मजहब के आधार पर आरक्षण देश की एकता एवं अखण्डता के लिए खतरा है, परन्तु केन्द्र की कांग्रेस सरकार मुस्लिमों को आरक्षण देने का हरसंभव प्रयास कर रही है। वह अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति एवं वर्ग विशेष के लोगों को खुश करने के लिए राष्ट्र की बलि भी चढ़ा सकती है। धर्म को आधार मानकर आरक्षण देना देश के साथ धोखा है, वह अल्पसंख्यकों के प्रति बेहद मेहरबान है, उसके प्रति हमेशा उदारता ही बरती जा रही है। वैसे तो अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए आये दिन एक के बाद एक लुभावनी योजनाएं चालू की जा रही हैं, उनके लिए विशेष पैकेज की भी व्यवस्था की गई है, जनसंख्या के आधार पर उन जिलों को विकास के लिए चयनित किया गया है जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक हो, उन जिलों में सीधे केन्द्र की तरफ से एक विशेष प्रकार की योजनाएं एवं विशेष पैकेज की व्यवस्था भी की गई है। क्या यह उनको भारत के शेष हिस्सों से विभेद नहीं पैदा करता?
हमारे यहाँ अल्पसंख्यक की परिभाषा को बदलना चाहिए क्योंकि यहाँ अल्पसंख्यक की परिभाषा ही विकृत हो चुकी है। किसी भी देश में अल्पसंख्यक वह होता है जो अपने देश में पीड़ित, शोषित, अत्याचार से त्रस्त होकर दूसरे देश में जाकर बस गये हों। भारत के मुसलमान अल्पसंख्यकों की श्रेणी में नहीं आते। 2007 में हाईकोर्ट ने भी निर्णय दिया था कि अल्पसंख्यकवाद को अब समाप्त कर देना चाहिए। पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी अल्पसंख्यकवाद को समाप्त करने की मांग कर चुके हैं। देश के मुस्लिमों को अल्पसंख्यकों के नाम पर भारी धनराशि मुहैया करायी जाती है, लेकिन ठीक ढंग़ से इसका उपयोग हो पाता है ऐसा मुझे नहीं लगता। अल्पसंख्यकों की समस्याओं को मजहबी आधार पर नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से उठाने की जरूरत है, जो वास्तव में आर्थिक रूप से पिछडे़ हुए हैं। अन्यथा एक और भारत विभाजन की विभाषिकी उत्पन्न होगी। भारत पाक विभाजन की शुरूआत भी आरक्षण को लेकर ही हुई थी। मुस्लिम लीग का जन्म ही मुस्लिमों को आरक्षण दिलाने के लिए हुआ था। कांग्रेस का असहाय नेतृत्व मुस्लिम लीग की एक-एक मांग को मानते चले गये जो अन्तत: भारत विभाजन का कारण बनी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सलमान खुर्शीद ने मुस्लिमों को तमिलनाडु, केरल, पं.बंगाल की तरह देश के अन्य राज्यों में आरक्षण देने की बात कही है। आने वाले दिनों में यू0पी0 विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए ऐन मौके पर ऐसी बात किसी जिम्मेदार राजनेता का कहना कहाँ तक सही है यह तो आने वाला समय ही बतायगा। देश के लोगों को सोचना चाहिए कि आखिर उनको ये बातें अब क्यों याद आयीं, अगर वास्तव में वे देश के अन्य नागरिकों से पीछे हैं तो उनको पीछे ढकेलने एवं उनकी दुरावस्था के लिए जिम्मेदार कौन है? आखिर आजादी से लेकर आज तक इन्होंने ही तो देश पर शासन किया है। जिस तरह अंग्रेज भारत पर राज करते थे बिल्कुल वैसे ही कांग्रेस भी अभी तक शासन कर रही है। सभी विभागों के काम काम रीति रिवाज आफिसों के रहन सहन संसद से लेकर विधान सभा और सारा प्रशासनिक तंत्र में पूरी की पूरी वही प्रक्रिया चल रही है। यदि परिवर्तन हुआ है तो मात्र कहने के लिए ही परिवर्तन हुआ है, सारे विभागों में बैठे लोग अंग्रेजों के जमाने में जिस मानसिकता से काम करते थे आज भी उसी लहजे में काम कर रहे हैं। जो जैसा चल रहा था उसको वैसा ही अपना लिया गया क्योंकि नेहरू के सामने सपना था भारत को इंग्लैण्ड बनाने का सो उन्होंने उसी दिशा में काम किया और भारत को इंग्लैण्ड बनाना चाहा।
इस विषय में देश के राजनीतिज्ञों को भी सोचना चाहिए कि आखिर जिस राज्य में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं क्या वहां उनको ये सभी सुविधायें मिल रही हैं जो भारत के शेष भागों में अल्पसंख्यक होने के नाते मुस्लिमों को मिल रही हैं। यदि मजहब के आधार पर ही अल्पसंख्यक होने का निर्णय किया जाये तो असली अल्पसंख्यक भारत में रहने वाले ईसाई, पारसी, यहूदी तथा अन्य कुछ समुदाय हैं। मुस्लिमों को आरक्षण देने में तो असली अल्पसंख्यक तो छूट ही जाते हैं। लेकिन ये समुदाय भारत सरकार से अपने लिए कोई विशेष सुविधा नहीं माँगते, जबकि मुस्लिम समुदाय जो पहले से ही बड़ी संख्या में है, सुविधाओं की माँग करता रहता है।
सत्य तो यह है कि मजहबी आधार पर मुस्लिमों को आरक्षण देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है, क्योंकि मुसलमानों में जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। उनके अनुसार वहाँ तो सभी बराबर होते हैं। यदि आरक्षण देना ही है, तो आर्थिक आधार पर दिया जाना चाहिए। मजहब के आधार पर अल्पसंख्यकों को दिया जाने वाला आरक्षण न केवल भारत के लोकतंत्र पंथनिरपेक्षता के समक्ष चुनौती है, बल्कि यह संविधान के नियमों के विपीत है और यह अन्य समुदायों के प्रति अन्याय है भी है, जिनको वास्तव में सुपात्र होते हुए भी यह लाभ नहीं मिल पाता है। ऐसा करके मुस्लिमों को शेष समाज से अलग करने का प्रयास ही चल रहा है। जो काम अंग्रेज करते थे उसी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत कांग्रेस सरकार भी काम कर रही है।
कांग्रेस इस समय घोटालों की मार से दबी जा रही है। आये दिन नित नये-नये घोटाले जनता के सामने आ रहे हैं। इससे कांग्रेस नेतृत्व एकदम सहमा हुआ है। सोनिया और राहुल की बोलती ही बन्द हो गयी है। विदेशों में जमा काला धन मामले में वे एक शब्द भी बोलने को राजी नही है। इसके बजाय जो उनके खिलाफ आवाज उठाते हैं, उनको दबाने की भी अनैतिक ढंग से भरसक प्रयास हो रहा है। वह चाहे बाबा रामदेव हों या अन्य कोई आतंक- वाद अलगाववाद और मंहगाई के मुद्दों पर भी कांग्रेस असफल सिध्द हुई है। भ्रष्टाचार में तो रिकार्ड कायम किया है, अगर किया है कांग्रेस ने तो सिर्फ घोटाले ही किये हैं। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अपनी मजबूरी जनता के सामने जाहिर कर चुके हैं। इससे स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार के खेलों के पीछे बहुत ताकतवर लोगों का हाथ है, जिनके सामने प्रधानमंत्री भी असहाय बने हुए हैं। उनके तार सीधे सोनिया गाँधी से जुड़े हुए मालूम पड़ते हैं, जो आर्थिक अपराधियों जैसे क्वात्रोची, एंडरसन आदि को बचाने के लिए पहले ही प्रश्नों के घेरे में आ चुकी हैं। लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से अभी तक कोई स्पष्टीकरण नही दिया है, उल्टे कांग्रेस अधिवेसनों में भ्रष्टाचाारियों के खिलाफ सख्त कार्यवायी की चेतावनी देती हैं। देश यह जानता है कि कितने विरोध और दबावों के बाद ए.राजा की गिरफतारी हुई है। वैसे भी कांग्रेस अपने को सत्ता में बनाये रखने के लिए अनैतिकता की किसी भी सीमा तक जा सकती हैं। यह पहले कई बार सिध्द हो चुका है।
परन्तु बात आरक्षण की हो रही थी। वैसे तो आरक्षण का लाभ आर्थिक रूप से पिछड़े सभी वर्गों को मिलना चाहिए। पिछड़े वर्गों में भी जो बहुत ज्यादा पिछड़े हुए हैं, उनको इसमें प्राथमिकता के आधाार पर लाभ मिलना चाहिए। लेकिन देखा यह गया है कि आरक्षण का लाभ पिछड़ों में भी जो आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हैं वे ही लपक लेते हैं और जो वास्तव में पिछड़ा है वह पिछड़ा ही रह जाता है। यदि मजहब के आधार पर भी आरक्षण देना प्रारम्भ हो गया, तो इसको भी उन समुदायों के आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न लोग ही बीच में हड़प लेंगे। इस बारे में भी सोचने की आवश्यकता है। कांग्रेस ने पहले भी मुस्लिमों को खुश करने के लिए मार्ले मिंटो सुधार के तहत 1909 में मुस्लिमों के लिए अलग से 6 निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया था। 1909 में यह संख्या 19 हो गई, आगे चलकर यही भारत विभाजन के रूप में सामने आया। यहाँ तक कि कई प्रमुख मुस्लिम नेता और लोग भी मजहब के आधार पर सरकारी नौकरियों, शिक्षा में आरक्षण से सहमत नही हैं। फिर भी कांग्रेस राष्ट्रवादी मुस्लिमों की भावनाओं को दरकिनार करते हुए साम्प्रदायिक मुस्लिमों को खुश कर रही है। मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं केन्द्रीय सरकार में शिक्षा मंत्री मोहम्मद करीम छागला ने अपनी जीवनी ‘रोजेज इन दिसम्बर’ में कहा था कि मुझे यह बात सदैव सालती है जिसे मैं गहराई से अनुभव कर रहा हूँ वह यह है कि कांग्रेस और यहाँ तक कि महात्मा गांधी भी राष्ट्रवादी मुसलमानों के प्रति उदासीन रहते थे। जिन्ना और सामप्रदायिक मुसलमान उन्हें महत्वपूर्ण लगते थे। इनकी तुलना में राष्ट्रवादी मुसलमान नेताओं के लिए कांग्रेस में कोई स्थान नही था। कांग्रेस ने अपनी सोची समझी साजिश के तहत उन्हें मुख्यधारा में सम्मिलित होने से रोका ही, मुस्लिम वोट बैंक के लालच में आज सभी राजनीतिक दल देशहित को पीछे छोड़कर निर्णय ले लेते हैं।
वैसे भी कांग्रेस आज हिन्दुओं के साथ दोहरे मापदंड अपना रही है। वह देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का बताकर उनको हर संभव मदद कर रहा है। शिक्षा तथा नौकरियों में आरक्षण दे रहा है हज यात्रा के लिए सब्सिडी दे रहा है व्यापार करने के लिए बहुत ही कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करा रहा है वहीं हिन्दुओं के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है। अपने को अल्पसंख्यकों का सच्चा हितैषी बताकर दिग्विजय सिंह और सलमान खुर्शीद जैसे कद्दावर नेता कांग्रेसी विरासत को आधार देने में जुटे हैं। शिक्षा के आधार पर किसी के भी साथ भेदभाव नही किया जाना चाहिए। धर्म के आधार पर भारत को बांटने के नीति के तहत ही 1871 में अंग्रेजों ने हंटर समिति बनायी थी। आजादी के बाद 1978 में अल्पसंख्यक आयोग फिर 1980 में डा. सैय्यद अहमद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ। 1995 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग बना जिसने पुलिस और सेना में मुस्लिम आरक्षण देने का समर्थन किया। 2005 में कांग्रेस ने इसी तुष्टीकरण की नीति को आगे बढ़ाकर सच्चर समिति का गठन किया। जिसने धर्म आधारित आरक्षण की वकालत करते हुए निजी क्षेत्र और सेना को भी इसमें शामिल करने का सुझाव दिया। डा. राममनोहर लोहिया आचार्य कृपलानी और सरदार वल्लभ भाई पटेल कांग्रेस की अल्पसंख्यक मानसिकता के खिलाफ थे। आज आतंकवाद को रोकने और पकडे ग़ये आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवायी करने में भी कांग्रेस आरक्षण्ा का लाभ दे रही है अजमल कसाब एवं अफजल गुरू सरीखे खूंखार आतंकवादी इसी का परिणाम हैं कि विशेष धर्म से सम्बिन्धित होने के कारण उन्हें अतिथियों की तरह पाला पोसा जा रहा है। कांग्रेस को भय है कि उनके खिलाफ कार्यवायी करने से मुस्लिम विरोधी होने का ठप्पा उनके ऊपर लग जायेगा। ऐसा करके वह सभी देश वासियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। मुंबई हमला और संसद भवन हमले में शहीद हुए सेना के जवानों और संसद भवन हमले में शहीद हुए सेना के जवानों और नागरिकों की उनको सुध नही है। यहाँ तक कि शहीदों की पत्नियों ने सारे मेडल भी लौटा दिया फिर कांग्रेस के कान तक जूं तक नही रेंगी। हज के लिए सब्सिडी, कैलास मानसरोवर यात्रा एवं तीर्थस्थलो में जाने के लिए सरचार्ज लगाया जाता है। हिन्दू मठ मन्दिरों की चढ़ी हुई धनराशि मुस्लिमों के कल्याण एवं उनके मस्जिद मदरसे निमार्ण में खर्च की जाती है। क्या है देश में ऐसी कोई मस्जिद जिसमें आने वाला चन्दा वहाँ के इमाम के पास न जाकर भारत सरकार के कोष में जाता हो? अल्पसंख्यक एवं आरक्षण पर देश की नीति क्या हो इस पर विचार की जरूरत है।
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