प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गादेवी का जन्म ७ अक्तूबर,1907 को इलाहाबाद के न्यायाधीश की पुत्री के रूप में हुआ था। यह संयोग ही है कि दुर्गा देवी की मृत्यु अक्तूबर माह की 14 तारीख को ९२ वर्ष की उम्र में 1999 को हुई। ग्यारह वर्ष की उम्र में दुर्गा देवी का विवाह पन्द्रह वर्षीय भगवतीचरण वोहरा से हुआ था। नेशनल कालेज-लाहौर के विद्यार्थी वोहरा क्रंातिभाव से भरे हुए थे ही, उनकी पत्नी दुर्गा देवी भी आस-पास के क्रांतिकारी वातावरण के कारण उसी में रम गईं थी। सुशीला दीदी को वे अपनी ननद मानती थीं। भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव की त्रिमूर्ति समेत सभी क्रंातिकारी उन्हें भाभी मानते थे।
साण्डर्स वध के पश्चात् सुखदेव दुर्गा भाभी के पास आये। सुखदेव ने दुर्गा भाभी से 500 सौ रूपये की आर्थिक मदद ली तथा उनसे प्रश्न किया-आपको पार्टी के काम से एक आदमी के साथ जाना है, क्या आप जायेंगी ? प्रत्युत्तर में हाँ मिला। सुखदेव ने कहा-आपके साथ छोटा बच्चा शची होगा, गोली भी चल सकती है। दुर्गा स्वरूप रूप धर दुर्गा भाभी ने कहा-सुखदेव, मेरी परीक्षा मत लो। मैं केवल क्रंातिकारी की पत्नी ही नहीं हूँ, मैं खुद भी क्रंातिकारी हूँ। अब मेरे या मेरे बच्चे के प्राण क्रान्तिपथ पर जायें, मैं तैयार हूँ। दूसरी रात ग्यारह बजे के बाद सुखदेव साण्डर्स का वध करने वाले भगत सिंह और राजगुरू, दुर्गा भाभी के घर आ गये। फिर प्रातःभगत सिंह ने शची को गोद में लिया, फैल्ट हैट और शची के कारण भगत सिंह का चेहरा छिपा था, पीछे दुर्गा भाभी बड़ी रूआब से ऊँची हील की सैण्डिल पहने, पर्स लटकाये तथा राजगुरू नौकर रूप में पीछे-पीछे स्टेशन पहुंचे। भगत सिंह और दुर्गा भाभी प्रथम श्रेणी में तथा राजगुरू तृतीय श्रेणी के डिब्बे में चढ़ गये। गाडी के लखनउ आने पर राजगुरू अलग होकर आगरा चल दिये। लखनउ स्टेशन पर भगवती चरण वोहरा और सुशीला दीदी इनको लेने आये। इस प्रकार भगत सिंह और राजगुरू को सकुशल लाहौर से निकालने का श्रेय दुर्गा भाभी को है। धन्य हैं ये वीरांगना। इनके अतिरिक्त भेष बदल बदल कर बम-पिस्तौल क्रांतिकारियों को दुर्गा भाभी अक्सर मुहैया कराती रहती थीं।
असेम्बली बम काण्ड में गिरफतारी देकर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त जेल गये। न्यायालय को इन लोगों ने क्रांतिकारियों की विचार-धारा के प्रचार का माध्यम बनाया। इन्हें छुड़ाने की योजना के तहत किये जा रहे बम परीक्षण के दौरान भगवती चरण वोहरा की मृत्यु हो गयी। मृत्यु की सूचना का वज्रपात सहते हुए, अन्तिम दर्शन भी न कर पाने का दंश झेलते हुए भी धैर्य और साहस की प्रतिमूर्ति बनी रहीं दुर्गा भाभी। पति की मृत्योपरान्त उनको श्रद्धांजलि रूपेण वे दोगुने वेग से क्रांति कार्य को प्रेरित करने लगी। पुनः कुछ दिनों बाद जहां वे लोग रह रहीं थीं, बम विस्फोट हो गया। सभी लोगों ने तत्काल वहां से तितर-बितर होकर भागने की योजना बनाई। इस आपाधापी में दुर्गा भाभी और सुशीला दीदी एक साथ रहीं।
मुम्बई के गवर्नर हेली की हत्या की योजना दुर्गा भाभी ने पृथ्वी सिंह आजाद, सुखदेव राज, शिंदे और बापट को मिला कर बनाई। गलत-फहमी में इन लोगों ने पुलिस चैकी के पास एक अंग्रेज अफसर पर गोलियां बरसा दीं। बापट की कुशलता पूर्वक की गई डाइविंग से यह लोग बच पाये।चन्द्रशेखर आजाद, दुर्गा भाभी को अब भाई की तरह सहारा देते थे, उन्होंने इस योजना को लेकर काॅफी डांट लगाई। कुछ दिनों के बाद चन्द्रशेखर आजाद भी इलाहाबाद में शहीद हो गये।
समृद्ध परिवार की दुर्गा भाभी के तीनों घर लाहौर के तथा दोनो घर इलाहाबाद के जब्त हो चुके थे। पुलिस पीछे पडी थी। शची को दुर्गा भाभी अब अपने से दूर रख चुकी थी। लाहौर आकर दुर्गा भाभी ने फ्री प्रेस आॅफ इण्डिया से कहा, ‘‘पुलिस मेरा लगातार पीछा कर रही है, लेकिन कैद नही करती। मैं कोई काम नहीं कर पा रही हूँ। मुझे गिरफतार किया जाये नही तो मैं आज से अपने आप को स्वतन्त्र समझूंगी। ‘‘उसी दिन 14सितम्बर,1932 को पुलिस ने बुखार में तपती दुर्गा भाभी को कैद कर लिया। 15दिन के रिमाण्ड के पश्चात सबूतों के अभाव में दुर्गा भाभी को पुलिस को रिहा करना पड़ा। 1919रेग्यूलेशन ऐक्ट के तहत तत्काल आपको नजर कैद कर लिया गया। फिर लाहौर और दिल्ली प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। तीन वर्ष बाद पाबंदी हटने पर आपने प्यारेलाल गल्र्स स्कूल-गाजियाबाद में शिक्षिका के रूप में कार्य किया। इसी दौरान क्षय रोग हो गया परन्तु आप समाज-सेवा करते हुए कांग्रेस से जुडी रहीं। 1937में दिल्ली कांग्रेस समिति की अध्यक्षा चुनी गईं। 1938 में हड़ताल में आप पुनःजेल गईं। बालक शची अब शचीन्द्र हो गया था, योग्य शिक्षा देने की चाह में दुर्गा भाभी ने अड्यार में माण्टेसरी का प्रशिक्षण लिया और 1940 में लखनउ में पहला माण्टेसरी स्कूल खोला। सेवानिवृत्त के पश्चात् आप गाजियाबाद में रहीं। आपका स्वर्गवास 14अक्तूबर, 1999 को हुआ।राष्ट के लिए समर्पित दुर्गा भाभी का सम्पूर्ण जीवन श्रद्धा-आदर्श-समर्पण के साथ-साथ क्रान्तिकारियों के उच्च आदर्शों और मानवता के लिए समर्पण को परिलक्षित करता है।
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