति के रूप में तिलक की प्रसिद्धि हुई।भारतीय संस्कृति को धार देने के लिए तिलक ने स्वाभिमान जागृत करने तथा समाज को एकता व भावना के सूत्र में पिरोने हेतु शिवाजी उत्सव प्रारम्भ किया।तिलक ने ही गणेशोत्सव सार्वजनिक रूप से मनाना प्रारम्भ कराया।इसी दौरान 1896 में महाराष्ट में प्लेग फैला।पूणे में डब्ल्यू0सी0रैण्ड ने प्लेग की रोकथाम के नाम पर अकल्पनीय जुर्म जनता पर ढ़ाये।इस पर तिलक का बयान आया-एक विदेशी व्यक्ति के हाथों किये जा रहे इतने जुल्मों को सहने वाला यह शहर जीवित मनुष्यों का शहर न होकर या तो अचेतन पत्थरों का या मुर्दों का शहर होना चाहिए।पहले से ही तैयार बैठे चाफेकर बन्धुओं ने 22जून,1897 को मध्य रात्रि में रैण्ड व आर्यस्ट दोनो को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया।अब तिलक भी ब्रितानिया हुकूमत की नजरों में चढ़ गये। ब्रितानिया हुकूमत ने तिलक पर शिवाजी उत्सव में भड़काउ कविता पढ़ने, भड़काउ लेख लिखने के जुर्म में मुकद्मा चलाया।अदालत ने 14सितम्बर,1897 को राजद्रोह के अपराध में तिलक को 18माह का कठोर कारावास दिया।पूरे देश में तिलक के समर्थन में जनता ने धन एकत्र किया।तिलक ने बंग-भंग के बाद विदेशी सामानों के बहिष्कार की घोषणा की।1909 के कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में स्वदेशी हुआ। अपनाने,विदेशी सामानों का त्याग,राष्टीय शिक्षा व स्वराज्य चार सूत्रीय कार्यक्रम बाल गंगाधर तिलक पे प्रस्तुत किये,जो बहुमत से स्वीकृत हुआ।
ब्रितानिया हुकूमत द्वारा क्रांतिकारियों पर अमानुषिक अत्याचार करने के खिलाफ आवाज उठाने पर तिलक को ब्रितानिया हुकूमत ने हिरासत में लेकर मांडले के किले में रखा।यहीं पर तिलक ने गीता रहस्य नामक ग्रन्थ लिखा।तिलक को 1914 में रिहा किया गया।उ0प्र0 की वर्तमान राजधानी लखनउ में तिलक ने हिन्दू-मुस्लिम एकता का समझौता करवाया था।1918 में सर वैलेण्टाइन शिरोल ने अनरेस्ट इन इण्डिया नामक अपनी पुस्तक में बाल गंगाधर तिलक को राजद्रोही कहा।कांग्रेस के 1919के अमृतसर अधिवेशन में मांटफोर्ड की रिपोर्ट को निराशजनक माना गया लेकिन तिलक ने इस रिपोर्ट का फायदा उठाने के लिए कांग्रेस डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना कर चुनाव लड़ने का कार्यक्रम बनाया।दुर्भाग्यवश 1अगस्त,1920 को बीमारी के कारण तिलक का देहान्त हो गया।
बाल गंगाधर तिलक ने जिस पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य की घोषणा की थी,वह कांग्रेस के द्वारा 1929 में स्वीकार की गई।तिलक का बहुआयामी व्यक्तित्व दार्शनिक,राजनैतिज्ञ,श्रेष्ठ पत्रकार,न्यायविद्,शिक्षाविद् तथा प्राचीन साहित्य के संशोधनकर्ता का था।तिलक महान क्रंातिकारी भारत के दूसरे शिवाजी कहे जाने वाले वासुदेव बलवंत फड़के के शिष्य थे।तिलक पराधीनता की बेड़ियों को छिन्न-भिन्न करने में सतत् लगे रहे।भारत की जनता ने तिलक को लोकमान्य की उपाधि से विभूषित किया।देश की राजनीति को तीव्र करने,उसे जनसाधारण तक पहुॅंचाने और समर्पित कार्यकर्ता तैयार करने का कार्य तिलक ने ही किया। तिलक का उद्घोष-स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है,भारत के जनमानस के लिए अमर संदेश बन गया।
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